उज्जैन पेंशनर्स संघर्ष समिति के अध्यक्ष अरविंद सिंह चन्देल एवं पेंशनर्स एसोसिएशन म.प्र.के संभागीय अध्यक्ष अरुण शर्मा द्वारा पत्र लिखकर मध्यप्रदेश शासन को सूचित कर दिया है। कि हमें 5 प्रतिशत महँगाई राहत पेंशनर्स को मंजूर नहीं होगी।
14 प्रतिशत महंगाई राहत से कम कोई भी आदेश निकालने की तकलीफ ना करे ।
मध्यप्रदेश शासन से स्पष्ट निवेदन है कि अब हम पेंशनर कष्ट सह लेंगे
छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश शासन द्वारा किया जा रहा अपमान सहन नहीं होगा।
5% प्रतिशत महंगाई राहत किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होगी।
पेंशनर्स एसोसिएशन द्वारा लगातार संघर्ष किया जा रहा है।
*जबकि देशभर की अधिकांश राज्य सरकारे अपने रेगुलर और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को केन्द्र के समान 34 %फ़ीसदी मँहगाई भत्ता और मँहगाई राहत दे रही हैं.*
*मध्यप्रदेश सरकार पिछले 21 सालों से राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 तथा 6वीं अनुसूची में दिए गए उपबन्धों की गलत व्याख्या कर पेंशनरों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती चली आ रही हैं.*
*राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों को अपने - अपने पेंशनरों को पेंशन देने के लिए 6वीं अनुसूची में दिए गए प्रावधानों के तहत दायित्वाधीन बनाती है, धारा 49 और 6वीं अनुसूची की पांचों कंडिकाओं तथा पांचवीं कंडिका की दोनों उपकंडिकाओं में कहीं भी नहीं लिखा है कि केन्द्र सरकार द्वारा घोषित मंहगाई राहत (डी आर) मध्यप्रदेश सरकार अपने पेंशनरों को देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद जारी करेगी ।*
*धारा 49 और 6वीं अनुसूची में दिये गए प्रावधान केवल इतना कहते हैं कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार पेंशन भुगतान का दायित्व अपनी जनसंख्या के अनुपात में उठाएंगे । दोनों राज्य सरकारों ने पेंशन शेयर को भी तय कर लिया है । जिसके अनुसार मध्यप्रदेश सरकार 76 फीसदी और छत्तीसगढ़ सरकार 24 फीसदी के अनुपात में शेयर करेंगे । दोनों सरकारें वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर अर्थात 31 मार्च को अपने - अपने शेयर का समायोजन करेंगी ।*
*वर्तमान में जहां केन्द्र सरकार अपने पेंशनर्स को 34 फीसदी मंहगाई राहत दे रही है वहीं मध्यप्रदेश सरकार 17 फीसदी मंहगाई राहत दे रही है ।**इतना ही नहीं मध्यप्रदेश सरकार ने दो बिल्लियों की लड़ाई (छत्तीसगढ़ - मध्यप्रदेश सरकार) का फायदा उठाते हुए छठवें वेतनमान के 32 महीने तथा सातवें वेतनमान के 27 महीने का एरियर्स का भुगतान अभी तक नहीं किया है ।*
*मध्यप्रदेश सरकार य़ह मान कर चल रही है कि यदि हमारे उपेक्षित रवैये से नाराज पेंशनरों ने आंदोलन भी किया तो सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. सरकार की मंशा तो यही दिखती है कि जितनी जल्दी जितने ज्यादा पेंशनर्स की संख्या कम होगी उसके लिए उतना ज्यादा फायदेमंद ही होगा।
यहाँ य़ह लिखना उचित ही होगा कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत जहाँ 1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश को विखंडित कर छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया वहीं 9 नवम्बर 2000 को उत्तरप्रदेश को विखंडित कर उत्तराखंड तथा 15 नवम्बर 2000 को बिहार का विखंडन कर झारखंड राज्य अस्तित्व में आया ।*
*राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 और 6वी अनुसूची के प्रावधान मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ की तरह ही उत्तरप्रदेश - उत्तराखंड तथा बिहार - झारखंड राज्यों में भी लागू होते थे परन्तु मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ के बाद अस्तित्व में आये राज्य उत्तरप्रदेश - उत्तराखंड और बिहार - झारखंड ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 और 6वीं अनुसूची को विलोपित कर दिया है तथा अपने - अपने राज्य के पेंशनरों की देनदारियों का निपटारा स्वतंत्र रूप से कर रहे हैं । वहीं 21 साल बाद भी मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ धारा 49 (6) को अपने पेंशनर्स की छाती में मूंग दलने की चक्की बनाये हुए हैं। अरुण शर्मा
उज्जैन संभागीय अध्यक्ष ने कहा की पेंशनर्स परिवार को इस महंगाई में लगभग 4000/- रुपए से लेकर 14000/- रुपए तक का नुक्सान होने से गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवारों को जीवन यापन करना कठीन हो गया है। वृद्धावस्था होने के कारण दवा खर्च भी अधिक होता है।
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