1962 से हर साल देश के पहले उप-राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 5 सितंबर 1888 को देश के पहले उप-राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। डॉ राधाकृष्णन विद्वान, विचारक और सम्मानित शिक्षक थे। उन्होंने अपने छात्रों से जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी तभी से उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज रविवार है लेकिन शिक्षक दिवस के दिन स्कूल, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थानों में शिक्षक दिवस पर भाषण प्रतियोगिता होती है। सभी स्टूडेंट्स अपने शिक्षकों को सम्मान देने के लिए उन्हें विशेष शुभकामनाएं देते हैं। इस दिन शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है। इस बार कोविड-19 महामारी के कारण महीनों स्कूल बंद रहे अब स्कूल खुल भी गए है। वर्चुअली पढ़ाई के साथ शिक्षकों के लिए स्टूडेंट्स अब विडियो आदि बनाकर शिक्षकों का आभार प्रकट करते हैं।
भारत रत्न से हुए थे सम्मानित
डॉक्टर राधाकृष्णन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। सन 1954 में शिक्षा और राजनीति में अपने योगदान के लिए उन्हें भारत सम्मान से नवाजा गया। डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। जिन्होंने राजनीति में ऊंचे पद पर आसीन होने के बाद भी अपने आपको शिक्षक ही माना। इसलिए उनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ऊंची सोच इसलिये महान
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि देश में सर्वश्रेष्ठ दिमाग वाले लोगों को ही शिक्षक बनना चाहिए। शिक्षक वह नहीं जो विद्यार्थी के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। शिक्षक का बच्चों को एक जिम्मेदार और आदर्श नागरिक बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है।
तो ज्यादा खुशी होगी
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से जब उनके कुछ दोस्तों और विधार्थियों ने उनके जन्मदिन का आयोजन करने के लिए कहा तो उन्होंने कहा, 'कि आप सब मेरे जन्म दिन को मनाना चाहते हैं ये बहुत ही खुशी की बात है लेकिन अगर आप मेरे इस खास दिन को शिक्षकों द्वारा किए गए शिक्षा के क्षेत्र में योगदान, समर्पण और उनकी मेहनत को सम्मानित करते हुए मनाएं तो मुझे और ज्यााद प्रसन्नता होगी। उनके इसी इच्छा को ध्यान में रखते हुए सन् 1962 से हर साल 5 सितम्बर को पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
शिक्षक का महत्व
एक छात्र के जीवन में उसके शिक्षक की भूमिका बहुत अहम रहती है। भारत में शिक्षक को माता-पिता के बराबर का स्थान भी दिया जाता है। जिस तरह से कुम्हार मिट्टी को बरतन में ढ़ालता है, लोहार लोहे तपा कर कुछ उपयोगी चीज बनाता है ठीक उसी तरह शिक्षक अपने छात्रों के भविष्य का निर्माण करते हैं। छात्र के जीवन में शिक्षक के योगदान का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बिना शिक्षक के छात्र का जीवन पूरा अधूरा रहता है और ऐसे जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
यह भी जानिए पहली महिला शिक्षक थीं
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले को देश की पहली महिला शिक्षक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा में अहम योगदान दिया था।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें