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दान करना मनुष्य का स्वभाव हैं- मुनि श्री निर्णयसागर जी

शनिवार, 21 अगस्त 2021

/ by Vipin Shukla Mama
खनियांधाना। खनियांधना पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में विराज मान मुनि श्री निर्णयसागर जी महाराज प्रवचन देते हुए कहा कि भोजन का प्रबंध तो पशु भी कर लेते हैं परंतु मनुष्य प्रबंध करके सबसे पहले कुछ अंश दान करने का विचार करता हैं। सफल जीवन उसी का है जो मनुष्य जीवन प्राप्त कर अपना कल्याण कर ले। भौतिक दृष्टि से तो जीवन में सांसारिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति को ही अपना कल्याण मानते हैं परंतु वास्तविक कल्याण है-सदा सर्वदा के लिए जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होना अर्थात भगवद् प्राप्ति। अपने शास्त्रों तथा अपने पूर्वज ऋषि-महर्षियों ने सभी युगों में इसका उपाय बताया है। चारों युगों में अलग-अलग चार बातों की विशेषता है- सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में एकमात्र दान मनुष्य के कल्याण का साधन है। दान श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, विनम्रतापूर्वक देना चाहिए। दान के बिना मानव की उन्नति अवरुद्ध हो जाती है। जैसे श्रावक साधुओ को नवधाभक्ति पूर्वक पड़गाहन करते हैं और फिर मर्यादित प्रासुक आहार ही साधु को दान में देते हैं। साधु भी आहार में 46 दोषों को टाल कर आहार ग्रहण करते हैं।
मुनि श्री ने बताया जब वह 1999 में इंदौर के गोम्मतगिरी क्षेत्र पर चातुर्मास कर रहे थे,तब एक श्रावक ने वहां 6 महीने चौका लगाया था और दोनों पति पत्नी ने 7 प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये थे और आजीवन एकासन का संकल्प लिया था।
दान के प्रभाव से बड़े से बड़े पापियों का भी उद्धार हुआ हैं। हमे हमेसा दान देने के भाव रखना चाहिए।

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