भोपाल। मप्र में बाल भिक्षाव्रत्ति के लिए विशिष्ट कानून 1974 से लागू है लेकिन इसके उन्मूलन की दिशा में संतोषजनक नतीजे सामने नही आ पा रहे है।केंद्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा मैदानी स्तर पर किये जा रहे प्रयासों के समानन्तर बाल भिक्षावृत्ति का स्वरूप बदल गया है।धार्मिक स्थलों पर अब फूल,रक्षा सूत्र बेचते या तिलक लगाते बच्चे भी संगठित भिक्षावृत्ति का नया स्वरूप है।सामाजिक न्याय विभाग, पुलिस, बाल सरंक्षण महकमों में आज भी बेहतर समन्वय का आभाव है इसलिए गरीब परिवारों के लाखों बच्चे भिक्षावृत्ति के दलदल में फंसे हुए है। यह बात आज उज्जैन स्थित मप्र सामाजिक संस्थान से संबद्ध विधिवेत्ता श्री शेर सिंह ठाकुर ने चाइल्डकंजर्वेशन फाउंडेशन की 28 वी ई संगोष्ठी में कही। ठाकुर ने इस बात पर अफसोस जताया कि भिक्षावृत्ति को एक स्वतंत्र मुद्दा नही माना जाता है जबकि व्यवहारिक तथ्य यह है कि बाल भिक्षावृत्ति बाल तस्करी, लैंगिक शोषण से सीधा जुड़ा हुआ मामला है।उन्होंने बताया कि देश के अन्य राज्यों में बाल भिक्षावृत्ति को लेकर कोई स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर ( एसओपी) नही है इसके चलते कानून के अनुरूप काम नही हो पाता है। ठाकुर ने बताया कि मप्र में इस कार्य के उन्मूलन हेतु सामाजिक न्याय विभाग अधिकृत है लेकिन मैदानी स्तर पर कोई भी नोडल ऑफिसर मप्र में पदस्थ ही नही है।मप्र भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1974 के क्रियान्वयन के लिए स्थानीय स्तर पर न समन्वय है न ही इच्छाशक्ति नजर आती है। ठाकुर ने बताया कि जेजे एक्ट 2015 के अलावा भारतीय रेल अधिनियम एवं आईपीसी में तमाम प्रावधान मौजूद है लेकिन जागरूकता औऱ समन्वय के आभाव में यह समस्या आज भी बरकरार है। बाल भिक्षावृत्ति के लिए 18 साल से कम आयु के बच्चों को अपरहत कर नियोजित करने या जबरिया ऐसा कराने वाले तत्वों के विरुद्ध 10 बर्ष तक की सजा के प्रावधान है। ठाकुर ने बताया कि भिक्षावृत्ति से मुक्त कराए गए बालकों का सामाजिक एवं पारिवारिक पुनर्वास एक कठिन कार्य है क्योंकि इस कार्य मे लगे बच्चे बेहद गरीब परिवारों से आते है इसके अलावा घुमन्तु परिवारों के मामले में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भिक्षावृत्ति के लिए बाल श्रम सरीखे सेंट्रल पोर्टल की आवश्यकता पर जोर देते हुए ठाकुर ने कहा कि बदलते वक्त में हमें नागरिक जबाबदेही के साथ इस भिक्षावृत्ति की चुनौती को लेने की आवश्यकता है। चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने अपने उदबोधन में कहा कि बाल भिक्षावृत्ति सामाजिक भागीदारी से उन्मूलित हो सकेगी।जागरूकता के समानांतर सरकारी प्रावधानों से हटकर भी हमें व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।डॉ शर्मा ने भोपाल महानगर में इस मामले पर हुए नवाचार की जानकारी दी। फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चोबे ने बताया कि केंद्र सरकार शीघ्र ही उज्जैन ,रतलाम सहित देश भर के प्रमुख धार्मिक महत्व के शहरों में बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के लिए पायलट प्रोजेक्ट लेकर आ रही है जिसके तहत भिक्षावृत्ति के सुगठित तंत्र को खत्म किया जाएगा। फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र ने बाल भिक्षावृत्ति उन्मूलन एवं क्रियान्वयन के लिए एसओपी निर्माण की पहल सुनिश्चित करने के साथ शासन स्तर पर सुझाव का भरोसा दिया। ई संगोष्ठी में मप्र, बिहार, राजस्थान, आसाम, यूपी, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, झारखंड के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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