गुरुदेव पुरुषोत्तम गौतम जी से मेरा परिचय लगभग आधी शताब्दी से है। जब वे शिवपुरी आई.टी.आई. में हिन्दी अनुदेशक के पद पर थे तब मैं और मेरा अनुज अरविंद सक्सेना बाकायदा शोर्ट-हेंड सीखते हुए उनके विद्यार्थी थे। वैसे भी उनसे हमारी पारिवारिक मित्रता थी। गौतमजी के अनुज मेरे पिता के साथ शासकीय माध्यमिक
विद्यालय सिंहनिवास में वर्षों तक शिक्षक सहकर्मी रहे तो वहीं स्व.श्री दिनेश गौतम मीसाबंदी और तात्कालिक छात्र-नेता मेरे अनुज अरविंद के आत्मीय अग्रज तुल्य मित्र थे तथा वे निरंतर हमारे निवास पर आते रहते थे। श्री पुरुषोत्तम गौतमजी का भाषा विज्ञान विषय के साथ हिन्दी साहित्य का गहरा अध्ययन और ज्ञान उन्हें सदा अपने छात्रों के मध्य लोकप्रिय बनाये रखता था। मुझे यह कहने में किंचित संकोच नही ंहम दोनों भाई आदरणीय गौतमजी के प्रिय शिष्यों में रहे हैं-शार्ट हेंड के विद्यार्थी के रूप में।
गौतमजी की साहित्यिक अभिरुचि तथा उन्हें नगर के तमाम साहित्यिक प्रबुद्धजनों व आयोजनों से लगातार जोड़े रखने में सफल हुई है। आर.एस.एस.के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में नगर व प्रदेश को उनके अवदान और योगदान की चर्चा में यहां नहीं करूंगा अन्यथा मैं अपने मूल विषय से भटक जाऊंगा। साथ ही वह इतना अधिक व्यापक है कि उसकी चर्चा के लिए मुझे एक नया ग्रंथ ही लिखना पड़ेगा। आर.एस.एस. के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में उन्हें अनेक यातनायें झेलना पड़ी। रा.स्वंय सेवकों के प्रति उस समय की सरकारों का जो रवैया रहा है-वह भी किसी से छिपा नहीं है। किसी सजा की तरह उनकी प्रदेशके अत्यंत दुर्गम और सुदूर जिलों में पदस्थापना की जाती रही। बात लम्बी न खिचे इस लिए मैं अपनी बात को उनकी नवीनतम प्रकाषित कृति, कहानी संग्रह- काशी फल व अन्य कहानियों तक ही सीमित रखना चाहूंगा।
वेे कवितायें नही लिखते पर उनकी कहानियों में कविता की तरह तरलता, सरलता, प्रवाह, गति व माधुर्य है, लय है, संगीत है और संवेदनशीलता है। कुछ कहानियों को पढ़ते हुए आप अपनी आंखें को कुछ-कुछ गीली अनुभव कर सकते हैं। गौतमजी की कहानियां किसी विशेष विचार-धारा का प्रतिनिधित्व न करके व्यापक मानवीय संवेदनाओं की गहरी अनुभूतियों से फूटती है। उनकी सभी कहानियां आदर्शोंन्मुखी है, संदेशात्मक है, सोचने पर विवश करती है, सउद्धेश्य है। अपनी वर्तमान स्थितियों पर विचार व मंथन करने को मजबूर करती है। नारेबाजी नहीं है, मिथ्या आक्रोश नहीं है, धैर्य है, चिंतन है, गम्भीरता है। उनकी कहानियां सनातन धर्म में गहरी आस्था और विश्वास व्यक्त करती हैं। उनकी भाषा पर छायावाद की छाया है और कथ्य में मुशी प्रेमचन्द्र का यर्थाथं है। गौतमजी की अधिकांश कहानियां संस्मरणात्मक है। आत्मानुभव से उठाई प्रतीत होती है। जीवन के गहरे व गहन अनुभवों का स्पष्ट दस्तावेज हैं-ये कहानियां।
इस संकलन में गौतमजी की 15 कहानियां संकलित है। कहानियों की कथा-वस्तु की चर्चा करके में पाठकों के कहानी के पढ़ने के आनंद को कम नहीं करना चाहूंगा। मैंन इनमें से बहुतसी कहानियों को उनके प्रकाषन के पूर्व भी पढ़ा था और प्रकाषन के बाद भी पढ़ा है। मुझे लगता है इस संकलन को मध्य-प्रदेश का संस्कृति विभाग को प्राप्त कर अपने प्रदेश भर के पाठक मंच केन्द्रों तक पहुंचाना चाहिए वामपंथी सोच तथा विचारधारा से प्रथक यह संकलन अपनी सनातन संस्कृति, आस्था, आदर्श और विचारधारा का सच्चा दस्तावेज सिद्ध होगी। इस दिशा में प्रयास की अपेक्षा है।
अरुण अपेक्षित
15 मार्च 2022
इंदौर म.प्र.

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