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त्रि दिवसीय राष्ट्रीय ई संगोष्ठी में शामिल हुए जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर ज्योतिर्विज्ञान विभाग के पूर्व अतिथि प्राध्यापक ब्रजेन्द्र शरण श्रीवास्तव

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

/ by Vipin Shukla Mama
दिल्ली। वास्तु शास्त्र विभाग अध्यक्ष प्रो अशोक थपलियाल, श्री नलल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय  संस्कृत केन्द्रीय विश्वविद्यालय नई दिल्ली-16  द्वारा 24 से 26 दिसम्बर 2021 को वास्तु सानरक्षण और पर्यावरण पर त्रि दिवसीय राष्ट्रीय ई संगोष्ठी  का आयोजन  किया गया है। इस संगोष्ठी के 24 दिसम्बर 2021 के प्रथम टेक्निकल सत्र में जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर ज्योतिर्विज्ञान विभाग के पूर्व अतिथि प्राध्यापक ब्रजेन्द्र शरण   श्रीवास्तव  ने दक्षिण दिशा द्वार पर वास्तु और पर्यावरण विज्ञान की दृष्टि से समीक्षा प्रस्तुत की।  और बताया कि
1- वास्तु में दक्षिण दिशा की समस्या सूर्य के  मध्याह्न कालिक ताप और उसके दुष्प्रभाव के निराकरण  पर ही केंद्रित है इसके अलावा इसमें और कुछ रहस्यात्मक खोजना व्यर्थ हवास्तु में  इसके समाधान के  लिए,अन्य बातों के अलावा,  दक्षिण दिशा में दीवारें मोटी  बनाने और ढाल दक्षिण की तरफ ऊंचा रखने का निर्देश मुख्य है। पर्यावरण विज्ञान की दृष्टि से भी मध्याह्न समय के सूर्य से,  विशेष कर दिन 10 बजे  से 3 बजे तक सूर्य प्रकाश में परा बैगनी अल्ट्रा  वायलेट विकिरण अधिक होता है जो नेत्र व चर्म  सहित स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है । अल्ट्रा वायलेट विकिरण की यह स्थिति ग्रीष्म ऋतु में अधिक प्रतिकूल हो जाती है जब सूर्य का उन्नतांश ऐल्टिटूड मध्य आकाश में अधिक ऊँचा  हो जाता जबकि सर्दियों में सूर्य दक्षिण दिशा में अधिक ऊंचाई तक नहीं जाता इसलिए सूर्य की मध्याह्न कालिक स्थिति  कुछ सुखप्रद भी रहती है । 
2- दक्षिण दिशा में मध्याह्न काल में प्रबल हो जाने वाला   पराबैगनी विकिरण हानिप्रद जीवाणुओं को नष्ट करने वाला होने से उपयोगी भी होता है। जबकि सुबह के प्रकाश में इंफ्रा रैड या अवरक्त विकिरण अधिक बिखरता है जो स्वास्थ्यप्रद होता है। 
3- विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू एच ओ के प्रतिवेदन के अनुसार यू . वी. आर हमारे  शरीर में विटामिन डी  के निर्माण में सहायक है। विटामिन डी  हमारी शरीर की कई क्रियाओं के संचालन में आवश्यक है , यह विशेष रूप  से हड्डियों के लिए कैल्शियम के बनाने के लिए आवश्यक होता है।
4-  यह यू वी आर सूर्य के विकिरण के साथ सभी दिशाओं से पृथ्वी पर आता है।  फिर भी कुछ घटक इस परा बैगनी विकिरण  के स्तर को रोकने में  डबल्यूएचओ  के अनुसार विशेष असर कारक होते हैं बस इन पर   पर ध्यान  देने की जरूरत है :
5-  घास मिट्टी और जल ये सब सूर्य से आने वाले इस विकिरण का नब्बे प्रतिशत-जी हाँ नब्बे प्रतिशत,   सोख लेते हैं और केवल दस  प्रतिशत ही  वातावरण में  विकीर्ण करते हैं या बिखेरते हैं। जबकि  सूखी रेत 85 प्रतिशत विकिरण सोख लेती है और  मात्र  15 प्रतिशत बिखेरती  है । और   ताजा हिम इसके उलट अस्सी प्रतिशत विकिरण बिखेरता है । 
इसलिए दक्षिण दिशा वाले भवन में गर्मियों में परा बैगनी विकिरण को नब्बे  प्रतिशत सोखने की व्यवस्था  के लिए हमें आवास के दक्षिण में नमी के लिए दूबा घास लगाना चाहिए पेड़ पौधे बेल लगाने चाहिए और भूमि पर जल पात्र रखना चाहिए ।
 ये उपचार यंत्र तंत्र उपचार की तुलना में प्रत्यक्ष व  प्रभावशाली भी है इससे दक्षिण दिशा से आने वाले  परा बैगनी बिखराव का दोष का लगभग पूर्णतः शमित   होता रहेगा  । 
(6--एक बात और इस विकिरण के वितरण में स्थल का  अक्षांश भी  मायने रखता है  :  मैंने गणना करके देखा कि वसंत सम्पात  के दिन थिरुवनंत पुरम के  अक्षांश 6 उत्तर पर  सूर्य 81.7 अंश तक ऊंचा जाता है व  दिनप्रकाश अवधि 12 घंटे 7 मिनिट है। जबकि  उत्तरभारत  में देहली अक्षांश 26 उत्तर पर सूर्य का उन्नतांश 61. 6 है और दिन प्रकाश अवधि 12 घंटे 9 मिनिट है और अधिक उत्तर में उत्तराखंड में ये और काम होगा।  क्योंकि लेह लद्दाख अक्षांश 34 उत्तर पर सूर्य का बहुत की कम  उन्नतांश 56.1 अंश है और दिन प्रकाश अवधि 12 घंटे 27 मिनिट हैं।)
7--आकाश में जितना अधिक ऊंचा सूर्य जाएगा उतना अधिक  परा बैगनी विकिरण का  स्तर होगा।  पर सूर्य का यह उन्नतांश स्थान के अलावा  ऋतुओं के अनुसार अर्थात सूर्य की वसंत संपात बिन्दु से कोणात्मक स्थिति के अनुसार भी  बढ़ता घटता है यह भी ध्यान में रखना होगा । 
8-इन सब कारणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि दक्षिण दिशा द्वार के भवन का महत्व वास्तु और पर्यावरण दोनों दृष्टि से अन्य सभी दिशाओं के द्वार के समान ही उपयोगी है। आवश्यकता ग्रीष्म में दक्षिण में सूर्य के अधिक ऊंचाई पर जाने से परा बैगनी के बढ़े हुए विकिरण को रोकने के लिए हरी घास जल और  पौधे लगाने की व मोटी दीवार बनाने की है। 
9--इसके के अलावा जरूरत  गर्मियों में इसके विकिरण से बचने के लिए  दरवाजे और  खिड़की पर परिवर्तनशील प्रोजेक्शन या  छज्जे लगाने की है जिसके लिए ऋतु अनुसार कोण नापने की भी विशेष विधि है
10- इस टेक्निकल सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर  भारत भूषण मिश्र  निदेशक संस्कृत विश्व विद्यालय मुंबई परिसर ने की मुख्यवक्ता राष्ट्रीय संस्कृत विश्व विद्यालय भोपाल  परिसर के प्रो डाक्टर हंसधर झा ने की। 

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