शिवपुरी। 31 जुलाई, साहित्यकार प्रेमचंद की 142वीं जयंती के अवसर पर मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ, इकाई शिवपुरी ने ‘प्रेमचंद का साहित्य और किसानों के सवाल’ विषय पर एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया। विचार-गोष्ठी की शुरुआत लेखक ज़ाहिद ख़ान ने की। उन्होंने अपने एक लेख का वाचन करते हुए कहा, प्रेमचंद ने अपने साहित्य में हमेशा किसानों के सवाल उठाए। वे किसानों की सामाजिक-आर्थिक मुक्ति के पक्षधर थे। ‘आहुति’, ‘कफ़न’, ‘पूस की रात’, ‘सवा सेर गेहूं’ और ‘सद्गति’ आदि उनकी कहानियों में किसान और खेतिहर मजदूर ही उनके नायक हैं। सामंतशाही और वर्ण व्यवस्था किस तरह से किसानों का शोषण करती है, यह इन कहानियों का केन्द्रीय विचार है। उन्होंने आगे कहा, प्रेमचंद ने अपने संपूर्ण साहित्य में न सिर्फ़ किसानों के अधिकारों की पैरवी की, बल्कि इन्हें हासिल करने के लिए उन्हें संघर्ष का रास्ता भी दिखलाया। किसानों के जो मौजूदा सवाल हैं, उनके बहुत से जवाब प्रेमचंद साहित्य में खोजे जा सकते हैं। बस ज़रूरत उसके एक बार फिर गंभीरता से पुनः पाठ की है। कवि, नवगीतकार विनय प्रकाश जैन ‘नीरव’ ने कहा, कालजयी साहित्य वही माना जाता है, जिसमें प्रतिकार की आंच हो। अन्याय के प्रति संघर्ष हो। प्रेमचंद के साहित्य में यह सब गुण हैं। यही वजह है कि उनका साहित्य कालजयी है। उन्होंने कहा, प्रेमचंद गांव में रहे। उन्होंने किसानों के संघर्षशील जीवन को करीब से देखा-महसूस किया। इसलिए वे उनके दर्द को प्रमाणिकता के साथ व्यक्त कर पाए।
कवि रामपंडित ने कहा, प्रेमचंद ने अपने साहित्य में किसानों की समस्याओं का जो चित्रण किया, उनके बाद के साहित्यकारों में वह बात नज़र नहीं आती। आज किसानों की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता की कमी आई है। पूंजीपति वर्ग सिर्फ़ अपना मुनाफा़ देखता है। पत्रकार सुनील व्यास ने कहा, प्रेमचंद ने अपने साहित्य में निम्न वर्ग और किसानों का ही चित्रण किया। समाज में जो सबसे ज़्यादा शोषित हैं, उन्हीं के सवाल उठाए। उन्होंने कहा, प्रेमचंद के किसान और आज के किसान, दोनों में बड़ा फ़र्क है। आज किसान अपने अधिकारों को लेकर अधिक संघर्षशील है। हाल का किसान आंदोलन इसका एक बड़ा उदाहरण है। जिसने सरकार को झुकने के लिए मज़बूर कर दिया। शायर-नाटककार दिनेश वशिष्ठ ने कहा, प्रेमचंद ने अपने लेखन से साहित्य की पूरी धारा ही बदल कर रख दी। उनका कहना था, आज उपज की लागत बढ़ी है, मगर किसानों को उसकी फसल का सही दाम नहीं मिलता। यह बात सच है कि किसानों का एक वर्ग संपन्न है, लेकिन एक बड़ी आबादी विपन्न है। उसके सामने कई समस्याएं हैं। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में इन्हीं सीमांत किसानों की बात की है।
विचार-गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रोफ़ेसर पुनीत कुमार ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा, प्रेमचंद ने अपने साहित्य में किसानों की जो समस्याएं और मुद्दे उठाए, वे आज भी विद्यमान है। प्रेमचंद का साहित्य उनके ज़माने में तो समकालीन था ही, आज भी है। प्रेमचंद के साहित्य में जहां वर्ग संघर्ष दिखाई देता है, वहीं उनके महिला पात्र भी बड़े साहसी हैं। उन्होंने कहा, प्रेमचंद के साहित्य में किसान कई समस्याओं से त्रस्त नज़र आते हैं, लेकिन वे आत्महत्या नहीं करते। अंत तक संघर्ष करते हैं।
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