वाराणसी। (शिक्षाविद निर्भय गौड़ की रिपोर्ट) वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट एक अलौकिक घाट है। घाट पर चिताओ की अग्नि मृत्यु मे भी उत्सव का अहसास कराती है। इस घाट की गणना काशी के पंचतीर्थो में की जाती है।
एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने का काम भगवान शंकर द्वारा किया गया, और इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। दूसरी मान्यता के अनुसार यहां भगवान शंकर जी द्वारा माता पार्वती के पार्थीव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया, जिस कारण इसे महा-शमसान भी कहते हैं। नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
भूतभावन शिव शंकर की तपस्थली महाश्मशान पर उनके आराध्य की लीला हर किसी के आकर्षण का केंद्र है। काशीखंड में वर्णित पंचतीर्थों में प्रमुख है मणिकर्णिका तीर्थ पर श्रीराम की लीला और नीचे जलती हुई चिताएं।
ऐसा विरोधाभास वाला उदाहरण काशी के अतिरिक्त दुनिया में और कहीं संभव नहीं है। एक तरफ भगवान शंकर मरने वालों को तारक मंत्र देते हैं वहीं दूसरी तरफ विश्व के महानायक श्रीराम चंद्र की लीला के जरिए मर्यादा का संदेश दिया जाता है।
यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महा-शमशान नाम से भी जाना जाता है। एक चिता की अग्नि समाप्त होने तक दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है,24 घंटे ऐसा ही चलता है।वैसे तो लोग शमसान घाटो में जाना नही चाहते, पर यहाँ देश विदेश से लोग इस घाट का दर्शन भी करने आते है। इस घाट पर ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है।
देखिए घाट की एक झलक

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