विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार की जांच निवृत्त न्यायाधीश के माध्यम से कराई जाए, कलक्टर अक्षय को दिया ज्ञापन
शिवपुरी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने राज्यपाल के नाम जिलाधीश अक्षय सिंह को ज्ञापन सौंपा जिसमे नगर मंत्री विवेक धाकड़ का कहना है कि इस ज्ञापन के माध्यम से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मध्यप्रदेश का आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय पिछले कही दिनों से चर्चा के केंद्र में है। भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की बलि चढ़ चुका यह विश्वविद्यालय शिक्षा जगत में अपनी शाख खो चुका है। हद तो यह हो गई की विश्वविद्यालय के सत्ताधीश खुद इसमें शामिल हैं। कहीं न कहीं सरकार का विश्वविद्यालय के प्रति दुर्रलक्ष्य भी इसके लिए जिम्मेदार है। चिकत्सा शिक्षा प्रदान करने वाला यह विश्वविद्यालय यह न केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है अपितु शैक्षणिक गुणवत्ता के मूल्यांकन में गड़बड़ियों के कारण यह बृहद रूप से मध्यप्रदेश की जनता के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक जिम्मेदार संगठन के नाते कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन की आंखे खोलने का कार्य करता रहा है।
वास्तव में देखा जाए तो आज विश्वविद्यालय के कुलपति की अकर्मण्यता और निष्क्रियता भी कही न कही शंका के घेरे में है, 500 से अधिक महाविद्यालयों की संबंद्धता रखने वाले आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में स्वीकृत पदों के सामने मर्यादित नियमित कर्मचारियों की संख्या का होना और कुलसचिव, उपकुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर मात्र प्रतिनियुक्ति ने भी विश्वविद्यालय की लचर व्यवस्था को जन्म दिया है।
इस संबंध में अगर उदाहरण देखे जाए तो वे इस प्रकार हैं।
1)दिनांक 18/09/2020 को विश्वविद्यालय में दो उपकुलसचिव पद पर प्रतिनियुक्ति हेतु आवेदन मंगवाए गए थे। इसकी एवज में दिनांक 18 /11/ 2020 चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा डॉ. जे. के. गुप्ता (homeopathic Medical officer Bhopal ) डॉ. आर. पी. पांडे (आयुष मेडिकल ऑफिसर, नरसिंहपुर) की प्रतिनियुक्ति वरिष्ठता एवं योग्यता में अनदेखी कर की गई! दोनों चिकित्सा अधिकारी द्वितीय श्रेणी ग्रेड पे 5400 धारक है । जबकि शासन द्वारा उप कुलसचिव पद हेतु ग्रेड पे 7600 धारण कक्षाओं से आवेदन मंगवाए गए थे।
यह भी ज्ञात रहे कि डॉक्टर जे.के.गुप्ता के विरुद्ध पूर्व में भी भ्रष्टाचार के कई आरोप लग चुके हैं तथा कई आरोपों के जांच प्रतिवेदन में दोषी पाए जाने के बावजूद विश्वविद्यालय के उपकुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर प्रतिनियुक्ति की गई। यहां तक की द टाइम्स ग्रुप द्वारा भी दिनांक 14/07/2020 को मध्य प्रदेश के आयुष विभाग के आयुक्त को संबोधित कर लिखे हुए पत्र में डॉ. गुप्ता के कई कारनामों का उल्लेख किया गया है। डॉक्टर जे.के.गुप्ता को आयुष संचनालय भोपाल में ओ.एस.डी का पद स्वीकृत नहीं होने के बावजूद 2015 में पदस्थ किया गया, संचनालय के सभी महत्वपूर्ण कार्य भी डॉ.गुप्ता के हस्ताक्षर से होने लगे, उनके ही कार्यकाल में स्वैच्छिक स्थानांतरण के फर्जी आवेदन लगाकर कई स्थानांतरण कर दिए गए। जिसकी विस्तृत फरियाद श्री अजय विश्नोई (विधायक- पाटन) द्वारा 2 नवंबर 2019 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी को की गई थी। प्रतिनियुक्त के नियमों को दरकिनार कर डॉक्टर जे.के.गुप्ता को विभागीय जांच होने के बावजूद भी विश्वविद्यालय मैं क्यों नियुक्ति दी गई ? एवं फर्जी नोटिस के आरोपी को किस आधार पर महत्वपूर्ण पद उप कुलसचिव का प्रभार दिया गया है?
2)चिकित्सा विश्वविद्यालय वर्तमान स्थिति में न केवल भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है अपितु अन्य अनअधिकृत लोगों का अड्डा बना हुआ है, जिसकी पुष्टि 18 मार्च 2021 को विश्वविद्यालय के नियमित कर्मचारियों द्वारा कुलपति को संबोधित कर लिखे हुए पत्र से हो रही है।
फरवरी माह 2021 में उत्तर पुस्तिका का बंडल बाथरूम मे नष्ट किया हुआ मिलना तथा मार्च 2021 में उत्तर पुस्तिकाओं का विश्वविद्यालय के भवन के बाहर फेंक कर जलाने का प्रयास हो यह सब विश्वविद्यालय के गोपनीय विभाग की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
आउट सोर्स एजेंसी के माध्यम से कार्यरत एंट्री ऑपरेटर द्वारा छात्र-छात्राओं के विभिन्न कार्य के लिए पैसों की मांग करना यह खुलेआम भ्रष्टाचार का उदाहरण है।
प्रभारी कुलसचिव डॉक्टर जे.के.गुप्ता एवं उप कुलसचिव डॉ तृप्ति गुप्ता की जुगलबंदी में नितिन गुप्ता नाम के अनअधिकृत एवं बाहरी व्यक्ति की एंट्री कई प्रकार के संदेह उपस्थित करता है। नितिन गुप्ता यह विश्वविद्यालय का न कोई अधिकृत कर्मचारी है न आउटसोर्सिंग कंपनी का है। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में उसकी पहुंच तथा विश्वविद्यालय अधिकारियों द्वारा उसको खुला संरक्षण यह भी कई प्रकार की शंकाओं को जन्म देता है।
पिछले दिनों उत्तर पुस्तिका कांड में विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुमोदन के पश्चात की गई पुलिस एफ. आई.आर भी कुलपति के अनुमोदन से ही वापस लेना यह कुलपति की कार्यदक्षता के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
3)विश्वविद्यालय में कुलपति की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में है। माननीय कुलपति महोदय का सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही विश्वविद्यालय में आना और बाकी दिन माननीय कुलपति का अपने भोपाल निवास में रहना विश्वविद्यालय की कार्य क्षमता पर बड़ा असर डालता है। विश्वविद्यालय कार्य में अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार होने का यह भी एक कारण है।
विश्वविद्यालय में जब से पदस्थ हुए हैं तब से कुलपति शासकीय आवास छोड़कर एक निजी महाविद्यालय के गेस्ट हाउस में रहते हैं, जिसका उद्देश्य कहीं न कहीं निजी महाविद्यालय को लाभ पहुंचाना प्रतीत होता है।
4)माइंड लॉजिक कंपनी के प्रतिनिधि सुधीर शर्मा द्वारा विगत कई वर्षों से विश्वविद्यालय में भ्रष्ट अधिकारियों के साथ सांठ -गांठ कर भ्रष्टाचार किया जा रहा है,जो भी अधिकारी इसका विरोध करता है तो किसी ने किसी प्रकरण मैं फसा कर विश्वविद्यालय से बाहर किया जा रहा है।
अभी पिछले सप्ताह की घटना के अनुसार ही एन.एस.सी.बी मेडिकल कॉलेज के एक प्रोफेसर डॉ सोनू अजवानी द्वारा पैरामेडिकल कोर्स की कोई भी कॉपी चेक न करने के बावजूद माइंड लॉजिक के पोर्टल पर उनके अकाउंट में दर्शाया जा रहा है। जिसकी शिकायत उक्त प्रोफ़ेसर द्वारा लिखित रूप में परीक्षा नियंत्रक को की गई है। किंतु आज दिनांक तक उस विषय में कोई कार्यवाही नहीं की गई है यह अत्यंत गंभीर विषय है।
5)डॉ तृप्ति गुप्ता ने नियम विरुद्ध जा कर डेढ़ सौ से ज्यादा ऑफलाइन आवेदन स्वीकार कर के शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाया। मध्य प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में प्रवेश से ज्यादा नामांकन कर और उन फर्जी नामांकन के आधार पर गलत तरीके से छात्रों को परीक्षा में बिठाया गया।
सत्र 2017-18 के नामांकन में गड़बड़ी की दोषी डॉ तृप्ति गुप्ता को पिछली सरकार ने जांच में दोषी मानते हुए उन्हें मूल विभाग भेज दिया गया था परंतु 2019 में नवीन सरकार में उन्हें पुनः विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार पद पर लाना बड़े ही सवाल खड़ा करता है।
6)प्विश्वविद्यालय का वर्ष 2021-22 का वार्षिक बजट बनाकर निर्धारित तिथि 31 मार्च 2021 तक कार्य परिषद द्वारा पारित न होने के बावजूद भी विश्वविद्यालय के अधिकारियों डॉ टी. एन. दुबे (कुलपति) डॉ जेके गुप्ता (कुलसचिव) डॉ आर एस डिकोट (वित्त नियंत्रक) द्वारा अवैधानिक रूप से लाखों रुपए के भुगतान कर दिया गए! जिस में स्वीकृत करता कुलपति एवं हस्ताक्षर करता कुलसचिव व वित्त नियंत्रक है।
दिनांक 31 मार्च 2021 तैयार करने एवं कार्य परिषद के समक्ष अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करने में असफल होने रहने के कारण कुलपति डॉ. टी.एन.दुबे कुलसचिव डॉ. जै.के.गुप्ता वित्त नियंत्रक श्री आर.एस.डेकाटे मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर अधिनियम की धारा 50 के उल्लंघन के स्पष्ट दोषी है।
दिनांक 1 अप्रैल 2021 से जून 2021 में आज दिनांक तक बिना बजट प्रावधान के लाखों रुपए का अवैधानिक भुगतान जानबूझकर वि. वि सत्ताधीशों द्वारा किया जाना अत्यंत गंभीर वित्तीय अनियमितता है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का यह अभिमत है की मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर अधिनियम के अध्याय 10 के अनुसार आपात की धारा 50/(1) के तहत भ्रष्टाचार में लिप्त कुलपति डॉ. टी. एन. दुबे को पद से हटाकर एवं कुलसचिव डॉ. जै. के गुप्ता तथा वित्त नियंत्रक श्री आर. एस. डेकाटे तत्काल निलंबित करके वित्त व्यवस्था मध्य प्रदेश शासन के अधीन ली जाना चाहिए।
7)परीक्षा नियंत्रक डॉ. वृंदा सक्सेना द्वारा परीक्षा नियंत्रक का प्रभार न होते हुए भी माइंड लॉजिक कंपनी को छात्रों के परिणाम अपने व्यक्तिगत ई-मेल से भेजना तथा परिणाम घोषित करना यह निजी कॉलेजों के लाभ पोहंचाने जैसा प्रतीत होता है। इस संदर्भ में कुलपति महोदय के समक्ष शिकायत के बाद उनको सुबह इस कार्य से मुक्त करना और शाम को वापस कार्यभार देना यह संदेह उत्पन्न करता है।
8) विश्वविद्यालय स्थापना के इतने समय पश्चात भी विश्वविद्यालय परिसर प्राथमिक सुविधाओं के लिए तरस रहा है, जिससे जबलपुर बाहर से आने वाले विद्यार्थियों को कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ABVP का मानना हैं की विश्वविद्यालय के द्वारा विद्यार्थी गेस्ट हाउस की सुविधा दी जाए।
9) विश्वविद्यालय के परीक्षा और परिणाम में अनियमत्ताओ के कारण विद्यार्थी समुदाय का नुकसान हो रहा है, अभाविप का यह सुविचारित मत है कि विश्वविद्यालय द्वारा अपना अकादमिक कैलेंडर घोषित किया जाए तथा उसका सम्पूर्ण पालन किया जाए।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का उपरोक्त बातों से यह सुविचारित मत बनता है कि वास्तव में चिकित्सा विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं का केंद्र बन चुका है। उससे उबरने के लिए विश्वविद्यालय में पदस्थ सभी पदाधिकारियों की नियमित नियुक्ति करना अति आवश्यक है। विश्वविद्यालय के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विश्वविद्यालय के कुलपति संदेह के घेरे में है। ऐसे में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यह मांग करती है कि तत्काल रुप से विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाया जाए तथा कुलसचिव एवं उप कुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियमित नियुक्ति की जाए।
भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं में संलिप्त ऐसे अधिकारियों द्वारा विश्व विद्यालय की केवल प्रतिमा को ही लांछन नहीं लग रहा अपितु चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर रहे हजारों विद्यार्थियों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है। मध्य प्रदेश शासन के द्वारा इस विषय निवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच बिठाने की मांग करती है। अगर उचित कार्यवाही नहीं की जाती है तो विद्यार्थी परिषद चरणबद्ध आंदोलन चलाने के लिए मजबूर होगी जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन की होगी। प्रतिनिधि मंडल में जिला संयोजक मयंक राठौर नगर मंत्री विवेक धाकड़ प्रांत कार्यकारिणी सदस्य दीपा जाटव,नगर सहमंत्री संदीप शर्मा,महाविधालय सहप्रमुख रत्नेश तिवारी,रमन राठौर उपस्थित रहे।

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