कत्थक गुरु स्व. बिरजू महाराज के श्रीचरणों में एक रचना अपनी अदिति सक्सेना (लंदन) की ओर से श्रृद्धांजलि स्वरूप-
मार नहीं सकता है काल-
बहुत दुःखी हैं स्वर, लय, ताल,
भाव-भंगिमायें बेहाल,
सिसक रहे घुंघरू पांवों के,
मुख मुद्रायें हैं कंगाल,
चली गई पांवों की थिरकन,
चली गई नयनों की चितवन,
चली गई इक कथा कत्थक की,
चली गई इक हस्ती विशाल।
जिसका प्रदाय अल्प नहीं है,
वह जिसका विकल्प नहीं हैं,
ऐसा समर्पण, ऐसी निष्ठा,
ऐसा तो संकल्प नहीं है
जिसका जीवन ही कत्थक था,
जिसका तन, मन, धन कत्थक था,
सहसा सूनी विश्व-आत्मा,
चली गई छोड़ चौपाल।
पूनम है पर काली रात,
हुआ हृदय पर बज्राघात,
कभी नहीं भरने वाला तुम
छोड़ गए ऐसा निर्वात,
मन के श्रृद्धा-सुमन समर्पित
आदर के दो अश्रु अर्पित,
तेरे श्रीचरणों में अपना
कला-जगत रखता है भाल।
तुम से जग में अल्प गुणी थे,
तुम कत्थक के मुकुट मणी थे,
पगधूली को पाकर जाने
तेरे कितने शिष्य ऋणी थे
जब तक कत्थक के साधक हैं,
कत्थक नृत्य के आराधक हैं
कत्थक गुरु बिरजू जैसों को,
अदिति सक्सेना
(सुपुत्री कवि, लेखक एवम जानेमाने इतिहासकार अरुण अपेक्षित)
17 जनवरी 2021
इंदौर म.प्र.

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