अरुण अपेक्षित
16 मार्च 2021
इंदौर म.प्र.
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यह बात मैंने कहीं पढ़ी नहीं थी पर किसी ग्रामीण बुजुर्ग ने सुनाई थी। उनके अनुसार रावण अपने जीवनकाल में चार महत्वपूर्ण कार्य करना चाहता था पर वह वे कार्य कर नहीं सका, ये कार्य थे-
1.गर्भस्थ शिशु के लिंग के बारे में जानना।
2.समुद्र के पानी को मीठा करना
3.सोने को सुगंधित करना
4.स्वर्ग तक सीढ़ी लगवाना
हम सब जानते हैं कि स्वर्ग या जन्नत एक कल्पना मात्र है। अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता। मरना कोई भी नहीं चाहता और जीते जी स्वर्ग में प्रवेश सम्भव नहीं। सशरीर स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है तो स्वर्ग में सीढ़ी लगाने का क्या लाभ। दूसरी बात यह कि अब सीढ़ी का उपयोग करता ही कौन है? दसवें माले पर जाना हो अथवा दूसरे माले पर, आजकल तो लिफ्ट की सुविधा है। बड़ी-बड़ी ऊंची पहाड़ियों पर ट्राॅली से जाने की सुविधा करवाई जा सकती, अधिक ऊंचाई के लिए हेलीकोप्टर,हवाई जहाज और राकेट हैं। इस लिए कोई ग्रह हो, स्वर्ग हो अथवा कोई बहुमंजिला इमारत। सीढ़ी लगवाने का विचार ही मूलतः गलत हैं। अपने मरने से स्वर्ग की अगर गारंटी है तो चलो मरने की तैयारी करते हैं-पर यह गारंटी देगा कौन? ये पंडे या मौलवी। अब पंडितजी कहते हैं कि अच्छे कर्म करोगे तो स्वर्ग मिलेगा। मतलब उन्होंने स्वर्ग मिलने की बात हमारे कर्म पर ही छोड़ दी है। मौलवी साहब भलाई के कामों के साथ जिहाद करने की बात भी करते हैं-तो पहली बात हम उनके अनुसार काफिर है। इस लिए हमें जन्नत के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए और चलो सोच भी लें तो उनके अनुसार मिलने वाले हमें स्वर्ग के सुख नहीं चाहिए। पहली बात- शराब हम पीते नहीं और दूसरी बात 72 हूरों की हमें जरूरत नही। एक जो घर में है-वो जैसी भी है-हूर या क्रूर, अपने लिए वहीं पर्याप्त है, ठीक है।
अब बात सोने को सुगंधित बनाये जाने की करते हैं। देश में अन्नदाता तो बहुत हैं। अन्न पैदा भी बहुत हो रहा है पर पेट्रोल-डीजल तथा रसोई गैस के बाद मेंहगाई की मार सबसे अधिक अन्न अर्थाथ सब्जी,रोटी,दाल पर ही पड़ रही है। मेंहगाई के कारण आदमी दाल-रोटी से रोटी-प्याज पर आया पर अब इससे आगे कहां जाये। पेट भरने को कुछ नहीं फिर भी रोटी तो चाहिए ही ना। एक आम आदमी की सारी कमाई तो रोटी पर ही खर्च हो रही है। बाकी के जरूरी खर्चों के लिए भी पैसे नहीं बचते तो यह सोना कहां से खरीदें? हर इंसान जरूरत के सामन को प्राथमिकता देता है, क्या करना है सोने खरीद कर। और रही सोने को सुगंधित करने की बात तो भाई ये अमीरों के चोचले हैं। दूसरा कौन दे चोरों को न्योता। हमें तो डर है कि अगर सोना सुगंधित हो गया तो चोरों को वहां तक पहुंचने में समय नहीं लगेगा। राह चलते चैन खींचने वाले सूंघ कर ही पता कर लेंगे कि महिला जो चैन पहने हुये है वह असली सोने की है अथवा नकली। सोना अमीरों की धातु है-हम अमीर नहीं। अपना तो ‘‘मन लागो यार फकीरी में‘‘। अपने राम को तो चैन से सोना मिल जाये यही काफी है। जो आनंद चैन से सोने में मिलता है वह धातु वाले सोने में कहां? ना सोने की बालियां होंगी और ना कोई जबरिया कांन काटेगा। क्षमा कीजिए आपके पास पैसा है तो आप सुगंधित सोने के चक्कर में पड़िये अपने रामजी को तो तुम्हारे सोने की अपेक्षा अपने सोने में अधिक आनंद मिलता है........ पर सोने के पहले समुद्र के पानी को मीठा करने की बात भी कर लेते हैं।
सुना है अरब-अमीरात वालों ने ऐसे कितने ही प्लांट लगा लिए है जो समुद्र के पानी को आस्वित करके पीने योग्य बना लेते हैं। समुद्र के पानी को मीठा करने का आशय उसे पीने योग्य बनाना ही है न कि शक्कर घोल कर मीठा शरबत बनाना। हमारे पास तो खैर पीने योग्य मीठे पानी की कोई कमी है नहीं। जितने भी नदी,नाले,कुये बाबड़ी,हेंडपम्प या टयूब बैल हैं लगभग सब में ही मीठा पीने योग्य पानी होता है-अगर हम उसे प्रदूशित न करें तो....अब ये बात और है कि आजकल हम मिनरल वाटर के नाम पर मिनरल रहित पानी पीने को अधिक प्राथमिकता देने लगे हैं- शुद्धता के नाम 15-20 रूपये लीटर का पानी। पर अब यह मैं जब अपने घर वालों को ही नहीं समझा पाया तो आप को क्या समझाऊंगा। घर में बोरिंग है- हेंडपम्प तथा टयूब बैल से अधिक शुद्ध और स्वास्थ्य वर्धक पानी कोई दूसरा श्रोत नहीं होता। धरती के बराबर मोटी छन्नी किसी के पास नहीं है। इसमें भूगर्भिय जम में प्राकृतिक मिनरल होते हैं। खैर आप तो बोतल बंद पानी पीजिए, मेरे घर में भी यह आता है। पर में उधर मैं नल से ओक लगाकर पानी पीकर आता हूं। इसका अपना सुख है। ओक लगाकर पानी पीना?-आप शायद नहीं जानते? बड़े आदमी है। ओक से पानी पीने जैसा काम तो हम जैसे कम पढ़े-लिखे, देहाती और तुच्छ लोग ही करते हैं। कहीं भी नल की टोंटी दिखी या प्याऊ तो ओक लगा कर पानी पी लिया। अपनी नौकरी के दौरान गांव-गांव भ्रमण करते हुए जब प्यास लगी, जहां प्यास लगी-नदी, पोखर, झरना, कुआ अपनी हथेलियों को नोकाकार में मोड़ा, ओक बनाई और पानी भर-भर कर पी लिया। आप पानी की शुद्धता या अशुद्धता की चिंता करें। हमें तो अपनी इम्युनिटी पर भरोसा है। आप हमारी चिंता न करें-हमारी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बहुत अच्छी है। हम कहीं का भी पानी पी लेते हैं बस पानी साफ होना चाहिए। नदी,नाला,पोखर, बाबड़ी, झरना। हम कभी पानी पीने से बीमार नहीं होते हैं-क्योंकि हमारी इम्यूनिटी बहुत बेहतर है। ये कोरोना का वायरस (विषाणु) भी हमारे पास आकर रो रहा था। इसके पहले भी कितने ही कीटाणु,जीवाणु, विषणु और परजीवी इसी प्रकार का रोना रो चुके हैं। उनका प्रभाव हम पर नहीं होता। हम बीमार नहीं है-क्योंकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है। हम बीमार नहीं है क्योंकि हमने दवाओं पर जीने की अपेक्षा अपनी क्षमताओं पर जीना स्वीकार किया है। हम बीमार नहीं है-क्योंकि हम प्रकृति के साथ रहते और जीते हैं। नकली जीवन, खान-पान, कार्य-व्यवहार हमें स्वीकार नहीं हैं। आप दवायें खाईये, मिनरल वाटर पीजिए और हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए। क्षमा कीजिए-यह कोरोना बायरस भी सोच रहा है कि अब हम इन निपट गवांर और देहातियों का क्या करूं? इन पर हमारा कोई असर होता ही नहीं? बम्बई,दिल्ली, चेन्नई, जयपुर, भोपाल, इंदौर जैसे शहरों को मैंने अपनी चपेट में ले लिया पर किसी भी गांव-खेड़े को मैं अपने लपेटे मैं नहीं ले सका। चलो विषयान्तर नहीं करते हैं। मुद्दे की बात पर आते हैं तो मुद्दे की बात तो यह है कि हमारे पास पीने योग्य पानी की कहीं कोई कमी नहीं जो समुद्र के पानी को मीठा करने की चिंता में हम पड़ें। यह चिंता अरब देशों को करने दो जिनके पास तेल के कुये तो बहुत है पर पीने योग्य पानी का एक भी कुआ नहीं।
अब रही गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण की बात तो मित्रों यह हम सब जानते है कि यह काम जो रावण नहीं कर पाया वह हमने सम्भव कर दिखाया है। एक समय था जब अनेक सोनाग्राफी सेंटर यही काम धड़ल्ले से कर रहे थे। गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी करके उन्हें यह बताना कि आपके गर्भ में होने वाला शिशु बेटा है अथवा बेटी। यहां मैं यह बताता चलूं इसके आगे का काम रावण की भी लिस्ट में नहीं था। यह एक काम जो रावण भी नहीं कर पाया वह भी हमने कर दिखाया है................ और वह काम है गर्भ में ही बेटियों की हत्या। ये साला रावण हमारे सामने लगता ही कहां है? वो तो सरकार ने लिंग परीक्षण पर रोक लगा दी है वरना हम बेटियों को दुनियां में आने ही नहीं देते। सरकार का बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा, धरा का धरा रह जाता। आप मेरी बेटी मेरा गौरव की बात कर रहे हैं। अरे हम तो उस समाज में रहते हैं जहां- बेटी का बाप होना भी गाली माना जाता है। इस गाली को भला हम किस तरह बरदास्त करते? तो इस गाली से अच्छा है-बेटी की उसके पैदा होने से पहले ही हत्या। आपको पता नहीं है जब गर्भ में ही लिंग परीक्षण की सुविधा का ज्ञान नहीं था तब कैसे कैसे क्रूर तरीकों से बेटियों की हत्या की जाती है। लगता है क्रूरता हमारी बेटियां अपने भाग्य में ही लिखा कर लाई हैं। आज भी दहेज के लिए और दूसरे कारणों से क्या हमारी बेटियां घरेलू हिंसा और क्रूरता की शिकार नहीं हो रही है। बलात्कार जैसी घटनाओं को क्या हमारे कठोर कानून पूरी तरह रोक पाने में सफल हुए हैं। बेटियों के प्रति इन अपराधों के चलते क्या हम सभ्य और सुसंस्कृत कहलाने के योग्य है। खैर रावण तो राक्षस था-जो काम राक्षसों ने भी नहीं किया वह हमने कर दिखाया है। वे अज्ञानी थे, मूर्ख थे,क्रूर थे, कुकर्मी थे, व्यभिचारी थे, अत्याचारी थे, अनाचारी थे, पापी थे। वे यदि ये सब थे तो हम क्या हैं? सुना है आज भी सरकारी प्रतिबंध के उपरांत भी नम्बर.दो में लिंग-परीक्षण और कन्या भ्रण हत्या का काम चोरी-छिपे हो रहा है। अगर यह सच है तो हमें सोचना ही होगा कि हम क्या हैं? इंसान या राक्षस या उससे भी आगे के कुछ और जिसे अभी कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है।

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