जो खुद को गांधी विरोधी और गोडसे के हिमायती बताते है आज सन्डे की छुट्टी में खुद से पूछे कि वह गोडसे के राष्ट्रवाद के धरातल पर कहां खड़े है?ईमानदारी से खुद सवाल करें और खुद ही जबाब दें।अपने परिवार अपनी जीवनशैली अपनी प्राथमिकता के बीच गोडसे को कहाँ पाते है?
क्या बच्चों की शिक्षा में,घर की लग्ज़री सुविधाओं में,खुद के पहनावे , खुद को मॉडर्न दिखाने के क्रम में।
जरा सोचिए कहीं आपकी मूढ मत्ता से आप उस विचार को नुकसान तो नही पहुचा रहे है जिस पर हजारों तपोनिष्ठ जीवन होम हो गए बगैर किसी शोर के।आजकल कुछ लोग गांधी को लेकर अपनी असहमति के स्वर इतनी बौद्धिकता के साथ लिखते या प्रसारित करते है मानों गांधी इनके लिये कोई बटाईदार हो। असल में वे नही जानते है कि फेसबुक ,व्हाट्सएप पर अंगुलियों को चलाने से किसे ज्यादा फायदा होता है ?आपकी इस उथली सूचना निधि व्यापक सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य में उस विचार को ही नुकसान पहुचाती है जिसके अलंबरदार वे सोशल मीडिया पर स्वयंभू तरीके से बनना चाहते है।
दूसरे वे धुरंधर है जो इस समय गांधीवादी बनने के ग्लोबल टेंडर लिये हुए है।उनमें से मैं बीसियों को जानता पहचानाता हूं।
जीवन भर राजनीति, व्यवसाय, पत्रकारिता, और दूसरे अन्य कर्मो से बेईमानी, ब्लैक मेलिंग,झूठ,धोखे,और जैसे भी बन सका अपार या क्षमता अनुरूप दौलत जुटाई।
न सत्य से काम चला इनका ,न अपरिग्रह की तरफ देखा,न अस्तेय को पूछा,न अहिंसा की परवाह की।मदिरालय घर मे ही खोल लिया गांधी की तस्वीर लगा कर।विदेशी कलमों से वे स्वराज की इबारत लिखते है।गौमांस को वे विविधवर्णी भारत कहते है।
कुल मिलाकर गान्धी के ये चतुर चितेरे ,जबरिया बकलोली वारिस वाकई गांधी से भी बड़े हो गए है।
इनकी दुकान गोडसे से ही चलती है अगर गोडसे न हो तो वैसे ही आजकल ये लुटियंस की मंदी औऱ मार से पीड़ित है।
गांधी बनने या उनकी वकालत में खुद की ज्वलंत बौद्धिकता,नैतिकता, को साबित करने के लिये पहले गोडसे को गाँधीभाव के साथ स्वीकार करना सीखिये।जिस दुराग्रह,जिस नकलीपन,जिस निजी नफरत,जिस नकली वैचारिकी के साथ आप गाँधीभाव को प्रदर्शित करते हो उसे अपनी आत्मा के अक्स में भी कभी कभी देख लिया करो।गांधीवादियों..!
इस नकली, आभासी और सस्ती दुनिया से इन लोगों का टिकिट कट जाए तो क्या होगा?
हमारे यहां कहावत है
"कोई कंडे में भी नही थापेगा"
#गांधीवाद कुछ नही होता है खुद गांधी ने किसी वाद को स्वीकार नही किया है।जो बातें जो मूल्य,जो साधन हजारों सालों से हमारे लोकजीवन में पवित्रता के साथ हिस्सा बनी हुई है उन्ही के अबलम्बन के आग्रह का नाम ही तो गांधी है।
#कोई बताएगा गांधी ने भारतीय मूल्यों के अलावा कौन सी नई बात या साधन पर जोर दिया।
#इनसे सहमत असहमत होना क्या नया है?
#लेकिन गांधी को वाद में ढालकर बड़े वर्ग की रोजीरोटी, लोकेषणा, वित्तेषणा पूरी होती है इसलिए वे राम द्रोहियों को गले लगा लेते है और गांधी को लेकर बिलबिला उठते है।
#गाँधी किसी वाद का मोहताज नही है न वकीलों की बौद्धिकता की उसके अस्तित्व को जरूरत है।क्योंकि वह भारतीयता के मजबूत धरातल पर खड़े कालजयी शख्स है।
#आपका गांधी कमजोर है इसलिए वह गोडसे से डर जाता है।असल में आपके अंदर गांधी है ही नही।आप खुद कमजोर है इसलिए आप गोडसे से कांप जाते है।भारत का गांधी किसी से नही डरता है क्योंकि वह गोलियों से परे है वह काल से परे है।
#खुद के खोखलेपन को खुद के डरे हुए आदमी को गांधी पर मत थोपिए।

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