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'धमाका साहित्य कॉर्नर': मिट गई है जिंदगी, इस बहते पानी में, बैठकों पर बैठकें हैं, राजधानी में

शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

/ by Vipin Shukla Mama
एक नवगीत.................!
शिवपुरी। मिट गई है जिंदगी, इस बहते पानी में। बैठकों पर बैठकें हैं, राजधानी में। 
देखने आकाश से 
फैली तबाही को। 
नग्न लाशें, भग्न घर 
मिलते गवाही को। 
लौट कर कहते अधूरा सच, बयानी में। 
बैठकों पर बैठकें हैं राजधानी में। 
भूख से व्याकुल कहीं पर
ठण्ड से कांपें। 
उड़ रहे आकाश में पर
धरा को मापें। 
किंतु उठते हाथ न दिखते निशानी में। 
बैठकों पर बैठकें हैं राजधानी में। 
कुछ अनोखे लोग भी हैं
जो बचाते हैं। 
कुछ अनोखे लोग भी हैं 
जो सताते हैं। 
दे रहा है सीख पानी इस रवानी में। 
बैठकों पर बैठकें हैं राजधानी में। 
डॉ मुकेश अनुरागी शिवपुरी

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