टीकमगढ़। टीकमगढ़ से 5 किलोमीटर दक्षिण में जमड़ार नदी के पास ऐतिहासिक कुंडेश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है अद्भुत शिवलिंग की उत्पत्ति एक कुंड से हुई थी। स्वयंभू महादेव इस श्रीक्षेत्र में तेरहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। मंदिर में द्वापर युग से पूजा की जा रही है। बाणासुर की पुत्री ऊषा ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी। किवदंती है कि ऊषा आज भी भगवान शिव का जल अर्पित करने आती हैं। यहां स्थित देवाधिदेव महादेव आज भी शाश्वत और सत्य है, इसका जीता-जागता प्रमाण स्वयं प्रतिवर्ष चावल के बराबर बढऩे वाला शिवलिंग है। यह जानकारी धमाका के लिये लेकर आये हैं गेल कोचिंग के संचालक शिक्षाविद निर्भय गौड़ , जिन्हें पर्यटन स्थल, पुरातत्व से खास लगाव है।
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