तो साहब लोगों का कहना है की कमलागंज वालों को अध्यक्ष की सीढी चढ़ने से रोकने का प्लान है। इसके लिए पच्चीस से तीस पेटी तक पुरानी शिवपुरी वाले नेताजी खर्च करने तैयार हैं और उन्होंने पार्षदों की जमा पूंजी को इकट्ठा करके ओरछा भगवान राम राजा की शरण में भेज रखा है। ओरछा गए पार्षदों में गुस्से में चुनाव लडे और जीते पार्षदों की संख्या अधिक है और चुनाव में हुए खर्च का हिसाब बराबर भी करना चाहते हैं। लोग तो इस तिकड़म के लिए जमीन बेचने तक की बात कह रहे हैं, सच भगवान जाने।
लोग तो यह भी बक रहे हैं की इस यज्ञ में डॉक्टर जी भी हाथ आजमा रहे हैं और पहले तो अध्यक्ष की कुर्सी को ठोक बजाकर देख रहे हैं, लेकिन उनके पास खुद की पार्टी की पूंजी कम है इसलिए कुछ निर्दलीय और कुछ फोड़ा फाड़ी करके वे भी मैदान में किला लडाएंगे। अगर बात जमती नहीं दिखाई दी तो कुर्सी नंबर टू यानि उपाध्यक्ष बनेंगे।
अब भला बताइए की हमने कितनी सारी बातें पेट में रखी हुई थीं। आपको बताकर अब हल्का महसूस हो रहा है। हालाकि बताते चलें की बातों के कोई हाथ पैर नहीं होते और सत्ताधारी पार्टी में मेंडेड आदि जारी होता है सो देखते रहिए आगे आगे होता है क्या। लिखना इसलिए पड़ा की कुछ साल पहले एक नेताजी पूरी पूंजी होते हुए भी पद से हाथ धो बैठे थे। सो राजनीति में भईया कोई ईमान धर्म तो होता नहीं ऐसा लोग कहते हैं।
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