खनियांधाना। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में विराजमान मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि धन कमाना मात्र उद्देश्य न बनाये, धन कमाने से पूर्व निर्णय करें कि जो धन छल, कपट, झूठ, अन्याय से कमाया है वह जीवन में अशांति और बैचेनी पैदा करता है, अनर्थ लाता है। ऐसे धन को धर्म में लगाने का औचित्य नहीं है। जो धन किसी के आंसू निकालकर कमाया हो, किसी को दुखी करके कमाया हो, वह ठीक नहीं है। आज सबसे बड़ा पापी वह है जो परिग्रह करता है।
धन कमाना बड़ी बात नहीं हैं सही धनवान तो वह हैं जो नैतिकता के साथ ईमानदारी के साथ धन कमाता हैं। वर्तमान में धन से इज्जत मिलती है। यदि व्यक्ति के पास सबकुछ है और धन नहीं है तो इसे इज्जत नहीं मिलती है। न्याय से उपार्जित किया धन श्रावक के जीवन को आगे बढ़ाता है, इससे श्रावक को शांति प्राप्त करता है। जैन समाज भारत मे सबसे ज्यादा टैक्स देने वाला समाज हैं,पर कही सिर्फ धन कमाना ही उद्देश्य तो नहीं रहा समाज का? यह प्रश्न स्वयं से पूछना चाहिए, हम कितना समय धर्म के लिए,आत्म हित के लिए दे रहे हैं। अपना हिसाब तैयार करिये दिन में कितने दिन धर्म कार्य,सेवा के कार्य किये या सिर्फ धन अर्जन में ही समय व्यतीत कर दिया। संतोषी बन कर जीवन जियो,अधिक की चाह हमे भटकाती हैं। हम अपार धन जोड़ लेंगे पर इक्कठा करके करेंगें क्या यही छोड़ कर मर जायेंगें,फिर क्या ओचित्य रहा आवश्यकता से अधिक की चाह में दिन रात इतनी कठिनाईयो को सहने का।विचार कारों और निर्णय लो,किस और जा रहे हैं अभी और किस ओर जाना हैं हमें। उन्होंने बताया कि धन व धर्म के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। धन के लिए जीवन न हो, बल्कि जीवन के लिए धन चाहिए। जब हमसे पूछा जाता है कि शरीर चाहिए या आत्मा, तो हम आत्मा कहते है। शरीर की कीमत नहीं है, वह तो आत्मा के बगैर राख हो जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें