प्रोफेसर सिकरवार के नैतिक बल का सामर्थ्य ऐसा था कि उनकी उपस्थिति मात्र से ही विद्यार्थी अनुशासित रहते थे: संजीव बाँझल
*प्रोफेसर सिकरवार जैसा व्यक्तित्व बार-बार जन्म नहीं लेता, जीवन जीने की कला को उन्होंने खुद जीकर हमें सिखाया : संजीव बाँझल
शिवपुरी। आज दुनिया व्हाटसअप पर श्रद्धांजलि लिखकर पल भर में भूल जाती है उस दौर में प्रोफेसर सिकरवार सर को शिवपुरी के लोग उनके अंतिम प्रयाण से 07 साल बाद और इस शहर को छोड़कर चले जाने के 17 साल बाद भी उसी आदर और श्रद्धा से यादों में संजोए हुए हैं, यह प्रोफेसर सिकरवार के जीवन की साधना और उनकी तपस्या का परिणाम है. उक्त उदगार शिवपुरी जिले में रचनात्मक पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ पत्रकार संजीव बाँझल ने प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार की पुण्यतिथि पर आयोजित भावांजलि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए. प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार की सातवीं पुण्यतिथि पर शहर के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा कर्मचारी भवन में आयोजित कार्यक्रम में उनकी गौरवमयी स्मृतियों को याद किया गया और भावांजलि व्यक्त कीगयी. सातवीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में ठीक 07:30 पर अमृतवाणी का पाठ प्रारम्भ हुआ। 45 मिनट तक चले अमृतवाणी के पाठ के बाद प्रोफेेेसर सिकरवार के जीवन पर बोलते हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पत्रकार संजीव बाँझल ने कहा कि प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सिर्फ याद करने का नहीं, बल्कि जीने का विषय हैं. उनसे सीखने की जरूरत है. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपनी शासकीय सेवा में कभी एक दिन की भी छुट्टी ना ली हो, यहाँ तक कि अपने खास भाई की शादी में तक जो कर्तव्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण ना गया हो, उस विराट व्यक्तित्व के शिक्षा के प्रति समर्पण को समझने और उनके स्थापित मानकों पर थोड़ा-बहुत ही सही पर चलने की जरूरत है. प्रोफेसर सिकरवार सर के समय के कॉलेज के दिनों की एक घटना का उल्लेख करते हुए पत्रकार संजीव बाँझल ने बताया कि वार्षिकोत्सव के अवसर पर छात्रों में एक मुद्दे को लेकर भयंकर विवाद गहरा गया था. ऐसा लग रहा था कि शायद अगले दिन वार्षिकोत्सव शांति से नहीं हो सकेगा और निश्चित ही उपद्रव होगा. लेकिन अगले दिन प्रोफेसर सिकरवार सर के वार्षिकोत्सव के दौरान वहाँ खड़े रहने मात्र से कोई उपद्रव नहीं हुआ, क्योंकि उनका नैतिक बल और उनका नैतिक सामर्थ्य ऐसा था कि उनकी उपस्थिति मात्र विद्यार्थियों को अनुशासित रखने का काम करती थी. 1998 में जैन संत मुनिश्री श्री सौरभ सागर जी महाराज के समक्ष हुए प्रोफेसर सिकरवार सर के उदबोधन का उल्लेख करते हुए श्री बाँझल ने बताया कि जैन संत मुनिश्री सौरभ सागर जी महाराज प्रोफेसर सिकरवार सर के उदबोधन से इतना प्रभावित हुए थे कि उनके बारे में जैन संत ने यहाँ तक कह दिया था कि साधारण वस्त्रों में यह कोई असाधारण साधक है.
श्रद्धांजलि कार्यक्रम में उक्त विचार-कणिका के बाद उपस्थित समस्त प्रबुद्ध नागरिकों ने प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की. प्रोफेसर सिकरवार सर के शिष्यों की टोली जिसमें प्रहलाद भारती उपाध्यक्ष म.प्र. पाठ्यपुस्तक निगम, राजेन्द्र वर्मा, केशव शर्मा, भरत भार्गव, डॉ. आर.आर. धाकड़, तरुण अग्रवाल शामिल हैं माधव चौक स्थित श्रीहनुमान मंदिर पहुंचकर जरूरतमंद गरीबों के बीच भोजन-प्रसादी की सेवा का कार्य इस भाव के साथ किया कि प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर की मानवीय संवेदनाओं का झुकाव गरीब और वंचित लोगों की हर संभव मदद करने की ओर हमेशा रहा करता था.

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