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खिल गए अमलतास के फूल

बुधवार, 26 मई 2021

/ by Vipin Shukla Mama
गर्मियों में अमलतास लोगों को सुंदर फूलों की वजह से अपनी ओर आकर्षित करता है  
मुरैना। (यदुनाथ सिंह तोमर फ़ोटो जर्नलिस्ट) गर्मियों के मौसम में पीले फूलों की वजह से दूर से ही मन को लुभाने वाला पेड़ सड़क किनारे या जंगलों में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है जिसे हम अमलतास के नाम से जानते हैं।अमलतास को संस्कृत में व्याधिघात, नृप्रद्रुम, आरग्वध, कर्णिकार इत्यादि, मराठी में बहावा, कर्णिकार गुजराती में गरमाष्ठो, बँगला में सोनालू तथा लैटिन में कैसिया फ़िस्चुला कहते हैं। शब्दसागर के अनुसार हिंदी शब्द अमलतास संस्कृत अम्ल (खट्टा) से निकला है।
कैसिया फिस्टुला, जिसे आमतौर पर गोल्डन शावर, पर्जिंग कैसिया, इंडियन लेबर्नम या पुडिंग-पाइप ट्री के रूप में जाना जाता है, सबफ़ैमिली में एक फूल वाला पौधा है, लेग्यूम परिवार का कैसलपिनियोइडी, फैबेसी। यह प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के आस-पास के क्षेत्रों की मूल निवासी है
भारत में इसके वृक्ष प्राय: सब प्रदेशों में मिलते हैं। तने की परिधि तीन से पाँच कदम तक होती है, किंतु वृक्ष बहुत उँचे नहीं होते। धुपकाल (अप्रैल, मई) में पूरा पेड़ पिले फुलों के लंबे लंबे गुच्छोंसे भर जाता है। और ऐसा माना जाता है कि फूल खिलने के बाद 45 दिन में बारिश होती हैं। इस कारण इसे गोल्डन शॉवर ट्री, और इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री भी कहा जाता हैं। शीतकाल में इसमें लगनेवाली, हाथ सवा हाथ लंबी, बेलनाकार काले रंग की फलियाँ पकती हैं। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त, पीले कलझवें रंग का उड़नशील तेल मिलता है।
इस पौधे को महिलाओं के करीबी कहा जाता है क्योंकि गर्मियों के मौसम में जब पीले फूलों के गुच्छे लगते हैं तो महिलाएं अपने बालों पर लगाकर अपना श्रृंगार किया करती हैं इसलिए भी यह पेड़ महिलाओं को भी अधिक पसंद आते हैं।
आयुर्वेद में इस उपयोग इम्यूनिटी बढ़ाने एवं बुखार आदि में किया जाता है। वृक्ष के सब भाग औषधि के काम में आते हैं। कहा गया है, इसके पत्ते मल को ढीला और कफ को दूर करते हैं। फूल कफ और पित्त को नष्ट करते हैं। फली और उसमें का गूदा पित्तनिवारक, कफनाशक, विरेचक तथा वातनाशक हैं फली के गूदे का आमाशय के ऊपर मृदु प्रभाव ही होता है, इसलिए दुर्बल मनुष्यों तथा गर्भवती स्त्रियों को भी विरेचक औषधि के रूप में यह दिया जा सकता है। अफारा, मुंह में पानी आना आदि लक्षणों में भी इसका उपयोग किया जाता है।


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