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जागरण की बेला का विमोचन समारोह सम्पन्न, कवियों ने किया कविता पाठ

सोमवार, 2 अगस्त 2021

/ by Vipin Shukla Mama
करैरा। करैरा के वरिष्ठ साहित्यकार श्री चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव की तृतीय पुस्तक " जागरण की बेला" का विमोचन समारोह आयोजित किया गया  ,कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव उपस्थित रहे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रशिद्ध गीतकार घनश्याम योगी ने की ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में विवेकानंद बाल मंदिर के वरिष्ठ शिक्षक सुनील श्रीवास्तव  उपस्थित रहे ।
अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की पूजा की गई ततपश्चात पुस्तक विमोचन एवं अतिथि सम्मान  साल श्री फल से किया गया ।
माँ सरस्वती की वंदना घनश्याम योगी ने प्रस्तुत की तथा वेदप्रकाश दुबे ने प्रेरणा गीत का पाठ किया ।                *जगत में कोई न परमानेंट                    
जगत में कोई न परमानेंट "
श्री घनश्याम योगी ने अपने गीत से सभी का मन मोह लिया,
  "सागर के पार कैसे जाऊँ री सजनियां, 
    प्रीतम से कैसे मिल पाऊ री सजनियां।"
प्रमोद गुप्ता भारती ने बुंदेली कविताओं से एक नया मोड़ दिया,साथ ही उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया
    "मेरा है अस्तित्व यही
मैं एक बुलबुला पानी का ,
फिर भी देख रहा हूं सपना
राजा बन रजधानी का I
वो परियों की रानी है
और मैं गलियों का बंजारा ,
वो है गंगा जैसी शीतल
मैं सागर सा खारा ,
क्या होगा अंजाम पता है
ऐसी प्रेम कहानी का ,
फिर भी देख रहा हूं सपना
राजा बन रजधानी का I
कवि सौरभ तिवारी ने अपनी कविता अपने पिता को समर्पित की ।
  बैठ पिता के कांधों पर
इठलाने को मन करता है।
मेले के खेल खिलौनों को
घर लाने को,मन करता है ।।
काली रातों में नहीं
होते अब अपराध।
दिन में दफ्तर खोलते
साढ़े दस के बात  ।।                            
इसी क्रम में सतीश श्रीवास्तव ने कविता सुनाई,
" जीवन पथ पर अनजाने में कितने पाप का बोझा ढोया,
गंगा कितना धो पाएगी जब तक मन का मैल न धोया।
ढूंढ रहा मृग वन वन जाकर
कस्तूरी खुद में रहती है,
मन के मैल को धोने वाली
मन में ही गंगा बहती है।
तुम्हें पता है कितना पाया और यहां पर कितना खोया,
गंगा कितना धो पाएगी जब तक मन का मैल न धोया।"
डॉ राजेंद्र गुप्ता ने पुस्तक पर चर्चा करते हुए अपनी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.          
रोज मरते हैं रोज जीते हैं                   
जिंदगी में कहाँ सुभीते हैं.            
साहित्यकार चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव ने अपनी प्रकाशित पुस्तक की श्रेष्ठ कविताओं का पाठ किया.                           
इनको करो सलाम, अरे ये अफसर हैं, 
इनके रहो गुलाम अरे ये अफसर हैं.
सेवक बनकर रहो करो इनकी अगवानी, 
इनसे कुछ मत कहो इनकी मनमानी ... 
कार्यक्रम का सफल संचालन प्रमोद गुप्ता भारती ने किया तथा आभार प्रदर्शन सतीश श्रीवास्तव ने किया ।

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