खनियांधाना। नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में विराजमान मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज ने प्रवचन में कहा कि लोभ पाप का बाप हैं, यह सत्य हैं, संसार की दशा को बतलाने वाली कहावत हैं यह,लोग लोभ में आ कर क्या क्या पाप कर सकते हैं इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता,लोभ के कारण ही जीव धनादि का संग्रह करना शुरू कर देता हैं, यह स्वयं नरक का कारण हैं।
मुनि श्री ने बताया कि एक बार पन्ना शहर की घटना हैं जब एक व्यक्ति ने कुछ हीरों के लिए अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी थी। वह परिवार जिसके साथ हम रहते हैं जो हमारे सुख दुख का साथी होता हैं लोभ में आ करकेे अपने परिवार के बारे में एक बार भी विचार नही किया। यह लोभ पाप बन्ध का कारण हैं। जब तक लोभ रहता हैं मनुष्य के अंदर पाप छुपा रहता हैं। पाप का मित्र लोभ हैं जो कि हमेसा साथ साथ रहता हैं। इसी प्रकार क्रोध ज्यादा से ज्यादा प्रेम प्रीत को मिटा सकता है, मान/अभिमान विनय को नष्ट कर सकता है, माया मित्रता का संबंधो का नुकसान कर सकती है, लेकिन लोभ सब कुछ विनाश कर देता है। इसीलिए कहा जाता है की लोभ सभी पाप का बाप है ।
सभी को अपने अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता हैं।कर्म बहुत बलवान होते हैं। यह बड़े बड़े सेठ को भिखारी और भिखारी को सेठ बनाने में समर्थ हैं। कर्म के कारण ही किसी के पास साधन तो होते हैं पर वह उसका उपयोग नही कर पाते और जिनके पास उपयोग करने की सामर्थ्य होती उनके पास साधन उपलब्ध नहीं होते। कर्म रिश्वत नहीं लेते,पूरी ईमानदारी से अपना काम करते हैं। हमें कर्मो को ध्यान में रख कर क्रिया करनी चाहिए।
लोभ को करें कम, संवर जाएगा जीवन
लोभ' को कम करने से जीवन में अन्य बहुत से पाप स्वतः कम हो जाएंगे। लोभ कम करने से मान, माया और क्रोध भी कम होता चला जाता है। फिर उसके द्वारा हिंसा भी कम हुई, झूठ, चोरी और परिग्रह भी कम होगा। सभी पापों को कम करने की एक दवा है, हम सबसे पहले अपने लोभ को कम करें।

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