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धमाका साहित्य कॉर्नर: 'हौसलों से भरा जेहन मेरा तिल-तिल होकर डूब रहा है': अंजली

गुरुवार, 17 जून 2021

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। इंसान के बुढ़ापे की कहानी  मेरी इस गज़ल में मैंने पिरोने की कोशिश की है 

       जब बुढ़ापे में निगाहें तरसती है 
      तब  दिल से आहें  निकलतीं हैं

                #तरसती_निगाहें
अठखेलियां  करता  बचपन  पीछे  कहीं  छूट रहा  है 
अल्हड़  सा  मेरा  यौवन  आज   मुझसे  रूठ  रहा है 

अपने साथ लाई  मैं कभी  सपने और आशायें भरकर 
वही पुराना सन्दूक आज टुकड़े-टुकड़े होकर टूट रहा है 

प्यार  और परिवार का भार अपने  कांधो पर  उठाया 
हौसलों से भरा जेहन मेरा तिल-तिल होकर डूब रहा है

असहनीय  पीड़ाओ की पीर यूँ सहज होकर पी लिया 
छोटी-छोटी  बातों  पर  आज   मन  मेरा  फूट  रहा है

सुबह शाम  चूल्हा  सुलगा कर भूख को तिरप्त किया 
सत्तर के दौर  मेंअब बदन मेरा दाने दाने कूट  रहा है।

तिनका - तिनका   जोड़कर   बनाया  अपना  बागवां
बटबारे  की  लढ़ाई  में आज घर मेरा ही  छूट रहा है।

कतरा - कतरा  जोड़ा  मैंने   आँगन  और  चौबारे   में 
आज चारपाई के लिये कोना-कोना मुझको तूप रहा है

खतरे  के  निशान   पर  ही  टहल  रही  है  ये ज़िन्दगी
और रिश्तों का शामियाना आज आँधियो से जूझ रहा है 

            #कृष्णदीवानी_अंजली ✍️©®
  #कविता

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