दिल्ली। कोरोना ने देश की शान फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह को हमसे छीन लिया। चंडीगढ़ के अस्पताल में मिल्खा 15 दिन से भर्ती होकर कोरोना से जंग लड़ रहे थे। 20 मई को पोजिटिब आये मिल्खा 2 जून को ऑक्सीजन लेवल गिरने पर भर्ती किये गए थे। उनके निधन की खबर से देश भर में सैकड़ों आँखे नम हो गई हैं। इससे 5 दिन पहले पहले भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान उनकी पत्नी निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था।
पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 साल के थे
एथलेटिक्स में भारत का परचम लहराने वाले पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 साल के थे, उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं।
जानिये किसने नाम दिया 'फ्लाइंग सिख'
मिल्खा सिंह 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर रहे। उनके इस नाम के पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। उन्होंने 2016 में इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था। दरअसल,1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता मिला था। मिल्खा देश बंटवारे के गम को नहीं भुला पा रहे थे, इसलिए वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर वह पाकिस्तान जाने के लिए राजी हुए। पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक की तूती बोलती थी और वहां के वह सबसे तेज धावक थे। प्रतियोगिता के दौरान लगभग 60000 पाकिस्तानी फैन्स अब्दुल खालिक का जोश बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए थे। मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया। और इसके बाद से वह फ्लाइंग सिख के नाम से छा गए।
15 संतानों में से एक थे
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में किसान परिवार में हुआ था। लेकिन वह अपने अपने मां-बाप की कुल 15 संतानों में से एक थे। उनका परिवार विभाजन की त्रासदी का शिकार हो गया, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए। इस खौफनाक मंजर को देखने वाले मिल्खा सिंह पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंचे।
'जब मुझे रोटी मिली तो मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया'
मिल्खा ने देश के बंटवारे के बाद दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने दुखदायी दिनों को याद करते हुए कहा था, 'जब पेट खाली हो तो देश के बारे में कोई कैसे सोच सकता है? जब मुझे रोटी मिली तो मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया। 'भूख की वजह से पैदा हुए गुस्से ने उन्हें आखिरकार अपने मुकाम तक पहुंचा दिया। उन्होंने कहा था, 'जब आपके माता-पिता को आपकी आंखों के सामने मार दिया गया हो तो क्या आप कभी भूल पाएंगे... कभी नहीं'
यह उपलब्धियां रहीं उनके नाम
चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण हासिल किया था। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में था, जिसमें वह 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था।
महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह के निधन के साथ एक युग के अंत पर पूरे देश ने शोक जताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमने एक ‘बहुत बड़ा’ खिलाड़ी खो दिया। मोदी ने ट्वीट किया, ‘मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक बहुत बड़ा खिलाड़ी खो दिया, जिनका असंख्य भारतीयों के ह्रदय में विशेष स्थान था। अपने प्रेरक व्यक्तित्व से वे लाखों के चहेते थे। मैं उनके निधन से आहत हूं। ’उन्होंने आगे लिखा, ‘मैंने कुछ दिन पहले ही श्री मिल्खा सिंह जी से बात की थी। मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी बात होगी। उनके जीवन से कई उदीयमान खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी। उनके परिवार और दुनियाभर में उनके प्रशंसकों को मेरी संवेदनाएं’।
भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ने ट्वीट किया, ‘राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा सिंह के नाम 400 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड 38 साल तक रहा. उनके परिवार और उन लाखों लोगों के प्रति संवेदना जिन्हें उन्होंने प्रेरित किया’।

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