दिल्ली। आज से देश भर में चैत्र नवरात्र की धूम शुरू हो गई। कोरोना के सत्साह उमंग लोगों को घरों में ही कलश स्थापना मजबूर करेगी। जबकि धार्मिक उत्साह से बंधे भक्त मेले जुलूस नहीं लगा सकेंगे। इस बीच क्या आप ने देश के किसी नगर के बारे में सुना है की वहां शेर पर विराजीं इतनी विराट है शक्तिशाली हैं कि एक समय चीन भारत के युद्ध के सैन्य दस्ते आवास में अड़ गये। तब MP के आईटीबीपी केम्पस के समीप माता काली ने वो शक्ति प्रेरणा दी कि दुश्मन सेना पीछे लौट गई थी।
एक इस दूसरे के शेर का था जलबा
इसी MP शिवपुरी के ऐतिहासिक माँ राज राजेश्वरी नागेस्व्री स्थित है। देश की सेना ऑफिस से लगा यह मंदिर उसी दौर का है। शेर की मौजूदगी के किस्से इस मंदिर को खास बनाते हैं।
पीताम्बरा पीठ MP दतिया शहर मे स्थित देश का एक प्रशिद्ध शक्तिपीठ है श्री गोलोकवासी स्वामीजी महाराज के द्वारा इस स्थान पर “बगलामुखी देवी ” तथा “धूमवाती माता ” की स्थापना की गयी थी पीताम्बरा पीठ मे स्थित वनखण्डेश्वर मंदिर एक महाभारत कालीन शिव मंदिर है ।
जम्मू में स्थित त्रिकूट पर्वत पर मां वैष्णो का निवास है। यहां माता वैष्णो देवी लक्ष्मी, सरस्वती और काली के साथ विराजमान हैं। कलियुग में माता वैष्णो का दर्शन बड़ा ही पुण्यदायी माना गया है। भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में देवी त्रिकूटा जिन्हें माता वैष्णो कहते हैं उन्हें इस स्थान पर रहकर कलियुग के अंत तक भक्तों के कष्ट दूर करने का आदेश दिया था। उस समय से देवी अपनी माताओं के संग यहां वास करती हैं और भगवान के कल्कि अवतार का प्रतीक्षा कर रही हैं। नवरात्र में माता के इस दरबार में दर्शन कर पाना बड़े ही सौभाग्य से होता है।
नैना देवी मंदिर, नैनीतालनैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं.
ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर. मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है. शक्तिपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहां-जहां भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे. शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा गिरी थी.
कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर है. माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.

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