सुब्बाराव जी को लोग भाई जी के नाम से जानते थे। उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की और जेल गये।
महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव में वे जीवन दानी बन गए। उन्होंने सारा जीवन सादगी से बिताया। एक हाफ पेंट सफेदआधी बाँहों की कमीज उनकी स्थाई भूषा थी। उन्होंने काफी लोगों को गांधी के विचारों से अवगत कराया और शिक्षित किया।
जोरा में जो मुरैना जिले में है उन्होंने अपना आश्रम बनाया था ।यहां वे लगातार लंबे समय तक रहे और लोगों के बीच में काम करते रहें ।आस पास के आदिवासियों को शिक्षित संगठित और जागृत करने के लिए वे निरन्तर कार्य करते रहे।
जब पहला दस्यु समर्पण हुआ था जिसमें आचार्य विनोबा भावे की भूमिका थी उसमें भी सुब्बाराव जी ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में जयप्रकाश जी के समक्ष जो आत्मसमर्पण उस समय के दस्युयों ने किया उसमें भी स्व सुब्बाराव जी की भूमिका थी।
जोरा में 1982में एक दस्यु समर्पण के लिए सम्मेलन किया था ।हालांकि इसमे सरकार का सहयोग नहीं था अतः सरकार ने भारी मात्रा में सशस्त्र बल पहुंचा करसमर्पण करने वाले दस्युओं की एनकाउंटर करने की योजना बनाई तथा उस क्रांतिकारी आयोजन को एक प्रकार से रोक दिया। परंतु सुब्बाराव जी ने उस आयोजन में हिस्सेदारी की और भूमिका अदा की। ग्वालियर चंबल संभाग को दस्यु समस्या से मुक्त कराने के साथ-साथ आत्म समर्पित दस्यु समुदाय के पुनर्वास हेतु गांधी आश्रम की स्थापना कर खादी एवं ग्रामोद्योग के क्षेत्र मे प्रशिक्षित करके उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया फिर पूरी दुनिया मे सर्वोदय के सिद्धांत का प्रचार किया नैशनल यूथ प्रोजेक्ट और एकता परिषदों के माध्यम से पूरे विश्व मे सामाजिक समरसता और एकता की अलख जगाई अनेकों बार मेरी उससे मुलाकात होती रही वे अपने समय का बेहतर प्रबंधन करते थे और शायद ही कभी खाली बैठते हो। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वह सक्रिय थे ।उनका निधन हमें पीड़ा दायक है।
मैं उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनकी स्मर्तियों को प्रणाम करता हूं।
शत शत नमन

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