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यूआईटी आरजीपीवी शिवपुरी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर हुआ व्याख्यान

रविवार, 23 जनवरी 2022

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। यूआईटी आरजीपीवी शिवपुरी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान का आयोजन यूआईटी आरजीपीवी शिवपुरी की सांस्कृतिक सोसायटी आरोहणम ने किया। 
समारोह माननीय संचालक प्रॉफ. राकेश सिंघाई जी के सानिध्य में आगे बढ़ा एवम्  मुख्य अथिति के रूप में माननीय डॉक्टर गोविंद सिंह जी, ( अस्थि रोग विशेषज्ञ ) की उपस्थिति में संपन्न हुआ 
माननीय संचालक सर द्वारा बताया गया कि नेताजी  अपने जीवन में प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए, कैंब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड गए और सफलता प्राप्त की , परंतु उन्होंने प्रशासनिक सेवा की नौकरी को त्याग कर खुद को देश के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने आज की युवा पीढ़ी को नेताजी के  उद्देश्य को आत्मसात करने का आह्वान किया।
इस समारोह को आगे बढ़ाते हुए मुख्य अथिति  डॉक्टर गोविंद  सिंह जी द्वारा विशेष व्याख्यान दिया गया । उन्होंने नेता जी के जीवन से जुड़ी कुछ मुख्य घटनाओं का उल्लेख किया। 
उन्होंने बताया कि नेता जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ कर  राष्ट्र की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे, लेकिन उन्होंने नेता जी के देश प्रेम को देख  उन्हें "देशभक्तों का भी देश भक्त " की उपाधि प्रदान की।  नेताजी का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आजादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नजरबंद कर दिया, लेकिन वो अपने भतीजे की सहायता से वहां से भाग निकले । वह अफगानिस्तान  और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे । उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां  से जापान जा पहुंचे , जापान से सिंगापुर पहुंचे, जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ले ली।  उन्होंने महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजीमेंट का भी गठन किया जिसकी कैप्टन सुश्री लक्ष्मी सहगल  बनी। 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने  "आजाद हिंद सरकार" की स्थापना की तथा आजाद हिंद फौज का गठन किया।  नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे, यहीं पर उन्होंने  अपना प्रसिद्ध नारा " तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत हो गई, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। डॉक्टर गोविंद सिंह जी ने सभी छात्रों को कहा की उन्हें नेताजी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए,  इसी के साथ उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया ।
इस समारोह के आयोजन में छात्र देवेश तिवारी द्वारा एंकरिंग की गई और अभ्यूदय शर्मा द्वारा आभार व्यक्त किया गया ।

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