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पहले निकली बारात, नृत्य देख पल में हुआ वैराग्य, दीक्षा धारण कर बने बृषभसागर मुनिराज

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

/ by Vipin Shukla Mama
इंडिया नहीं भारत कहें- मुनि निरीहसागर महाराज
दिलीप जैन की रिपोर्ट
शिवपुरी। पंचकल्याणक में कल का दिन बहुत खास रहा। कल दिनांक 08 दिसम्बर बुधवार को सर्वप्रथम युवराज आदिकुमार की बारात बड़ी धूमधाम के साथ निकाली गई।बारात समाप्ति के बाद विवाहोत्सव मनाया गया। राज्याभिषेक के बाद महाराज आदिकुमार ने जीवन यापन की 72 कलाएं सिखाईं। राज व्यवस्था, वर्ण व्यवस्थाएं, दंड व्यवस्था आदि दीं। 84 लाख पूर्व की आयु पूर्ण होने के पूर्व एक दिन नृत्य सभा में नीलांजना नामक नर्तकी का मरण होने पर उन्हें वैराग्य हो गया। उंन्होने बारह भावनाओं का चिंतन किया और महाराज आदिकुमार ने दीक्षा के लिए वन प्रस्थान किया उस समय दीक्षा की अनुमोदना के लिये पूरा पांडाल जयकारों से गूँज गया, और स्वर्ग से लौकान्तिक देवों ने आकर सर्वप्रथम आदिकुमार की पालकी उठाई। तत्पश्चात पूज्य मुनिसंघ द्वारा दीक्षा संस्कार की विधि सम्पन्न कराई गई। 
 इस अवसर पर पूज्य मुनि श्री अभयसागर महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा किपूज्यवर अभयसागर जी महाराज ने कहा कि जिसके अंतरंग में आत्महित की भावना होती है, वह उपयुक्त निमित्त मिलता है, वह अपना कल्याण कर लिया करता है। सांसारिक भोग लिप्सा में जिसका भाव होता है, वह मात्र दिखाबे के लिए ही जीता है। कभी स्वयं का कल्याण करने के भाव भी उसके अंदर नहीं आते। मोह और मोक्ष दोनों विपरीत ध्रुव है। आपकी मोह की यात्रा तो अनादि काल से चल रही है। एक बार मोक्ष की यात्रा शुरू हो जाये तो किसी न किसी भव में कल्याण होना भी निश्चित हो ही जायेगा। 
मुनि श्री प्रभातसागर महाराज ने प्रवचनों में कहा कि आज दीक्षा दिवस का दिवस है। भगवान जो घर पर रहते थे, सब व्यवस्था होने के बाद भी उन्हें घर नहीं रुचा और दीक्षा ले कर वन की ओर चले गए। और उनके मातापिता ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और साथ में 4000 राजाओ ने भी दीक्षा ली। भगवान ने दीक्षा पूर्व षट्कर्म की स्थापना की। और राज अवस्था में असि-मसी-कृषि का उपदेश दिया। परन्तु आज आपका दुर्भाग्य है कि आज यह व्यवस्था सब समाप्त होती जा रही है। आज व्यक्ति थोड़ा सा ज्ञान होता है, दूसरों को सिखाने लगता है, जबकि तीर्थंकर कैवल्यज्ञान के धारी होने के बाद भी बोलते नहीं हैं। आप सभी इस पँचकल्याक से कुछ शिक्षा अपने जीवन मे लें, तभी पँचकल्याक मानना सार्थक हो सकता है। 
इंडिया नहीं भारत कहें
मुनि श्री निरीह सागर महाराज ने कहा कि आचार्य श्री हमेशा कहते हैं इंडिया नाम विदेशी अंग्रेजी हुकूमत का दिया है। जैसे कुंडली के अनुसार नाम का दुष्प्रभाव पड़ता है, ऐसे ही इंडिया नाम का दुष्प्रभाव भी भारत पर पड़ रहा हैं। दुनिया में किसी भी नाम का अनुबाद अंग्रेजी में नहीं होता, परन्तु अंग्रेजों ने भारत का नाम इंडिया रखा। यह ऐसे ही नहीं रखा। यदि इंडियन का हिन्दी अर्थ ऑक्सफ़ोर्ट डिक्शनरी के वोलियम-2 सन 1900 के पेज नम्बर  789 पर देखें तो 'इंडियन' का अर्थ 'पुराने ढर्रे के असभ्य देहाती लोग' दिया हुआ है, अब आप स्वयं समझदार हैं, हमें इंडियन कहलाना पसंद है या भारतीय? 
आज आपका खानपान-पहनावा सब बदल रहा है, क्योंकि अंग्रेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजियत विद्यमान है। यदि 125 करोड़ भारतीय मिल कर सामूहिक प्रयास करें, और विदेशी सामग्री प्रयोग को बंद कर दें, तो भारत को आगे बढ़ने से फिर कोई नहीं रोक सकता। उल्लेखनिय है कि दिगम्बर जैन समाज शिवपुर में इन दिनों पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन मुनिश्री 108 अभयसागर जी महाराज, मुनि प्रभातसागर महाराज और मुनि निरीहसागर महाराज के सान्निध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया 'सुजश' एवं सह प्रतिष्ठाचार्य पं. सुगनचंदजैन आमोल के निर्देशन में महती धर्म प्रभावना के साथ चल रहा है। आज महा आरती का सौभाग्य रामदयाल मावा वालों को प्राप्त हुआ
आज निम्न कार्यक्रम होंगें।
आज 09 दिसम्बर को निम्नलिखित कार्यक्रम यहाँ आयोजित होंगें। प्रातः 6ः45 बजे अभिषेक-शांतिधारा, पूजन 8ः15 बजे मुनिश्री के मंगल प्रवचन। प्रातः 9ः15 बजे से मुनि श्री आदिसागर महाराज की आहार चर्या, दोपकर 12ः15 बजे ज्ञान कल्याणक महोत्सव मंत्र आराधना, अधिवासना, तिलकदान, मुखोद्घाटन, नेत्रान्मीलन, प्राण प्रतिष्ठा, सूरिमंत्र, केवलज्ञान उत्पत्ति, समवशरण, गणधर के रूप में महाराज जी का उद्बोधन। रात्रि 6ः30 पर गुरुभक्ति, आरती एवं रात्रि 7ः00 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।

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