मुरैना। मुरैना शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर चंबल के जंगलों में 200 विशालकाय मंदिरों को एकसाथ देखकर अद्भुत ही लगता है। भारतवर्ष में कहीं भी अन्यत्र इतने मंदिर एक साथ नहीं दिखते हैं। इनमें से अधिकतर मंदिर अब खंडहर में बदल गए हैं। पुरातात्विक खोज के अनुसार यह मंदिर लगभग चौथी सदी में बनाए गए थे।
इन मंदिरों की यह हालत देखकर लगता है कि इन्हें आक्रांताओं ने नष्ट किया होगा लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं कि संभवत: भूकंप के कारण इनमें से कुछ मंदिर ध्वस्त हो गए हों। मंदिरों के समूह के लिए स्थानीय नाम बटेश्वर मंदिर हैं। कहते हैं कि भारतीयों ने सटीक वास्तु शास्त्र और ज्यामितीय नियमों का प्रयोग करते हुए ऐसे भव्य मंदिरों का निर्माण किया था जिन्हें देखकर देखने वाले दांतों तले अंगुलियां दबा लें।
बटेश्वर के मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा कराया गया था। गुर्जर प्रतिहार शासक सूर्यवंशी थे और वे स्वयं को भगवानश्रीराम के भाई लक्ष्मण का वंशज मानते थे। इन हिन्दू मंदिरों में से अधिकांश मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां मंदिरों के बीच हनुमानजी की एक ऐसी भी प्रतिमा है जिनमें वे अपने पैरों से कामदेव और रति को कुचलते हुए दिखाई देते हैं।
सबसे पहले सन् 1882 में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा साइट को नामांकित किया गया। फिर एक कला इतिहासकार और भारतीय मंदिर वास्तुकला में विशेषज्ञता रखने वाले एक प्रो. माइकल मीस्टर ने यहां का सर्वेक्षण किया। कई विद्वानों ने इस साइट का अध्ययन किया। उदाहरण के लिए फ्रेंच पुरातत्त्ववेत्ता ओडेट वियॉन ने 1968 में एक पत्र प्रकाशित किया था।
जिनमें संख्याबद्ध बटेश्वर मन्दिरों की चर्चा और चित्र सम्मिलित थे। अंत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस क्षेत्र को नामांकित किया गया।
(साभार)

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