न तो शांति समिति और न ही जिला क्राइसिस में महिलाओं का नाम शामिल
(अजय दण्डौतिया की रिपोर्ट)
मुरैना। अक्सर यह देखने और सुनने में आता है कि अब महिलाऐं भी पुरूषों के साथ कदम से कदम बढ़ाकर चलने लगी हैं चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो महिलाओं द्वारा अपनी काबिलियत समय-समय तक बताई व दिखाई जाती रही है। अगर मुरैना जिले की बात की जाये तो यहां कई विभागों की प्रमुख महिला अधिकारी ही हैं साथ ही समाजिक तौर पर अपनी भागीदारी निभाने के लिये भी महिलाऐं तत्पर रहती हैं। बावजूद इसके जिला प्रशासन मुरैना द्वारा महिला जनप्रतिनिधियों को इतनी तबज्जो नहीं दी जा रही है। हम बात कर रहे हैं जिला प्रशासन द्वारा सामाजिक मुद््दों पर चर्चा के दौरान गठित की गई समिति की। जी हां! मुरैना में शांति समिति की बैठक हो या फिर जिला क्राइसिस की। इनमें से किसी भी समिति में महिला जनप्रतिनिधियों के नाम शामिल नहीं किये गये हैं। आखिर ऐसी क्या वजह है कि जिला प्रशासन सहित समिति के सदस्यों का चुनाव करने वाले मठाधीश महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाते। निर्णयों को लेने में अगर प्रशासन में ही महिला अधिकारियों की बात की जाये तो ऐसे कई विभाग हैं जहां इन महिला अधिकारियों द्वारा उनकी सूझबूझ से लिये गये निर्णय व किये गये कार्य निश्चित तौर पर सराहनीय रहे हैं। ताजा तरीन उदाहरण लें तो वन विभाग की एसडीओ श्रृद्धा पाढरे, आबकारी विभाग की निधि जैन, आरटीओ कार्यालय अर्चना परिहार, महिला बाल विकास विभाग, सबलगढ एसडीएम अंकिता धाकरे आदि महिला अधिकारी हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। वहीं अगर शहर की महिला जनप्रतिनिधियों और समाज के लिये कार्य करने वाली महिलाओं पर नजर डाली जाये तो उसमें एडव्होकेड आशा सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष गीता हर्षाना, पत्रकार व समाजसेवी अनुराधा गुप्ता, मीना दरसिंह सिकरवार पूर्व पार्षद आदि शामिल हैं। इन सभी महिला जनप्रतिनिधियों ने समाज के लिये कई महत्वपूर्ण कार्य किया साथ ही साथ महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की आवाज शासन प्रशासन तक समय-समय तक पहुंचाती भी रहीं। बावजूद इसके जिला प्रशासन इन्हें सामाजिक बैठकों में किसी भी तरह से कोई जगह नहीं दे रहा। आईये जानते हैं खुद महिला जनप्रतिनिधियों की जुवानी---
समाज सेवा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालीं एडव्होकेड आशा सिंह ने कहा कि यह बिल्कुल भी न्याय संगत नहीं है कि महिलाओं को प्रशासन की जनहितैषी बैठकों जैसे शांति समिति और जिला क्राइसिस में जगह नहीं दी गई। इससे साफ सिद्ध होता है कि प्रशासन महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है। जबकि इस लॉकडाउन के समय में भी कई ऐसे मुद््दे थे जिन पर प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की कोई चर्चा नहीं की गई। अगर प्रशासन महिलाओं को इन बैठकों में शामिल करते तो निश्चित ही महामारी के इस समय में और भी अधिक सफलता प्राप्त हो सकती थी। आज प्रत्येक क्षेत्र में महिलाऐं आगे आकर अपना सहयोग दे रही हैं। लेकिन प्रशासन द्वारा जिनहितैषी महत्वपूर्ण बैठकों में किसी महिला जनप्रतिनिधि को स्थान न देना बिल्कुल भी न्याय संगत नहीं है। ऐसे कई मुद््दे हैं जो सामाजिक हित में काफी महत्वपूर्ण हैं जिन पर मैंने जिला कलेक्टर से चर्चा भी की लेकिन उनका ध्यान इन मुद््दों पर अभी तक नहीं गया है।
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बैठकों में महिलाओं की राय जानना जरूरी : हेमा अग्रवाल
समाजसेवा में कई वर्षों से अपना योगदान देने वालीं समाजसेविका हेमा अग्रवाल ने बताया कि प्रशासन की बैठकों में महिला जनप्रतिनिधि को शामिल न किया जाना निश्चित ही निंदनीय है। इससे पहले भी शहर में कमिश्रर और कलेक्टर महिला ही थीं और उनके द्वारा शहर के सामाजिक मुद््दों में महिलाओं की राय सबसे पहले ली जाती थी लेकिन वर्तमान में पदस्थ कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक द्वारा महिलाओं की राय जानना शायद उचित नही ंसमझा जाता। मेरे द्वारा ऐसे कई मुद््दे हैं जो जिला प्रशासन के समक्ष रखे गये हैं लेकिन अभी तक उन पर प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है। जैसे ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली महिलाओं को बाजार में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसमें उदाहरण के तौर पर महिला प्रसाधान किसी भी बाजार में नहीं है। यह वर्तमान में महिलाओं के लिये सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है और भी ऐसे कई मुद््दे हैं जिनमें महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पडता है लेकिन जिला प्रशासन महिलाओं की इन समस्याओं को सामने रखने वालीं किसी भी महिला जनप्रतिनिधियों की आवाज को सुनने तक तैयार नहीं है।
महिलाओं का पक्ष न जानना उनकी प्रशासन की अपनी सोच : संजू शर्मा
कांग्रेस की संजू शर्मा ने इस मुद््दे पर अपनी बात रखते हुए कहा कि महिलाओं को बैठकों में स्थान न देना व उनका पक्ष न सुनना प्रशासन की अपनी सोच है। होता तो यह भी है कि कुछ प्रतिनिधि अपने आपको फोटो खिंचवाकर बड़ा दिखाने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही कुछ हाल शांति समिति और जिला क्राइसिस की बैठकों में भी देखने को मिलता है। लेकिन प्रशासन को यह सोचना चाहिए कि एक महिला जनप्रतिनिधि का पक्ष भी सामाजिक मुद््दों की बैठकों में अवश्य रखना चाहिए। वर्तमान में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां महिलाऐं पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर न चल रही हों लेकिन मुरैना जिले की प्रशासनिक व्यवस्था को शायद ऐसा नजर नहीं आता या वह जरूरी नहीं समझता कि महिलाओं को शहर के महत्वपूर्ण मुद््दों की बैठकों में शामिल किया जाना चाहिए।

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