शिवपुरी। नगर के मेडिकल कॉलेज को जल्द आरम्भ किया यह ठीक भी है। 130 पलँग पर मरीज भर्ती हैं। लेकिन कुछ व्यवहारिक कठनाई के चलते यहाँ मरीजों की मौत से मेडिकल कॉलेज की प्रतिष्ठा पर असर पड़ा है। यहां नर्सिंग स्टाफ की कमी बड़ी वजह है, जब तक फुल भर्ती न हो अगर 1, 2 समय मरीज के परिजन अंदर मरीज तक जा सके तो शायद मदद मिल सके। जिला अस्पताल में हल्की प्रवेश ढिलाई वरदान साबित हो रही है।
( योगेंद्र पांडे रिपोर्टर की आँखन देखी रिपोर्ट)
कलक्टर सर मेडिकल कॉलेज में जो भी गंभीर 130 से ज्यादा मरीज एडमिट हैं। उन्हें ऑक्सीजन सहित दवाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन वहाँ नर्सिंग स्टाफ के न होने और मरीज के साथ कोई अटेंडर न होने से मरीजों की हालत खराब हो रही है। उसके कारण ये हैं कि कोरोना से इम्युनिटी घटकर हालात ये हो जाती है कि मरीज खाने पीने तो छोड़िए करवट बदलने की स्थिति में भी नहीं रहता। ऐसे में उसको दवा, ऑक्सीजन के साथ साथ उचित लिक्विड खान पान और उसके देखरेख के साथ साथ उसका मनोवल बढ़ाने के लिए किसी एक अटेंडर की उसे जरूरत है जो वहाँ मेडिकल कॉलेज में बिल्कुल नहीं मिल रही है। इस वजह से मेडिकल कॉलेज में मरीजों की केसुएलिटी ज्यादा संख्या में हो रही हैं। भले ही टूरिस्ट विलेज से पनीर या न्यूट्रिएंट्स के साथ खाना मेडिकल कॉलेज मरीजों को पहुंचाया जा रहा हो लेकिन मरीज जब करवट लेने की हालत में नहीं तब उस खाने को उन्हें खिलाये कौंन ? क्योंकि नर्सिंग स्टाफ 100 मरीजों पर सिर्फ 3 या 4 है। महत्व का एकविन्दु और है कि जिला अस्पताल में मरीज के साथ एक अटेंडर जा पा रहा है, तो मेडिकल कॉलेज में या तो व्यवस्था में स्टाफ को तुरंत बढ़ाया जाए या फिर एक अटेंडर जो मरीज को उसका मनोबल के साथ उसकी देखभाल करने की अनुमति मिलनी चाहिए।
मेडिकल कॉलेज शिवपुरी में कोरोना के भर्ती मरीजों में कोरोना के साथ साथ कई मरीज हार्ट और बीपी के मरीज हैं। चूंकि आज अधिकतर लोगों को ये शिकायत पूर्व से है, जिन्हें ऑक्सीजन लगी होने या उनकी हालत कमजोर होने के चलते वो उठ भी नहीं पा रहे। पानी पी नहीं सकते उन्हें 3- 3 दिनों से हार्ट या बीपी की मेडिसिन तक उपलब्ध नहीं हुई है, यही वजह है कि क्लोटिंग के चलते कई मरीज कोलैप्स हो रहे हैं, क्योंकि मरीजों की संख्या में बहुत कम नर्सिंग स्टाफ को उस मरीज की प्रीवियस हिस्ट्री हार्ट या बीपी के बारे में पता नहीं है। नतीजे में वह तो सिर्फ कोरोना का ट्रीटमेंट या जो मेडिसिन है वो ही उन्हें प्रदान कर रहीं है। इसीलिए मरीज के साथ एक ऐसा उसके घर का एक व्यक्ति अटेंडर हो जो उसे मरीज का माइंड मेकअप के साथ उन्हें खाना और मेडिसिन में सहायक बने, जिसे पता हो कि वो पहले से ही बीपी या हार्ट की भी कोई मेडिसिन लेता रहा है। तब निश्चय ही इसके सुखद परिणाम और व्यवस्थाओं में सुधार होकर मरीजों की हालत में सुधार संभव हो सकेगा।
कोरोना मरीज सबसे ज्यादा ब्लड के क्लॉट के कारण जब ऑक्सीजन नहीं मिलती तो हार्ट अरेस्ट हो जाता है। वहाँ मरीजों को कोरोना दवा तो नर्सेस प्रदान कर रही हैं, लेकिन जिन मरीजों को शुगर, बीपी, हार्ट डिसीज है, उनकी रेगुलर दवाएं उन्हें कोई नहीं दे रहा है। साथ ही कोरोना में मरीज की इम्युनिटी इतनी कमजोर हो जाती है कि वो खाना तो दूर करवट बदलने में भी सक्रिय नहीं रहता। इसलिए उसके साथ एक अटेंडर की आवश्यक जरूरत वहाँ है। यदि जिला होस्पिटल में एक अटेंडर की सुविधा है तो मेडिकल कॉलेज में क्यों नहीं? या फिर नर्सिंग स्टाफ को तत्काल बढाया जाए।
इस तरह हो जाएगा सुधार
मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की पहल पर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग टूरिस्ट विलेज से हाई न्यूट्रिशन का खाना जिसमे पनीर, दाल चावल, सलाद सहित अन्य चीजें मेडिकल कॉलेज में भर्ती मरीजों तक पहुँचा रहा है लेकिन उस उच्च क्वालिटी के खाने की थाली को कितने पेशेंट खा पा रहे हैं यह देखने वाली बात है। वजह कोरोना में बीकनेस के कारण मरीज को करवट तक बदलने में दिक्कत होती है, इसलिए भोजन की अधिकतर थालियां या तो अनुपयोगी साबित हो रहीं है या बेकार हैं। इसमें मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और ज़िला प्रशासन को व्यवहारिक तोर पर यह करना बेहतर होगा कि भले ही समय निर्धारण कर पेशेंट के पास भर्ती स्थल पर उसकी तीमारदारी के लिए मय पीपी किट के सिर्फ कुछ (निर्धारित) तय समय के लिए उसके पास सिर्फ एक व्यक्ति के लिए उसे कुछ खिलाने या उसे उसकी पूर्व से चल रही दवाओं को देने, नारियल पानी आदि हेतु भेजा जाना बेहतर होगा, क्योंकि मरीज कमजोरी की वजह से अपना आत्मबल कमजोर कर लेता है इसलिए उसे वहाँ मनोबल को मोटीवेट करने की जरूरत होती है। यह सही है कि अटेंडर के इन्फेक्शन का खतरा रहता है लेकिन सेफ्टी प्रेकाशन्स के साथ कम समय के लिए उस तक भेजना सिर्फ एक अटेंडर से उसे बहुत मददगार साबित हो सकता है। साथ ही जो मरीज रोटी या चावल नहीं खा पा रहे उन्हें दलिया या नारियल पानी या खिचड़ी या सूप आदि भोजन थाली की जगह या साथ दिया जाए तो बेहतर होगा।
क्रॉस चेक करवा लीजिये सर
सच्चाई का परीक्षण कर लिया जाए कि कितने मरीज भोजन ग्रहण करने की स्थिति में हैं या नहीं। अगर सच है तो इन महत्वपूर्ण सुझावो पर विचार कर उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किये जाने से मरीजों के हालातों में निश्चय ही सुधार की स्थितियां निर्मित हो सकेंगी। कलक्टर सर यह महत्वपूर्ण सुझाव हैं जिन्हें लागू आप ही करवा सकते हैं।
Shukla ji bahut Sahi likha hai aap to khud is sthiti se gujar Chuke hai
जवाब देंहटाएंयह वास्तविक स्थिति है,यदि स्टाफ की कमी है तो सीमित समय के लिए ही सही,पीपीई किट में एक तीमारदार को रोगी की देख वाल हेतु खास तौर से खाने के समय अलाउ
जवाब देंहटाएंकरना चाहिए 🙏👍