मुरैना। (यदुनाथ तोमर फ़ोटो जर्नलिस्ट की रिपोर्ट) बार हेडेड गूज को भारत में स्थानीय भाषा में हंस, बड़ा हंस या सफेद हंस भी कहते हैं। यह एक प्रवासी पक्षी है, जो सर्दियों के मौसम में भारत के लगभग सभी हिस्सों में देखा जा सकता है। चंबल अभ्यारण में भी इस पक्षी की मौजूदगी पर्यटकों को देखने को मिलती है। चंबल अभ्यारण में विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षी अक्टूबर-नवंबर से लेकर मार्च-अप्रैल तक अभ्यारण में समय बिताते हैं क्योंकि यहां का वातावरण इन पक्षियों के हिसाब से अनुकूल है। आपको जानकर हैरानी होगी की आसमान में उड़ने बाला लड़ाकू विमान मिराज से भी ऊंची इस पक्षी की उड़ान है इसका नाम है बार-हेडेड गूज एक हंस है यह हंस परिवार से ही ताल्लुक रखता है जो मध्य एशिया में दक्षिण एशिया में पहाड़ी झीलों और सर्दियों के समय हजारों की संख्या मैं कॉलोनियों में प्रजनन करता है, जहां तक दक्षिण में प्रायद्वीपीय भारत के रूप में है। यह जमीन के घोंसले में एक बार में तीन से आठ अंडे देती है। यह हिमालय के पार प्रवास करते यह चरम ऊंचाई तक पहुंचने के लिए भी जाने जाते है । इसीलिए पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया में सबसे ऊंची उड़ान यह पक्षी उड़ता है। वैसे तो आसमान में तमाम सारे ऐसे पक्षियों के नाम हैं जिनकी उड़ान ऊंचाई तक रहती है मगर बार हेडेड गूंज अपनी ऊंची उड़ान के लिए ही पहचाना जाता है। भारत में अपने प्रवास के दौरान दलदली क्षेत्रों में, खेती के आसपास वाली जगहों, पानी व घास के नजदीक, झीलों, तालाब व पानी के पास देखे जा सकते है। ये एक समूह में रहते हैं।
इस पक्षी की गर्दन व सिर का रंग सफेद, शरीर के बाकी हिस्सों का रंग दूधिया स्लेटी, चोंच व पंजों का रंग नारंगी पीला होता है। सिर पर काले रंग की दो धारियां दिखती है, जो बार (छड़) की तरह होती है। इन्हीं बार के कारण इसका नाम बार हेडेड गूज पड़ा है। इसकी आंख भूरे रंग की होती है। नर व मादा एक जैसे दिखते है, लेकिन मादा आकार में नर से थोड़ी छोटी होती है। ये पक्षी मुख्यत कई प्रकार की घास, जड़े, तना, बीज व फल पानी के आसपास उगी वनस्पति से ग्रहण करते हैं।
आठ हजार किलोमीटर दूर से आते हैं भारत
पक्षियों की यह प्रजाति सर्दियों के मौसम में तिब्बत, कजाकिस्तान, मंगोलिया, रूस आदि जगहों से एक लंबा सफर तय करके हिमालय की ऊंची चोटियों के ऊपर से उड़ कर भारत में आते हैं। ये दुनिया के सबसे अधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले पक्षी हैं, ये लगभग 27 से 29 हजार फीट तक की ऊंचाई पर उड़ कर भारत में पहुंचते हैं। जब इनके गृह क्षेत्र में ठंड बढ़ती है और बर्फबारी शुरू होती है, उस समय ये दक्षिणी एशिया की तरफ प्रवास आरंभ करते है। अपने इस प्रवास से पहले ये काफी अधिक भोजन करके अपने शरीर में काफी वसा जमा कर लेते हैं। जो बाद में इनके सफलता पूर्वक प्रवास में सहायता करता है। लगभग दो माह के समय में ये करीब 8 हजार किलोमीटर दूरी तय करके दक्षिणी भारत तक पहुंचते है। भारत में ये नवंबर-दिसंबर से फरवरी-मार्च तक रहते हैं, इसके बाद वापस अपने स्थान पर लौट जाते हैं।
एक साथ बनाते हैं घोंसले
मध्य एशिया में हजारों की संख्या में एक ही जगह पर प्रजनन करते है। ये आमतौर पर एक ही जोड़ा बनाते हैं। ठंडे देशों में काफी ऊंचाई पर अपने घोंसले बनाते है, जबकि अन्य जगह इनके घोंसले नदी या झील के आसपास जमीन पर बने होते हैं। घोंसले में आसपास उगी हुई वनस्पति का ही प्रयोग करते हैं। एक ही क्षेत्र में सामुदायिक घोंसले बनाते है। काफी पक्षी एक साथ रहते हैं। मादा पक्षी 3 से 8 अंडे देती है। कभी-कभी दूसरी मादा भी एक ही घोंसले में अपने अंडे दे देती है। इसके चूजे दो दिन बाद ही चलना शुरू कर देते हैं और तीन-चार दिन में स्वयं भोजन करने लगते है। इसकी संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण उपयुक्त प्राकृतिक वास का सिकुड़ना, प्रजनन स्थलों का नष्ट होना, अवैध शिकार व अंडों को नुकसान पहुंचना है।

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