शिवपुरी। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मध्यकाल के महान कवि और संत कबीर दास की जयंती मनाई जाती है। शक्ति शाली महिला संगठन के संयोजक रवि गोयल ने बताया की आज 14 जून संत कबीर दास जयंती के उपलक्ष्य में आदिवासी गांव के बच्चो एवम महिलाओं को जागरुक करके उनकी जयंती मनाई एवम उनके दोहे पढ़कर सुनाए। उन्होंने कहा की संत कबीर दास हिंदी साहित्य के ऐसे प्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने समाज में फैली भ्रांतियों और बुराइयों को दूर करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने दोहों के जरिए लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया। कबीर दास जी एक संत तो थे ही साथ ही वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। कबीर दास जी के दोहे अत्यंत सरल भाषा में थे, जिसकी वजह से इनके दोहों ने लोगों पर व्यापक प्रभाव डाला। आज भी कबीर दास जी के दोहे जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। रवि गोयल ने कबीर दास के फेमस दोहे को पढ़ा जिसमे पहला जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही
अर्थ- जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अंधकार मिट गया। ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।
प्रमोद गोयल ने प्रोग्राम में द्वारा दोहा जो विख्यात है उसको पढ़कर सुनाया जिसने कहा गया था की बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
अर्थ:- खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं। आशा कार्य कर्ता ने कबीर दास का तीसरा दोहा पढ़ा जिसमे बोला गया है की जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का।
इस प्रकार रवि गोयल ने अन्त में सभी समुदाय की महिलाओं एवम बच्चो का आभार व्यक्त किया एवम प्रोग्राम को सफल बनवाने में आगनवाड़ी कार्यकर्ता सुनीता जैन, आशा वर्कर, प्रमोद गोयल , साहिल खान, राहुल भोला एवम आगनवाड़ी सहाहिका ने सक्रीय भागीदारी की एवम सहयोग किया।

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