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झाड़ फूंक कराने के फेर में चली गई लक्ष्मी की जान

सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

/ by Vipin Shukla Mama
समझाईश के बाद दूसरे बच्चे कान्हा को एनआरसी में कराया भर्ती
शिवपुरी। जिले में लोगों को बीमारी, कुपोषण से बचाव को लेकर लगातार चलाये जा रहे जागरूकता अभियान को आज तब धक्का लगा जब झाडफ़ूंक कराने के चक्कर में बीमार बालिका लक्ष्मी की जान चली गई। उसे समय पर एनआरसी या अस्पताल में भर्ती कराया जाता तो शायद जान बच जाती। इधर लक्ष्मी के माता-पिता उनके दूसरे बच्चे कान्हा को एनआरसी में भर्ती कराने के लिए राजी नहीं थे उन्हें डीपीओ की समझाईश के बाद राजी किया जा सका है।
 जिला प्रशासन द्वारा पांच हजार रूपए की सहायता राशि भी पीड़ित परिवार को प्रदान की गई है। मामला कोलारस के वार्ड क्रमांक 3 का है जहां मउरानीपुर उत्तरप्रदेश में मजदूरी कार्य कर रहे चन्द्रभान आदिवासी जो 10-12 दिन पूर्व ही कोलारस वापस लौटा था और एक कच्ची टपरिया बनाकर रह रहा था। करीब पांच दिन पूर्व उनकी बालिका लक्ष्मी की तबियत खराब हुई जिन्हें लेकर वह बजाय अस्पताल आने के तांत्रिक और ओझाओं के चक्कर में झाडफ़ूंक कराते रहे। लेकिन हालत में सुधार न होकर तबियत बिगड़ी तब बालिका लक्ष्मी को कोलारस स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया। जिसे बाद में जिला चिकित्सालय रैफर कर दिया गया था। वहां बालिका की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे ग्वालियर रैफर कर दिया गया और कल देर रात लक्ष्मी की मौत हो गई। इसी बीच डीपीओ देवेन्द्र सुन्दरियाल परियोजना अधिकारी एवं कार्यकर्ता के साथ कोलारस वार्ड क्रमांक 3 पहुंचे थे और चन्द्रभान आदिवासी को समझा बुझाकर उनके दूसरे बच्चे कान्हा को एनआरसी में भर्ती कराने हेतु राजी किया एवं परिवार को जिला प्रशासन द्वारा पांच हजार रूपए की आर्थिक सहायता राशि भी प्रदान की गई। कुल मिलाकर आज भी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो सकी है। ग्राम में मौजूद कुपोषित बच्चों को अस्पताल लाने की बजाए उनके परिजन बाबा, हकीमो के चक्कर मे पड़ जाते हैं और नुकसान उठाना पड़ता है जबकि कुछ मामलों में तो उनके परिजनों को जैसे तैसे संमझा बुझाकर अस्पताल या एनआरसी लाया जाता है लेकिन वह घर चले जाते हैं। कुछ इसी तरह के हालात लक्ष्मी के साथ गुजरे जब उसके परिजन योग्य डॉक्टर को दिखाने के बजाए उसे झाड़ फूंक वालों के पास लेकर गए और नतीजा सामने है। 
अब महज 600 बच्चे अतिकुपोषित
जिले में पिछले साल लगभग 2600 बच्चे अतिकुपोषित थे जिनको सतत निगरानी, पोषण परदे, समाज की भागीदारी से 2000 बच्चो को सामान्य श्रेणी में लाया जा चुका है। जबकि 600 बच्चे अभी भी अतिकुपोषित हैं जिन्हें सामान्य श्रेणी में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं जो एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। 

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