दो टूक / अजय दण्डौतिया
मुरैना। जिले की पहचान अब दिन दहाडे लूट, फर्जीबाडा और भ्रष्टाचार जैसे मामलों में अव्वल रहने के चलते होने लगी है। एक समय था जब चंबल संभाग के मुरैना जिले को डांकुओं की खौफ के चलते पहचाना जाता है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि एक बार फिर मुरैना अपने इतिहास को दोहराने लग गया है। फर्क बस इतना है कि पहले डांकुओं का आतंक था अब लुटेरों और भ्रष्ट नौकरशाही इसमें अपना खौफ बनाये हुये है। वर्तमान स्थिति में जिले के जो हालात बने हुए हैं उसमें कक्षा 5वीं का एक पाठ अंधेर नगरी चौपट राजा, टकेसेर भाजी, टकेसेर खाजा, चरितार्थ होती नजर आ रही है। ग्राम छैरा में हुई जहरीली शराब से लोगों की मौत के बाद नौकरशाही में बदलाव किया गया जिसमें जय और वीरू की जोडी को मुरैना में पदस्थ किया गया और जिले में अवैध शराब और माफियाराज खत्म करने का जिम्मा सौंपा गया। जय और वीरू की शुरूआती जोडी तो काफी अच्छी रही। दोनों के ही द्वारा ताबडतोड कार्यवाहियां अवैध शराब और माफियाओं के विरूद्ध की गई और खूब वाहवाही भी लूटी। इतना ही नहीं अपने अच्छे कार्यों के लिये जय और वीरू की जोडी को शासन की तरफ से अच्छी खासी रेटिंग भी मिली। इतना होने के बाद उक्त जय और वीरू की जोडी मानो शांत होकर बैठ गई। कार्यवाही के नाम पर अब उक्त जोडी द्वारा किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की जाती। हैरत की बात तो तब हो जाती है जब भ्रष्टाचार और फर्जीबाडे के प्रमाणित मामले इन जय और वीरू के सामने आते हैं लेकिन उन मामलों को अनदेखा व अनुसना करके जिले के सभी अधिकारियों को मीटिंग के नाम पर घेरने का काम करते रहते हैं। आम लोगों में भी यह चर्चा का विषय बन गया है कि हम तो बडे साहव से मिलने गए थे लेकिन बडे साहव एक दो महीने से मीटिंग पे मीटिंग जा रहे हैं। जी हां! यह सच्चाई है। जबसे मुरैना में इन जय और वीरू की जोडी आई है तब से जिले का शायद ही ऐसा कोई अधिकारी होगा जो अपनी कुर्सी पर 10 मिनट के लिये बैठ पाया होगा। इन अधिकारियों के केबिन में जाकर अगर देखा जाये तो हर समय उनके स्टाफ द्वारा यह बात कहते देखा जायेगा कि साहव तो मीटिंग में हैं। चलो यहां तक तो ठीक था कि ताबडतोड मीटिंग ली जा रही हैं लेकिन इन बैठकों का क्या परिणाम निकला ...? आम जन को इससे क्या फायदा हुआ....? इसका जबाव किसी के पास नहीं है। आये दिन समाचार पत्रों, मुख्यमंत्री शिकायत हेल्पलाईन व जनसुनवाई के माध्यम से कोई न कोई फर्जीबाडे व भ्रष्टाचार की शिकायत आती रहती है लेकिन उनके खिलाफ क्या कार्यवाही होती है यह किसी को नहीं पता। हां इतना जरूर होता है कि छोटी मोटी शिकायतों का निपटारा करके अपनी वाहवाही के चलते अच्छा खासा लेख समाचार पत्रों में भिजवा दिया जाता है लेकिन भ्रष्टाचार और फर्जीबाडे के बडे मामले तो लगभग गायब ही हो जाते हैं उन पर कार्यवाही नहीं की जाती। शिकायतों को लेकर अगर बात की जाये तो सबसे महत्वपूर्ण होती है मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में की गई शिकायत की फीडबैक देना। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में की गई ज्यादातर शिकायतों पर की गई कार्यवाही फर्जी होती है। शिकायतकर्ता को तो तब हैरानी होती है जब उसके पास भोपाल सीएम हेल्पलाईन के कॉल सेंटर से फोन आता है कि आपकी शिकायत का निराकरण कर दिया गया है। इस लाइन को सुनकर शिकायतकर्ता तो पहले अचंभित हो जाता है कि मेरी शिकायत का निराकरण हो गया और मुझे पता तक नहीं चला। इस पर उक्त कॉल सेंटर से दूसरी लाईन कही जाती है कि शिकायत के आधार पर शिकायकर्ता से संपर्क कर उन्हें पूरी जानकारी दे दी गई। इस पर और अचंभित होकर शिकायतकर्ता हैरानी भरे अंदाज में यह सोचने लगता है कि मुझे शिकायत के संबंध में कॉल आया और बात भी हुई पर मुझे पता कैसे नहीं चला...? ये तो बात थी शिकायत पर की गई कार्यवाही की। अब बात करते हैं जय वीरू की जोडी के आगले किरदार की जो आये दिन अपनी नाकामयाबी के चलते अखबार की सुर्खियोंं में बने रहते हैं। जी हां! अब बात कर रहे हैं जनसेवकों की। अभी हाल ही में शहर में दो ऐसे बडे काण्ड हुए जिनमें दिन दहाडे लोगों को हथियारों की नोंक पर लूटा गया व लूटने का प्रयास किया गया। आये दिन होते ऐसे मामलों से अन्य अपराधियों व माफियाओं के हौंसले तो बढे ही साथ ही अपराधिक मामलों में भी तेजी आई। हालात यह हो गए हैं कि अपराधियों और माफियाओं को जनसेवकों का जरा सा भी भय नहीं रह गया है। जनसेवकों पर हमला कर अपने सामान को ले जाना मुरैना शहर में आम बात हो गई है। तुरंत इन माफियाओं के हमला का जबाव न देना भी इन्हें आगे इसी तरह के कार्य करने को बढावा देना जान पड रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि पूरे मुरैना शहर व जिले में माफियाओं का राज होगा और जन सेवक मूक दर्शक बनकर चुपचाप यह सब तमाशा देखते रहेंगे।

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