विनम्र श्रृद्धांजलि
इंदौर। प्रख्यात कथाकार और पत्रकार श्री हरीश पाठक जी की पोस्ट से ज्ञात हुआ कि राजनारायण विसारियाजी का निधन हो गया है। जान कर बहुत दुःख हुआ। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उन्हें याद करते हुए कवि अरुण अपेक्षित ने लिखा कि
उनसे मेरी दो बार भेंट हुई थी। जिन दिनों में एम.ए.हिन्दी विषय के साथ कर रहा था, आदरणीय प्रो.रामकुमार चतुर्वेदी ‘‘चंचल‘‘जी ने अपनी मित्रता का उपयोग करते हुए हम विद्याथियों के एक छोटे से आयोजन में उन्हें आमंत्रित किया था। यह आयोजन शिवपुरी के प्रख्यात दर्शनीय स्थल छत्री-प्रांगण में आयोजित किया गया था। तब हमारे प्राध्यापक के रूप में चंचलजी के अलावा डॉ.परशुराम शुक्ल विरही, प्रो.विद्यानंदन शर्मा राजीव, प्रो.के.सी.गुप्ता और डॉ.के.के.जैन पढ़ाया करते थे। शासकीय महाविद्यालय शिवपुरी का हिन्दी विभाग तब इन विभूतियों के कारण अत्यंत समृद्ध था। अंतिम बार बिसारियाजी के दर्शन प्रो.चंचलजी के दिवंगत हो जाने पर उनके निवास पर हुए थे। वे तब अपनी शोक-संवेदनायें देने के लिए वहां आये थे।
विक्टोरिया कॉलिज में पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटलबिहारी वाजपेईजी के अभिन्न साथियों में इनकी गणना होती थी। अटलजी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने निवास पर आयोजित कवि-गोष्ठीयों में अपने पुराने सहपाठियों को आमंत्रित किया करते थे। इन्हीं आत्मीयता साथियों में एक थे- राजनारायण विसारियाजी।
आप बी.बी.सी.लंदन में तब उद़घोषक हुआ करते थे। एक उद्घोषक के लिए भाषा की परिशुद्धता के साथ उच्चारण की शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखना होता है। छत्री पर आयोजित उस छोटेसे आयोजन का संचालन मैं कर रहा था, पर यह बात आयोजन में उपस्थित एक नवागत आदरणीय प्रोफेसर साहब को बहुत चुभ रही थी। उनके होते हुए कार्यक्रम का संचालन एक विद्यार्थी करे। उन्होंने मेरे सामने से माइक खींच लिया और स्वंय बलात संचालन करने लगे। उनके संचालन में सबसे बड़ा दोष था-वे ‘‘स‘‘ अक्षर नहीं बोल पाते थे। जहां भी ‘‘स‘‘ अक्षर आता वे उसे ‘‘श‘‘ बोलते। बिसारियाजी यह सब देख और सुन रहे थे और यह सब उनकी सहनशीलता के बाहर था। उन्होंने संचालन के मध्य हस्तक्षेप करते हुए कहा-चंचलजी आपको याद है अपने विक्टोरिया कॉलिज में एक कवि,सम्मेलन, मुशायरा आयोजित हुआ था। मैंने एक ऐसे कवि-सम्मेलन व मुशायरे का किस्सा सुना था जिसे अटलजी ने बाहर से आमंत्रित कवियों व शायरों के मंच पर समय पर ना आ पाने के कारण स्थानीय कवियों से पाठ करा कर उसे यथा समय समाप्त करने की घोषणा कर दी थी। इसमें उनके गुरु डॉ.शिवमंगलसिंह सुमन का एक तरह से विरोध हो गया था, क्योंकि वे सब आमंत्रित कवि व शायर उनके ही आमंत्रित थे। अटलजी का गुस्सा इस बात पर था कि इन कवियों और शायरों को विद्यार्थियों के अमूल्य समय की चिंता नहीं थी और वे सभी कहीं खाने और पीने में व्यस्त थे। इसकी खबर अटलजी को लग गई थी।
मुझे लगा कि बिसारियाजी सम्भवतः इस कवि सम्मेलन/मुशायरे की बात करने वाले है। सम्भवतः चंचलजी को भी यही लगा होगा। उन्होंने कहा-हां।
-नहीं मैं उस मुशायरे की बात नहीं कर रहा हूं, मैं बात कर रहा हूं- जिसमें एक शायर आये थे और वे बड़ी जोश के साथ अपनी रचना का पाठ कर रहे थे.......जब फूलों पर सबनम गिरती है,........जब फूलों पर सबनम गिरती है।
इसी बीच मंच पर उपस्थित किसी दूसरे शायर ने उन्हें टोका- जनाब ये सबनम क्या होती है?
-वही ओश। शुद्ध उच्चारण ओस।
मुझे नहीं पता बिसारिया जी के द्वारा सुनाई इस घटना में कितनी सच्चाई थी या ये मात्र उनके द्वारा सुनाया गया एक चुटकुला भर था। पर एक हिन्दी के प्रोफेसर के द्वारा किये जा रहे उच्चारण दोष पर करारा प्रहार अवश्य था। सम्भवतः आदरणीय प्रोफेसर साहब ने बिसारियाजी के उस व्यंग को समझ लिया था इस लिए धीरे से माइक उन्होंने मेरी ओर सरका दिया। आदरणीय राजनारायण बिसारिया ग्वालियर की माटी के सपूत थे। एक अच्छे रचनाकार थे। बी.बी.सी.लंदन के अलावा दूरदर्शन के महानिदेशक भी रहे, रेडियो प्रसारण भारती में भी वरिष्ठ अधिकारी रहे। भिंड में जन्में तथा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भिंड, मुरैना व गुना में हुई। उच्च शिक्षा आपने तात्कालिक विक्टोरिया कॉलिज और आज के एम.एल.बी.कॉलिज से पूरी की। मूलतः कवि और नाटककार रहे,अच्छे उद्घोषक तो वे थे ही। उनके अवसान से ग्वालियर का अटलजी की पीढ़ी का सम्भवतः अंतिम स्तम्भ भी आज ढह गया। मैं अपने हृदय की अंनंत गहराईयों से उनके प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ऊॅ शांति, ऊॅ शांति, ऊॅ शांति।
अरुण अपेक्षित
18 फरवरी 2022

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