शिवपुरी। कोरोनावरियर्स के यूं तो कई किस्से, कहानी हमने सुने हैं। लेकिन यह कहानी कुछ अलग है। यह एक ऐसी योद्धा माँ की कहानी है जिसने मानवसेवा के लिये डॉक्टर के पेशे को चुना। जज्बे से एक मुकाम भी हासिल कर लिया। फिर शादी हुई और 2 मासूम बच्चे भी हैं। इनमें से एक दुदमुहा कलेजे का टुकड़ा भी है, इसी बीच फर्ज निभाने कोरोना में ड्यूटी लग जाती है, तब क्या होता है। आइये मिलवाते हैं आपको, डॉक्टर नीलम्बरि चौकसे से जो मेडिकल कॉलेज शिवपुरी में ऑक्यूपेशनल थेरेपी की डॉक्टर हैं। इनके घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं जिनकी उम्र 1 साल और दूजा ढाई साल। 1 बच्चे को डॉक्टर माँ फीडिंग भी करा रही हैं और आईसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक वह वैक्सीनेशन नहीं करा सकती। इसी बीच कोरोना ड्यूटी आ गई, इस वजह से वह काफी दुविधा में रही। डॉक्टर कहती हैं कि एक मन तो आया कि क्या करे क्या न करें। इधर परिवार ने यह फैसला उनके ऊपर ही छोड़ा। तब डॉक्टर नीलम्बरि ने फैसला लिया की उन्होने 4 साल जिस ऑक्यूपेशनल थेरेपी की डिग्री पाने के लिए मेहनत की है उसे जाया नहीं जाने देंगीं।उन्होंने अपने भगवान का नाम लेकर एवं माता पिता के आशीर्वाद से ड्यूटी करना जरूरी समझा। एक तरफ ड्यूटी थी और एक तरफ बच्चे, तब उन्होंने सोचा कि इस वक्त समाज के लोगों को उनकी जरूरत है। और तब उन्होंने यह निर्णय लिया कि नहीं ड्यूटी भी करेंगे और बच्चों को भी देखेंगे। आपको बता दें कि डॉक्टर नीलांबरी इंदौर से हैं और उनकी शादी शिवपुरी के प्रतिष्ठित चौकसे परिवार में बैडमिंटन के जनेमाने कोच निखिल चौकसे से हुई है। वह बच्चों में मानसिक तौर होने वाली परेशानी को बतौर डॉक्टर दूर करती हैं। हम यही कहँगे की ऐसी सभी योद्धा मातृ शक्तियों को नमन।

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