शिवपुरी। वैसे तो शिवपुरी की बात ही निराली हैं। यहां घने जंगल, नैसर्गिक सुंदरता, हरियाली, वन्य प्राणी और दर्शनीय स्थल से लेकर झील, झरने, चुडैल छाज, संगमरमरी छतरी, माधव नेशनल पार्क मौजूद हैं। इसीलिए इसे देश के नामी शहरो में गिना जाता हैं। लेकिन इतिहास में भी शिवपुरी ने हस्ताक्षर किए हैं। इन्हीं कहानियों में से एक कहानी है की महाभारत काल में जब पांडवों ने शिवपुरी के घने जंगलों में डेरा डाला तभी माता
कुंती को प्यास लगी तो उन्होंने अपने बेटे अर्जुन से पानी मांगा लेकिन आसपास क्या, जब दूर तक पानी नही मिला तो अर्जुन ने धनुष उठाया और जमीन पर छोड़ दिया। बताते हैं की जैसे ही तीर लगा पानी की धार बह निकली। बाद में इसी जगह का नाम बाणगंगा कुंड Banganga Kund Shivpuri पड़ा। जो नगर के छतरी रोड पर स्थित है और अब प्रदेश की तीर्थ स्थल सूची में जुड़ा हुआ है। सदियों बीत गईं। शिवपुरी में पेयजल का विकराल संकट तक व्याप्त रहा लेकिन इन महाभारतकालीन कुंडों में आज भी जल बारह महीने रहता हैं।
भीम, नकुल, सहदेव सहित सास-बहू के नाम के कुंड
बाणगंगा पर भीम, नकुल, सहदेव सहित सास-बहू के नाम के कुंड हैं। भीम कुंड सबसे बड़ा है। सास- बहू का कुंड संकरा और गहरा है।
श्रीमंत ने करवाया था तीर्थ स्थल के रूप में पंजीबद्ध
शिवपुरी। नगर के प्राचीन मंदिर सिद्धेश्वर, बाण गंगा और पर्यटक स्थल भदैया कुंड के साथ साथ पिछोर खोड़ के धाय महादेव मंदिर को मप्र तीर्थ स्थान एवं मेला प्राधिकरण द्वारा तीर्थ स्थल के रूप में पंजीबद्ध किया गया है। मप्र शासन धार्मिक न्यास व धर्मस्व विभाग की मंत्री रहते श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया ने जिले के इन प्रमुख स्थानों को तीर्थ स्थल सूची में स्थान दिलवाया था।
सिद्धेश्वर से लेकर बाणगंगा के बीच पांडवों ने 52 कुंड बनवाए
नगर के सिद्धेश्वर से लेकर बाणगंगा के बीच पांडवों ने 52 कुंडों का निर्माण करवाया था लेकिन समय के साथ देखरेख के अभाव में अब दस के आसपास कुंड ही मौजूद हैं। जिनमें से कुछ बाणगंगा के पीछे जंगल में हैं। जबकि 7 कुंड आज भी आसपास बने हुए हैं। यहां साल भर पानी रहता है और लोग रोजाना आते जाते हैं। सभी 10 से 15 फीट तक गहरे हैं।आसपास पेड़ पत्तों से गंदगी, काई लगने से होते गंदे
यहां कुंडों के आसपास पेड़ लगे हुए हैं। जबकि काई भी पानी को गंदा करती हैं जिसके चलते ये कुंड बेहद गंदे हो जाते हैं। तर्पण करने भी लोग यहां आते हैं।
धनती देवी राठौर करवाती हैं हर साल इनकी सफाई
बाणगंगा के 7 कुंड की सफाई हर साल अपनी तरफ से करवाती हैं श्रीमती धनती देवी राठौर जो सिंधिया निष्ठ हरिओम राठौर हटईयन की 83 वर्षीय माता जी हैं। वे लगातार बेटे हरिओम से इनकी सफाई के लिए कहकर कुंड साफ करवाती हैं।
पंप चलाकर करते खाली, फिर सफाई
बाणगंगा के इन कुंडों का पहले मोटर चलाकर पानी खाली करवाया जाता हैं। जिसके बाद इनकी सफाई करवाई जाती हैं। ट्रॉली में कचरा भरकर उसे उचित जगह खाली करवाया जाता हैं। कई ट्रॉली मलवा निकलता हैं। कल ही इनकी सफाई की शुरुआत हुई हैं।खास बात यह है की पानी को कुंडों के आसपास ही छोड़ते हैं जिससे जलस्तर भी बना रहता हैं। मिट्टी में फिल्टर होकर नैसर्गिक तरीके से यह फिर कुंडों तक जा पहुंचता हैं।
राम-जानकी और राधा कृष्ण का मंदिर भी मौजूद
बाणगंगा के अंदर के कुंड के ऊपर राम-जानकी और राधा-कृष्ण के मंदिर में प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर के चारों ओर अन्य मंदिर हैं। इन मंदिरों में शिवलिंग व हनुमानजी की मूर्ति स्थापित होने से पूरे क्षेत्र का अपना धार्मिक महत्व भी है।
जल खोजी तकनीक होती थी तीरों में इतिहासकार और लेखक प्रमोद भार्गव का कहना है कि महाभारत काल में यह उल्लेख मिलता है कि उस दौरान जल खोजी तीर होते थे जिन्हें चलाने पर तीर वहीं गिरता था जहां पानी होता था और कम मात्रा में पानी भी निकल आता था। इसके बाद वहां बड़े गड्ढे या कुंडों का निर्माण कर उस पानी को सहेज लिया जाता था।
शिलालेख मौजूद
कुंडों के समीप ही एक बड़े पत्थर पर शिलालेख भी मौजूद है। इतिहासकार अरुण अपेक्षित बताते हैं कि बाणगंगा के कुंड महाभारतकालीन इतिहास को अपने आप में समेटे हुए हैं। शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है। इसे पढ़ा नहीं जा सका लेकिन इससे यह पुष्टि होती कि यह स्थान महाभारत काल या उससे भी पहले का है।
पुरतीला पत्थर इसलिए रहता है कुंडों में 12 महीने पानी
बाणगंगा के आसपास पुरतीला पत्थर है। यह पत्थर बारिश के पानी को सहेज लेता है जिससे लगातार पानी रहता है। ये कुंड सदियों से यहां बने हुए हैं, इसलिए आज भी उनमें पानी रहता है इसलिए ये हर मौसम में पानी से भरे रहते हैं। साल के 12 महीने इन कुंडों से पानी मिलता है।

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