शिवपुरी। युवा तुर्क दिवाकर शर्मा कहते हैं आखिर क्यों आवश्यक है विषम परिस्थितियों में सकरात्मक रहना ?
बात उन दिनों की है जब अर्जुन, श्रीकृष्ण की मौत की सूचना पाकर विलाप करने लगे। अर्जुन द्वारका में मौजूद श्रीकृष्ण की 16000 रानियों और वहां मौजूद बच्चों को लेकर इंद्रप्रस्थ के लिए रवाना होने लगे। इस बीच समंदर में पानी बढ़ गया और मलेच्छ, लुटेरों ने हमला कर दिया। अर्जुन ने हमलावरों को मारने हेतु जैसे ही धनुष की प्रत्यंचा खींची वह अस्त्र चलाने के सभी मंत्र भूल गए। आखिर अर्जुन जैसा महाप्रतापी वीर योद्धा, जिसने महाभारत युद्ध में कौरवों सहित न जाने कितने पराक्रमी योद्धाओं को परास्त किया वह अर्जुन अस्त्र चलाना भूल गया? कारण था उसके मन में घर कर चुकी निराशा और नकारात्मकता।
मित्रों आज वैश्विक महामारी कोरोना से हमारा देश गुजर रहा है। चारों ओर नकरात्मकता का वातावरण निर्मित किया जा रहा है। परंतु इस नकरात्मकता से क्या इस युद्ध को जीता जा सकता है? कितना भी वीर योद्धा हो यदि उसके मन में नकरात्मकता और निराशा घर कर गई तो उसे एक साधारण सा विरोधी भी हरा सकता है। हम उस देश के वासी है जिसने संपूर्ण दुनिया को ज्ञान - विज्ञान दिया, उठना-बैठना, रहना, खाना यहां तक कि वस्त्र पहनना सिखाया। परंतु हम वर्तमान में अपने गौरवशाली इतिहास को भूलकर हनुमान बने हुए है। आज आवश्यकता है अपने अंदर के हनुमान को पहचानने की और यह भी ध्यान रखें कि कोई जामवंत आकर आपको आपके भीतर विराजमान हनुमान से परिचय नहीं कराएगा बल्कि आपको खुद ही अपना जामवंत भी बनना है और अपने अंदर की हनुमान रूपी शक्तियों से साक्षात्कार कर इस कोरोना नामक बीमारी को जड़ से खत्म करना है। यह होगा तभी जब हम सकरात्मक और आशा के भाव से भरे हुए हों।

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