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'नवीन संसद भवन' के 'वास्तु' को लेकर देखिये क्या बोले 'ज्योतिर्विद ब्रजेन्द्र'

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

/ by Vipin Shukla Mama

- देश के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद बृजेन्द्र श्रीवास्तव ने नवीन संसद भवन के वास्तु पर उठ रहे सवालों पर ये कहा
ग्वालियर। पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जिस नवीन संसद भवन का  शिलान्यास किया देश भर में उसी की बाते की जा रही हैं। अलग अलग तरह से लोग विश्लेषण कर रहे हैं। नवीन संसद भवन के दो मॉडल के वास्तु को लेकर तमाम शंका व्यक्त की जा रही हैं।  कुछ लोगों ने कहा कि वास्तु के हिसाब से पार्लियामेंट का त्रिकोणीय होना ठीक नहीं है तो किसी ने कुछ और कहा। इस बात का जवाब शोधपरक लेख के माध्यम से आप सभी के लिए हम लेकर आये हैं, देश के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद एवम जीवाजी विश्वद्यालय ग्वालियर के  मेकॉस्मोलॉजी व एस्ट्रोलॉजी के प्रोफेसर रह चुके बृजेन्द्र श्रीवास्तव। उन्होंने प्रश्न उठाया की यह शंका ही क्यों की गई है? उन्होंने कहा की नए संसद भवन का रूपांकन त्रिकोण नहीं षड कोणीय अर्थात छह कोनों का है। चित्र देख लीजिए। उन्होंने संभवतः इसके पीछे विगत 50 वर्षों में ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अल्प ज्ञानियों द्वारा फैलाए गए तरह तरह के भ्रम ही मुख्य कारण बताए हैं। बृजेन्द्रजी कहते हैं की इन ज्ञानियों को छोड़िए, स्वयं जरा देश के विभिन्न प्रदेशों में बने प्राचीन राजप्रासादों और उनके भग्न अवशेषों के लेआउट को ही देख लीजिए कि इनमें कितनी विविधता और भव्यता है और फिर देश हित की सुरक्षा भवनों से कब से जांची जाने लगी है ? कभी नहीं।
भवन निर्माण में त्रिकोण की बात ही क्या, 20 प्रकार के कोणों से राज प्रासाद निर्मित करने की बात तो वराहमिहिर ने ही लिखी है। वराहमिहिर के लिखे छठी सदी के ग्रंथ बृहत संहिता के वास्तु विद्या अध्याय क्रमांक 53 और प्रासाद लक्षण अध्याय क्रमांक 56 पढ़ने लायक हैं इनमें में मन्दिर, राजभवन व प्रासादों के निर्माण के वास्तु सिद्धान्त दिए गए हैं।
इस के प्रासाद लक्षण अध्याय के श्लोक 19और 20 में बीस प्रकार के विभिन्न कोण और विभिन्न आकृतियों के प्रासाद निर्माण का विवरण दिया गया है जिनको पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में स्थापत्य कला architecture कितना कल्पनाशील और सृजनात्मक था मेरु के आकार का भवन षड कोण का 12 मंजिल का होता है। मन्दर नाम भवन षड कोण hexagonal होता है। यह 10 मंजिल का होता है।
समुद्र नाम प्रासाद वृत्ताकार होता है जैसा कि वर्तमान संसद भवन है। ऐसा ही वृत्ताकार एवं स्तंभों वाला भवन मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में चोंसठ योगिनी मन्दिर है। 
 वर्तमान संसद भवन के वास्तु रूपांकन अर्थात architect -design करने वाले लुटियन की तारीफ तो सब करते हैं पर सैकड़ों वर्ष पुराने स्तंभों पर खड़े इस वृत्ताकार मन्दिर पर भी कुछ कहिए।
मुरैना मप्र स्थित इस मंदिर व आसपास के मंदिरों के भग्न अवशेषों का उद्धार प्रसिद्ध पुरात्वविद के.के. मोहम्मद ने करवाया था।
श्लोक 24 में गरुड़ाकार भवन में गरुड़ की आकृति साथ गरुड़ के पंख मुख आदि को भी रूपांकन डिजाइन में शामिल किया गया है।
श्लोक 28 में सिंह रूप भवन में 12 कोण बताए गए हैं।
वराह मिहिर कहते हैं कि कुछ प्रसंगों में विश्वकर्मा और मय के निर्देशों में मतभेद है ऐसी स्थिति में स्थपित architect को स्व विवेक से काम करना चाहिए।
-प्रासाद लक्षण अध्याय श्लोक 30
वास्तु शास्त्र का अध्ययन करने और सम्पूर्ण भारत में बने पहले के भवनों के अवलोकन से यह स्पष्ठ है कि भवनों के रूपांकन अर्थात डिजाइन में विविधता है, वे जलवायु के अनुरूप अनुकूलन है, उनमें अनोखी कल्पनाशीलता है और सौंदर्य दृष्टि है ।
जैसा कि एक सुप्रसिद्ध वास्तु शास्त्री ने कहा भी है कि भारतीय वास्तुशास्त्र में वास्तु के नियम कड़े और नियामक नहीं हैं बल्कि सुझाव रूप में हैं।
 प्रसंग वश यह जानना रोचक होगा कि वास्तु का रूपांकन विविध संख्याओं के वास्तुपद मण्डल बना कर किया जाता है। यहाँ 64 पद का या 64 ग्रिड का वास्तु मण्डल दिया है। इसमें चारों दिशाओं में से दक्षिण सहित किसी भी एक या अधिक दिशाओं में मुख्य द्वार बन सकते हैं। प्रत्येक दिशा में 8–8 पद हैं। किस दिशा में कितने पद या वर्ग में मुख्य द्वार बन सकता है यह मैंने रेखांकित कर , ‘मुख्यद्वार शुभ’ ऐसा भी लिखा है।
चित्र मेरी ही लिखी पुस्तक ज्योतिर्विज्ञान में नए विचार और अनुप्रयोग के वास्तु अध्याय से। अमेरिका के रक्षा विभाग का भवन पंचकोणीय है, पेंटागन का नाम तो इसके पाँच कोण के आधार पर ही है। अमेरिका में हुए आतंकी हमले में यह भवन भी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। बृहत संहिता में तो केवल दो अध्याय मात्र हैं। इसके अलावा महाराजा भोज रचित समरांगण सूत्रधार नामक महाग्रन्थ एवं मयासुर का मय मतं भी वास्तु शास्त्र के प्रामाणिक महाग्रन्थ हैं।
निष्कर्ष: संसद के नए भवन का त्रिकोणीय स्वरूप वास्तु की दृष्टि से पूर्णतः सुसंगत है। इसलिए यह भवन देश हित में होगा।

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