इस वर्ष नागपंचमी का विशेष महत्व और शुभदायक है। पंचमी तिथि का देवता सर्प है। राहु सर्प का स्वरूप है। लग्न का स्वामी चंद्रमा बुध के साथ है। लग्न में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी मंगल के साथ होने से सर्पयोग बन रहा है। इस प्रकार के योग में सर्प देवता का पूजन करने से सर्पदंश का भय नहीं रहता।*
*प्रान्त अनुसार पूजन के तरिको में कुछ फर्क हो सकता है किन्तु महत्व सब जगह एक समान ही है।*
*मनुष्यों और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं में झलकता रहा है । शेषनाग के सहस्र फनों पर पृथ्वी टिकी है, भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशय्या पर सोते हैं, शिवजी के गले में सर्पों के हार है, कृष्ण-जन्म पर नाग की सहायता से ही वसुदेवजी ने यमुना पार की थी। जन्मजेय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने हेतु सर्पों का नाश करनेवाला जो सर्पयज्ञ आरम्भ किया था, वह आस्तीक मुनि के कहने पर इसी पंचमी के दिन बंद किया था । यहाँ तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की भी मदद वासुकि नाग ने की थी । अतः नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है – नागपंचमी*
*नाग पंचमी के आरंभिक इतिहास के संबंध में श्रीवराह पुराण में लिखा है कि इस शुभ तिथि को सृजन शक्ति के अधिष्ठता ब्रम्हाजी ने अपने प्रसाद से शेषनाग को अलंकृत किया और पृथ्वी का भार धारण करने जैसी सेवा के लिए जनता ने उनकी प्रशंसा की थी। कहा जाता है कि तभी से इस त्योहार को नाग जाति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का प्रतीक मान लिया गया है। यजुर्वेद में भी नागों के गुण, कीर्ति, प्रशंसा और पूजन का उल्लेख मिलता है। इस व्रत का माहात्म्य पढऩे या सुनने मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते है।
कहीं घर के मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है।*
*नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र:-*
*नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास :-*
*नाग पंचमी पर स्थानीय कथाएं अधिक प्रचलित होती हैं जिनमे कहीं राजा और नागदेव, कहीं सती पत्नी और नागदेव तो कहीं किसान और नागदेव की कथाएँ अधिक प्रचलित है।*
*पुराणों से:-*
राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कद्रु अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कद्रु ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी । विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कद्रु ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे। कद्रु ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज जन्मजेय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों का के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है। कहते है जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते है । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं एवं १२ प्रमुख नाग क्रमश अनंत, बासुकि, शंख व पद्म, कंबल, कर्कोटक तथा अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, एवं कालिया, तक्षक, और पिंगल इन सभी नागों की बारह माह में क्रमशः पूजा विधान के साथ करते है। जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ किया था।
जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।
*नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।*
*।।श्री सर्प सूक्तम।।*
*ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।*
*इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।*
*कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।*
*इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।*
*सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।*
*मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।*
*पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।*
*सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।*
*ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।*
*समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।*
*रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।*
*(१)नाग गायत्री मंत्र :-*
*ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि*
*तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll*
*(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र*
*महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।*
*मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।*
*ध्यानः-*
*चारु-चम्पक-वर्णाभां,* *सर्वांग-सु-मनोहराम् ।*
*नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।*
*।। मूल-स्तोत्र ।।*
*।। श्रीनारायण उवाच ।।*
*नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।*
*नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
*बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।*
*नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।*
*तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
*साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।*
*।। फल-श्रुति ।।*
*इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।*
*यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।*
*न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।*
*वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।*
*(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।*
*जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।*
*जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।*
*वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।* *जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।
*महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।*
*द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्
*तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।*
*(४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-*
*चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करे।*
*नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करे।*
*(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-*
*इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।*
*'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।*
*ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।*
*ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।*
*ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'*
*अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दे। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम।*
*(६) धन धान्य प्राप्ति:-*
*मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता है। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते है।*
*।।नवनाग स्तोत्र ll*
*अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं*
*शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा*
*एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं*
*सायँकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः*
*तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत*
*ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll*
*(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-*
श्री नाग स्तोत्र:-
*अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।*
*सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥*
*मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।*
*विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥*
*अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
*कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥*
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥
॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
(८) कन्या के विवाह हेतु:
जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हो, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।
(९) विशेष प्रसाद
नाग देवता की प्रसन्नता के लिए इस दिन खीर बनाकर पूजन कर प्रसाद लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दे।
विशेष बात: यह खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वंय न खाए न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दे, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर देवें।

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