प्रिय अनुज गोविंद अनुज का दूसरा नव-गीत संग्रह ‘‘बूंद-बूंद चांदनी झरी ‘‘ मेरे हाथों में है। अयन प्रकाशन महरोली नई दिल्ली से प्रकाशित, इस नव-गीत संग्रह में 67 नवगीतों का संग्रह किया गया है। गोविंद अनुज मूलतः गीतकार हैैं। उनके गीतों में उनकी गहरी संवेदनायें, भावनायें, अनुभूतियों और अनुभवों के नये प्रतीकों तथा विम्बों के साथ दर्शन होते हैं। बिना गेयता, ताल, लय, स्वर के कोई गीत, गीत हो नहीं सकता। गोविंद के सभी गीतों में गेयता का यह प्रमुख गुण विद्यमान है।
गीत और नवगीत में पिता तथा पुत्र जैसा संबंध है। प्रत्येक नवगीत भी पहले गीत है अंत में नवगीत। परम्परागत गीतों में अतिशय भावुकता के साथ भावनाओं का प्रबल आवेग दिखाई देता है। परम्परागत गीतों में जीवन की जटिलताओं के दर्शन कम होते हैं, सुकोमल प्रेम भावनायें अधिक प्रकट होती है। प्रेम-गीत सीधे-सीधे अभिधात्मक होते हैं, अपने प्रिय को सीधे सम्बोधित करते हैं, उसमें विम्बों व प्रतीकों की गहरी जटिलतायें नहीं होती। सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक विद्रूपताओं और विसंगतियों से परम्परागत गीत आंखें चुराकर अपनी प्रियसी के आंचल में अपने-आपको छिपा लेने में ही अपनी सफलता मानता है। जैसा कि मैंने कहा कि गोविंद अनुज मूलतः गीतकार है। इस लिए उनके गीतों में प्रेम की प्रधानता, सरसता और सरलता है, कहीं-कहीं अतिशय भावुकता भी है किन्तु कहन की नवीनता, नवीन प्रतीक, नया विम्ब-विधान, मौलिक उपमायें, आंचलिक शब्दावलि के साथ ग्रामीण मुहावरों और लोकोक्तियों का सारगर्भित उपयोग उन्हें अन्य नव-गीतकारों से थोड़ा अलग करके खड़ा करता है। यही थोड़ासा अलग होना उनकी प्रथक पहचान भी है।
प्रेम की भावनाओं के अलावा उनकी रचनाओं में आम-आदमी का जीवन संघर्ष, आम-आदमी के जीवन में जीवन-मूल्यों के क्षरण की पीड़ा, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, पारिवारिक विसंगति, विसमता, विघटन, विडम्बना, विद्रूपता, विवशता और उत्पीड़न के दर्शन भी होते हैं। यही वे तत्व है जो नवगीत को परम्परागत गीतों से अलग पहचान दिलाते हैं। गोविंद अनुज की अब तक की जीवन यात्रा कोलारस जैसे ग्रामीण परिवेश, शिवपुरी जैसे मझोले नगरों की मानसिकता और भोपाल जैसे महानगर में अपनी जड़ों से कट कर आये दिखावटी मानसिकता के अफसरों व नेताओं के मध्य व्यतीत हुई है। उनके अनुभव का फलक बड़ा व्यापक है। उन्होंने आज की ग्रामीण विसंगतियों के साथ महानगरीय जटिलताओं को बहुत निकटता से देखा है। एक शिक्षक, लेखा-अधिकारी के साथ उन्होंने राज्य-सरकार के कियी मंत्री के निजी-सचिव के रूप में भी काम किया है। समाज के उन तमाम छोटे-बड़े घटकों का अनुभव में लिया है जो सामन्यतः प्रत्येक रचनाकार को सहज उपलब्ध नहीं होता। उनके जीवन के ये व्यापक अनुभव, उनकी गहरी संवेदनाओं और अनुभूतियों के साथ जुड़ कर उनकी रचना-धर्मिता से जुड़ कर उनकी रचनाओं स्पष्टतःउजागर होते दिखाई देते हैं।
विभिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाने वाले तथा दस से अधिक ग्रंथों के रचियता गोविंद अनुज का ‘‘बूंद-बूंद चांदनी झरी‘‘ दूसरा नवगीत संग्रह है। इस संग्रह की पहली ही रचना ‘‘अम्मा‘‘ शीर्षक से है-तार तार रिश्तों की चादर/सीती है अम्मा/ एक सूत्र में /घर को बांधे /जीती है अम्मा। उनकी यह रचना मां के प्रति उनके स्नेह व आदर के साथ एक स्त्री के मां के रूप् में दायित्व-बोध को प्रकट करती है।
संकलन की दूसरी रचना-हार गया पनघट/ढीट, पिपाशा जीत गई/लो अबकि मीठे पानी की झिरिया, रीत गई।
उनके कवि की दूर-दृष्टि कहां तक जाती है इसके दर्शन इस रचना में करिए-सत्य समझना/ऐसे दिन भी आने वाले हैं/जो मुस्कानों पर भी/शुल्क लगाने वाले हैं।
उनका प्रकृति प्रेम के साथ उनकी चुलबुली भावना के दर्शन इस गीत में कीजिए-फूल बूंदों के झराझर झर रहे हैं/मैं नहीं बादल शरारत कर रहे हैं।
नई पीढ़ी के अपने गृह-गांव से पलायन का एक चित्र इस गीत में निहारिए-सपनों से लेकर यर्थाथ से, जुड़ने चले गए/शोख परिंदे आसमान पर उड़ने चले गए।
उनकी श्रृंगार भावना का एक गीत-दूध में धोये कमलसी तुम/शोख गदराई गजलसी तुम।
सरकारी महकमों में कागजी घोड़े दौड़ाने की मानसिकता का एक गीत-मंत्री,अफसर घूम रहे हें/लिए हाथ में कोड़े/दोड़ रहे हैं सरपट-सरपट/ये कागज के घोड़े।
आम आदमी की विवशता को इस गीत में परखिए- इस बेढंगे से मौसम की/सीख लिए फिरते हैं/जेबों में दहशत,नाकामी/चीख लिए फिरते हैं।
और-
साफ साफ लफ्जों में उसने/बात मुझे समझा दी हे/बातों बातों में अपनी/औकात मुझे समझा दी है।
पारिवारिक विघटन का एक चित्र-बड़ी हवेली का कर डाला/क्यों छोटा आकार/ आज नही ंतो कल पूछेगी/आंगन की दीवार।
एक और सामाजिक विवशता की गीत-बैठ गई आकर वीरानी, जैसे मरघट की/कोई समझ नहीं पाया है,पीड़ा पनघट की।
गोविंद का प्रत्येक नवगीत इस संकलन में किसी न किसी नवीनता के साथ प्रगट होता है। विषय की विविधता ही नहीं, कथ्य और कहन के साथ शिल्प,बनावट,बुनावट और भाषा के विभिन्न तेवर तथा कलेवर भी दिखाई देते हैं। मुझे विश्वास है। साहित्य जगत में गोविंद अनुज का यह नवीन संकलन निश्चित ही अपना स्थान बना कर पाठकों की प्रशंसा का पात्र बनेगा। अनंत शुभकामनाओं और शुभाशीषों के साथ-
अरुण अपेक्षित
23.2.2022
इंदौर म.प्र.

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