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करोड़ों की तस्करी में मुरैना बना सेंटर पॉइंट

गुरुवार, 25 मार्च 2021

/ by Vipin Shukla Mama
अवैध शराब, हथियार व नशीले पदार्थों के तस्कर सक्रिय
(अजय दण्डौतिया की रिपोर्ट)
मुरैना। शहर ही नहीं बल्कि पूरा मुरैना जिला आये दिन तस्करों के पकडे जाने पर चर्चा का विषय बना रहता है। सूत्रों की मानें तो मुरैना ऐसा जिला है जो तीन राज्यों को आपस में जोडता है और यही वह कारण है कि यहां से होकर तस्कर अपना माल अन्य राज्यों तक ले जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि  करोड़ों रूपये के माल की तस्करी मुरैना जिले से की जाती है। चाहे वह अवैध शराब की तस्करी हो, अवैध हथियार या फिर नशीले पदार्थों की। हर तरह की तस्करी में मुरैना अव्वल नंबर पर बना रहता है। प्रमाणिकता की बात करें तो अभी पुलिस मुरैना पुलिस द्वारा ही अवैध और कच्ची शराब के जखीरे पकडे हैं जिन्हें कीमत लाखों से लेकर करोडों तक है आये दो या तीन दिन छोडकर शराब से भरे लग्जरी वाहनों का पकडा जाना तो आम बात हो गई है। इससे पहले भी मुरैना शहर व जिले में अवैध रूप से करोडों रूपये का गांजा, अफीम आदि नशीले पदार्थ पकडे हैं। इसके बाद नंबर आता है अवैध हथियारों की तस्करी का, तो मुरैना शहर ही नहीं पूरे जिले में अवैध हथियारों की तस्कर सक्रिय बने हुए हैं। एक देशी पिस्टल 7 से 12 हजार रूपये तक आसानी से मिल जाती है जिसका जीता जागता प्रमाण कुछ दिन पहले हुई एक बैंक के पास से लूट के प्रयास की वारदात देती है। उन लुटेरों के पास अवैध हथियार कहां से आये पुलिस आज तक इसका पता नहीं लगा सकी है। इन सबमें सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि पुलिस द्वारा आये दिन तस्करों के खिलाफ कार्यवाही होने के बाद भी तस्कर अपना कार्य भली भांति से करने में लगे हुए हैं। कई बार उनका माल पक डे जाने के बाद भी वह तस्करी करना नहीं छोडते। सूत्रों की मानें तो उन्होंने कथित तौर पर यह बताया है कि जब भी पुलिस प्रशासन पर उच्च स्तर से दबाव बनाया जाता है तो एक दो महीने कार्यवाही कर देते हैं बाद बांकी तस्करों से दोस्ती होना कोई नहीं बात नहीं है यही वह कारण है कि इतनी कार्यवाही होने के बाद भी तस्कर सक्रिय बने हुए हैं। इन तस्करों से खुदरा माल खरीदने के लिये मुरैना के नशे के व्यापारी भी कम नहीं हैं। थोडा बहुत माल खरीदकर कुछ नशे के व्यापारी खुलेआम शहर में नशा बेच रहे हैं। 20 रूपये से लेकर 200 रूपये तक की नशे की पुडिया यहां आसानी से मिल जाती है। इसके अलावा बाहर से आई हुई देशी और विदेशी मदिरा भी गांव-गांव में बिना कलारी के आसानी से उपलब्ध हो जाती है। आश्चर्य तो तब होता है कि गांव की तंग गलियों में खुली छोटी मोटी परचूनी की दुकान पर शराब 24 घंटे उपलब्ध रहती है। विदेशी शराब के ज्यादातर ब्राण्ड गांव की इन छोटी मोटी गुमठियों पर आसानी से मिल जाते हैं। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है इस सबकी जानकारी जिम्मेदारों को रहती है पर अच्छा खासा काला धन  मिलने से इन तस्करों को नजअंदाज कर दिया जाता है। शहर ही नहीं बल्कि पूरे जिले में तस्कर अपनी पकड बनाये रखे हैं और यह वर्षों से चला आ रहा है न तो इन पर पहले कोई लगाम लगाई गई थी और न भविष्य में लगाई जायेगी। क्योंकि मिलबांटकर खाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही है और शायद आगे भी चलती रहेगी।
तस्करों के मुखिया पर नहीं आती कोई आंच
सूत्रों की मानें तो अवैध शराब व नशे के कारोबार को संचालित करने वाले तस्करों के मुखिया पर कभी कोई आंच नहीं आती। अगर पुलिस और प्रशासन द्वारा इन तस्करों के खिलाफ कार्यवाही भी की जाती है तो वह बस छोटे-मोटे तस्कर के खिलाफ होती है। हर बार इन तस्करों का मुखिया साफ बचकर निकल जाता है। ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं कि पुलिस प्रशासन द्वारा आये दिन कोई न कोई तस्कर पकडा जाता है जिसके पास लग्जरी गाडी भी होती है लेकिन पुलिस प्रशासन कभी इन तस्करों से उनके मुखिया तक पहुंचाने का प्रयास नहीं करता ऐसा क्यों...? क्या पुलिस प्रशासन छोटे मोटे तस्करों पर कार्यवाही करके अपने उच्च अधिकारियों से शबासी लेने तक ही सीमित है...? अगर इन तस्करों का कोई मुखिया है तो फिर आज तक उसके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई...?  पकडे गए तस्करों से उनके मुखिया का नाम जानना क्या पुलिस प्रशासन अपनी जिम्मेदारी व कर्तव्य नहीं समझते...? अगर पुलिस प्रशासन को तस्कर माफिया के मुखिया का नाम मिल भी जाता है तो फिर उस पर कोई आंच क्यों नहीं आती...? यह ऐसे सवाल हैं जिनका सवाल न तो जिम्मेदार विभाग के पास पहले था और ना है और शायद आगे भी न रहेगा। क्योंकि तस्करी पुलिस कार्यवाही के बाद भी बेखौफ तरीके से जारी है।

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