खनियांधाना। नगर के 1008 श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में विराजमान मुनि श्री 108 निर्णय सागर जी महाराज ने प्रवचन में कहा कि हमारे समाज में लोगों की पहचान उनके संस्कार से की जाती है। हालांकि जीने के लिए संस्कार ही काफी नहीं है बल्कि उसके लिए हमें और भी कई चीजों की जरूरत होती है। अगर आप एक सभ्य भारतीय परिवार से हैं तो जरूरी है कि आपके घर के बच्चों को अपने आसपास के लोगों से, समाज में जीने के और एक राष्ट्र के सभ्य नागरिक के रूप में जीने के संस्कार दें। एक संस्कारी बेटी और बेटा समाज की नींव होती है और अच्छे संस्कारी समाज से ही राष्ट्र की उन्नति की दिशा तय होती है। अगर हम अपने बच्चों को दौलत देने से पहले संस्कार नहीं देंगे तो आपकी दौलत बच्चों के पाप कार्य मे सहायक होगी और क्रम से दुःख का कारण बनेगी। माता पिता का कर्तव्य सिर्फ बच्चो को जन्म देकर बड़ा करना नही होता,उनको सही मार्ग पर चलाना भी मातापिता का कर्तव्य हैं। 8 वर्ष तक अगर बच्चा अन्छना पानी पिये,रात्रि भोजन करे,मंदिर न जाये,पाप करे उसका पाप माता-पिता को लगता हैं।
इसी क्रम में मुनि श्री ने बताया कि संयम बन्धन ही रक्षाबंधन हैं जो कर्मो से हमारी रक्षा करता हैं। संयम से बंधा हुआ व्यक्ति कभी किसी की हानि नही कर सकता, संयम को अनुशासन से भी समझ सकते हैं।जिस तरह अनुशासन में प्रत्येक कार्य मे संयम रखा जाता हैं वैसे ही इंद्रियों के भोगो की इच्छा पर नियंत्रण रखना संयम हैं। हम जो व्रत आदि करते हैं वह सब कर्म निर्जरा के लिए ही किये जाते हैं। व्रतों को करके संसारी सुखों की कामना व्यर्थ हैं, क्योकि संसार के सुख कुछ समय के लिए होते हैं।
व्रत आदि को सिर्फ धर्म से जोड़ का न देखा जाए,यह हमारे लौकिक जीवन मे हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उपयोगी होते हैं,बहुत से चिकित्सक कहती हैं कि महीने में 1-2 उपवास करने से हमारे शरीर की सारी गंदगी साफ हो जाती हैं और शरीर स्वस्थ्य बनता हैं।रोगों की उत्पत्ति कम हो जाती हैं।
अपनी शक्ति के अनुसार तप संयम करते रहना चाहिए। चातुर्मास के इन दिनों में साधु समागम को पा कर पूरे नगर में नैतिक और धार्मिक माहौल बना हुआ हैं। धार्मिक विषयो में लोगो की रुचि बढ़ रही हैं।

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