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धमाका साहित्य कॉर्नर: वरिष्ठ साहित्यकार मुकेश अनुरागी के करैरा आगमन पर हुई "कवि गोष्ठी"

मंगलवार, 5 जुलाई 2022

/ by Vipin Shukla Mama
करैरा। करैरा के मुंशी प्रेमचंद कालोनी में निवास रत वरिष्ठ साहित्यकार सतीश श्रीवास्तव के निवास पर शिवपुरी के नवगीतकार मुकेश अनुरागी के करैरा आगमन पर नगर के समस्त साहित्यकारों द्वारा ,उनके सम्मान में एक काव्य- गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी साहित्यकार साथियों ने श्री मुकेश अनुरागी का स्वागत और सम्मान किया कवि गोष्ठी की शुरुआत कवि प्रदीप श्रीवास्तव ने मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत करके की.
साहित्यकार एवम होम्योपैथी के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. राजेन्द्र गुप्ता के श्रृंगार गीत प्रस्तुत किया.. 
बन सको कागद अगर तो
मैं कलम बन जाऊंगा ।
पूर्णता दें, प्रेम की 
 पंक्तियां लिख पाऊँगा ।।
कविता ने सभी का मन मोह लिया । 
कवि श्री प्रदीप श्रीवास्तव गीतिका को खूब सराहा गया ....
वक़्त अच्छा नही ज़ज़्बात पे काबू रखना।
बिगड़ न जाये हर इक बात पे काबू रखना।।
कान आहट पे रखो और रहो चौकन्ने ,
हर एक हाल में हालात पे काबू रखना ।।
कवि श्री प्रभु दयाल शर्माजी ने अपने काव्यपाठ से सबका मन मोह लिया........
यहां कोई नहीं तुम्हारा है
यहां कोई नहीं हमारा है
है सांस तभी तक आश यहां
दुनिया का यही नजारा है.
डॉ. ओमप्रकाश दुबे ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में शानदार प्रेरक रचना पाठ किया...
हम वृक्ष हैं
तुम्हें जीवित रखने में हम दक्ष हैं
प्रकृति के हम सिरमोर हैं
हमारी ही सांस की डोर से बंधी
तुम्हारी जीवन की वह डोर है
हम जैसा त्यागी हम जैसा उपकारी
हम जैसा कल्याणकारी
जग में दूसरा नहीं है.
तत्पश्चात श्री रमेश वाजपेयी ने अपनी श्रृंगार रचना से गोष्ठी को एक नया मोड़ दिया ....
मौत तेरे
कई बहाने,
न जाने
किस बहाने
अपने पास बुलाये।
न उम्र का बंधन,
बाल हो या हो प्रोढ,
जिसे तू
न सुलाये.
इसके बाद कवि सौरभ तिवारी (वनविभाग) ने कविता पाठ करते हुए कहा-
कभी विरह तो,कभी खुशी में
अन्तरघट , छलकाया है ।।
खुशी वेदना,मिलन जुदाई
नीर बिंदु , संग लाया है ।।
जिसका जितना ज्ञान है उसने
उतना , अर्थ लगाया है ।।
आँसू तेरी ,परिभाषा को
समझ कोई , ना पाया है।।
शिवपुरी से पधारे नवगीतकार मुकेश अनुरागी के गीत सुनकर श्रोताओं ने खूब सराहा-
बेबस मजहब-धर्म,छुरी
अब गर्दन नाप रही है। 
डरकर मानवता बेचारी
थर थर कांप रही है।
 श्री सतीश श्रीवास्तव ने अतिथियों का अभिनंदन करते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की..
जीवन का घट रीत गया
फिर क्या पछताना रे, 
दुनिया का है नियम
समय पर आना जाना रे । 
इसी क्रम में कवि भास्कर परमार ने मां को समर्पित रचना का पाठ किया तो तालियों की गडगडाहट गूंजने लगी-
ज़र्रा-ज़र्रा कतरा-कतरा,
धरती अम्बर क्या लिख दूँ?
शबनम,बूंदे, दरिया, झीलें,
और समन्दर,क्या लिख दूँ?
पत्ते, टहनी, गुल, दरख़्त या
सारा मन्ज़र, क्या लिख दूँ? 
मेरी सूरत, मेरी सीरत,
जिसने मुझे तराशा है!!
आप बताओ ,मैं अज्ञानी
 माँ के ऊपर क्या लिख दूँ?
इस अवसर पर श्री जितेन्द्र श्रीवास्तव शिवपुरी विशेष रूप से उपस्थित रहे.
गोष्ठी का संचालन श्री सौरभ तिवारी द्वारा किया गया और साहित्यकार सतीश श्रीवास्तव ने सभी से मतदान अवश्य करने की अपील करते हुए आभार प्रकट किया गया।

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