निर्माणकाल नौवीं सदी, निर्माणकर्ता नागभट्ट द्वितीय
राजस्थान। यह मंदिर अपने स्थापत्य वैभव के कारण उड़ीसा कोणार्क के सूर्य मंदिर की याद दिलाता है। मंदिर की आधारशिला सात अश्व जुते हुए रथ जैसी है। मंदिर के अंदर शिखर स्तंभ एवं मूर्तियों में वास्तुकला को देखकर भक्तगण आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
राजस्थान में झालरापाटन का सूर्य मंदिर यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।
शिल्प सौन्दर्य की दृष्टि से मंदिर की बाहरी व भीतरी मूर्तियाँ वास्तुकला की चरम ऊँचाईयों को छूती है। मंदिर का ऊर्ध्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यन्त सुन्दर जीवंत और आकर्षक है। शिखरों के कलश और गुम्बद अत्यन्त मनमोहक है। राजस्थान में कभी 'झालरों के नगर' के नाम से प्रसिद्ध झालरापाटन का यह हृदय है। इस मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ था। कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर को चार भुजा (चतुर्भज) मंदिर माना है। वर्तमान में मंदिर के गर्भग्रह में चतुर्भज नारायण की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर के पास स्थित सोनीजी (झालावाड़ नमकीन सेव भंडार) एवं दीपक सुमन (पाटन की मशहूर गजक, मावा-बाटी) को चतुर्भज नारायण भगवान ने गजब का हुनर दिया है। मंदिर के पास अत्यंत भव्य द्वारिकाधीश मंदिर है। परिक्रमा मार्ग मे कई दर्शनीय मंदिर हैं। शिवपुरी मध्यप्रदेश के निवासी शिक्षाविद निरभय गौड़ यहां घूमने गए और जानकारी धमाका से शेयर की।

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