ग्वालियर। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया प्रो-पंजा लीग (पीपीएल) ने। पीपीएल ने एक ओर जहां ग्वालियर को देश और दुनिया में नई पहचान दिलाई वहीं दूसरी ओर यहां के खिलाड़ियों को अपने हौंसलों को उड़ान भरने के लिए दिया खुला आसमान। अब बस खिलाड़ियों को चाहिए कि वे अपना बेस्ट मतलब सर्वश्रेष्ठ दें और अपने सपनों को साकार करें।ग्वालियर के विश्व प्रसि़द्ध फोर्ट के मानसिंह दरबार के खुले मंच से अमेरिका के जाने-माने आर्म रेसलर और 23 बार के विश्व चैंपियन माइकल टॉड “द मान्स्टर“ एवं उनकी पत्नी रिबेका टॉड ने जब शहर के आर्म रेसलर मनीष कुमार को सार्वजनिक रूप से रियल हीरो यानी असली नायक कहकर सम्मानित किया तो वहां उपस्थित हजारों लोग यह नजारा देख आश्चर्यचकित रह गए। लोगों का कहना था कि हमें पता ही नहीं था कि अपने शहर में भी ऐसी प्रतिभा हैं जिनकी देश व विदेश की हस्तियां भी कायल हैं। मनीष के लिए यह सम्मान पूरे शहर के लिए गौरव की बात थी साथ ही उन सैकड़ों खिलाड़ियों के लिए एक ऐसी नजीर और प्रोत्साहन था जिनकी ऑंखों में सुनहरे भविष्य के सपने हैं। अब वे जान चुके थे कि उन्हें जिंदगी में कुछ हासिल करना है तो अपना बेस्ट से बेस्ट देना है और फिर दुनिया उनके कदमों में होगी।
यह सुखद नजारा देखने को मिला था प्रो-पंजा लीग के फायनल में। इंडियन ऑर्म रेसलिंग फेडरेशन के तत्वावधान में शहर में एशिया के सबसे बड़े प्रो-पंजा लीग रैंकिंग टूर्नामेंट आयोजित किया गया। पीपीएल के फाउंडर प्रवीण डबास और मशहूर फिल्म अभिनेत्री प्रीति झंगियानी ने आयोजन किया। जहां एशियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन के अध्यक्ष जीनबेक मुकाम्बेटोव, इंडियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन के अध्यक्ष हासिम रजा जबाथ और इंटरनेशनल रैफरी सेर्गेय सोकोलोब सहित देश और विदेश की अनेक हस्तियों ने शिरकत की। इस लीग की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें भाग लेने के लिए देश भर के आर्म रेसलरों ( पंजा पहलावानों) ने गजब की दिलचस्पी दिखाई। जहां 1125 प्रतिभागियों ने अपना पंजीयन कराया। इनमें 899 पुरुष और 186 महिलाओं के साथ ही 40 विकलांग वर्ग के थे। केरल सबसे अधिक प्रतिभागियों का पंजीयन कराने वाला राज्य बना।
लीग के आयोजन से पूर्व आठ अपै्रल को जब पहली बार पीपीएल के संस्थापक परवीन डबास और प्रीति झंगियानी ने शहर में आर्म रेसलिंग अकेडमी का विधिवत शुभारंभ किया और नौ अपै्रल को प्रेस कॉफ्रेंस में पत्रकारों से रू-ब-रू होते हुए ग्वालियर के पंजा पहलवानों की प्रतिभा का गुणगान किया तब कोई इस बात को मानने का तैयार नहीं था कि ऐसा भी है। उन्होंने ग्वालियर में लीग के रैंकिंग टूर्नामेंट कराने की बात कही तब किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि यह लीग ग्वालियर के लिए वरदान साबित होने वाली है।
ग्वालियर में इस भव्य आयोजन के शिल्पकार बने प्रमुख समाज सेवी डॉ. केशव पाण्डेय आज सैकड़ों पंजा पहलावानों के लिए आदर्श बन गए हैं। उन्हीं के अथक प्रयासों से ग्वालियर आर्म रेसलिंग अकेडमी की स्थापना हो सकी, जिसके वे स्वयं अध्यक्ष भी हैं। जो आज खिलाड़ियों के लिए वरदान साबित हो रही है। मनीष कुमार के अलावा सचिन गोयल सहित अनेक खिलाड़ी अब उन्हें अपना भगवान मानने लगे हैं। क्योंकि कल तक आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद खिलाड़ी आज किसी भी तरह की परवाह किए बिना अपने सपनों को साकार होता देख रहे हैं। उनका मानना है कि जब हौंसला बना लिया है ऊँची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसामन का।
सकारात्मक पहलू की बात करें तो इस लीग से संघर्ष, जोश और जुनून की वो तस्वीर उभर का सामने आई है जिसने नई कहानी को जन्म दिया है। आर्म रेसलर कोई साधारण पंजा पहलवान नहीं, बल्कि जिंदगी के असली मायने और फलसफे सिखाने वाले किरदार हैं। जो तमाम शारीरिक विकलांगताओं के बावजूद हमसे कह रहे हैं ....... “कि लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं, हमने उस हाल में जीने की कसम खाई है।“ उन्होंने समाज और राष्ट्र के साथ ही पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखाई है, ताकि कल कोई अपने को कमजोर और लाचार महसूस न करे। यहां केवल एक चीज मायने रखती है वह है आर्म रेसलिंग टेबल पर दिखाई ताकत और प्रतिभा। अब यदि आर्म रेसलिंग के इतिहास की बात की जाए तो 1950 के दशक में संगठित पंजा कुश्ती टूर्नामेंट की शुरूआत हुई। 1952 में अमेरिका के कैलिफॉर्निया में पहला आर्म रेसलिंग का टूर्नामेंट हुआ। युवा पत्रकार बिल सोबरेंस ने इसका आयोजन कराया। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए लगातार होने लगा। पेटालुमा कैलिफोर्निया में 1962 में पहली विश्व चैंपियनशिप खेली गई थी। पहली विश्व चैंपियनशिप से करीब पांच दशक तक यह खेल ज्यादातर लोगों की जुबान पर नहीं था। पिछले एक दशक से इस खेल की तेजी से लोकप्रियता बढ़ी है। इस खेल में दो पंजा पहलवान टेबल पर पंजा लड़ाते हैं। जिसमें खेल की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। पहलवान अपने प्रतिद्वंदी के हाथ को टेबल टॉप (पिन) करने के लिए मजबूर करते हैं और जो कर देता है वह विजेता होता है। भारत में इस खेल का संचालन इंडियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन करता है। फेडरेशन के अध्यक्ष हासिम रजा का मानना था कि पंजा कुश्ती अब देश और विदेश में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कई संस्थान इसको बढ़ावा देने आगे आ रहे हैं।
प्रो-पंजा लीग की सह संस्थापक प्रीति झंगियानी का कहना था कि हम खिलाड़ियों के हौंसले और जुनून को लेकर बेहद उत्साहित हैं। आर्म रेसलिंग अब भारत में नई ऊंचाईयों को छू रही है। उनकी संस्था पंजा पहलवानों को व्यापक रूप से बढ़ावा दे रही है खासतौर पर महिला एवं विकलांग प्रतिभागियों को हर संभव मदद उपलब्ध करा रही है। प्रो-पंजा लीग देशभर में इंटरनेशनल स्तर के टूर्नामेंट आयोजित कर खिलाड़ियों के सपनों को साकार कर रही है।
यही वजह है कि पीपीएल का ग्वालियर में आयोजित किया गया अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह टूर्नामेंट यहां के खिलाड़ियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। लक्ष्मीबाई नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ फिजिकल एज्युकेशन के कुलपति प्रोफेसर विवेक पाण्डेय एवं स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एंड कोचिंग के एचओडी प्रोफेसर आशीष फुलकर भी पंजा पहलवानों के दम और टेलेंट को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उनका मानना था कि ग्वालियर में टेलेंट की कमी नहीं हैं। यह लीग खिलाड़ियों के हौंसलों को बढ़ाएगी और उन्हें अपने मुकाम तक पहुंचाएगी। क्योंकि अमेरिका सहित देश-विदेश के नामी खिलाड़ियों ने ग्वालियर की प्रतिभाओं का लोहा माना और उनके कायल हुए हैं यह गर्व की बात है।
ग्वालियर के मनीष कुमार जिन्हें अभी तक चंद लोग ही जानते थे, वे रातों-रात एक स्टार बनकर उभरे हैं। माइकल टॉड और रिबेका टॉड ने खुले मंच से उन्हें भारत का सुपर हीरो कहा। मनीष कुमार ने मलेशिया में आयोजित विश्व चैम्पियशिप में गोल्ड जीतकर विश्वभर में ग्वालियर के साथ ही भारत का डंका बजाया था। एशिया का पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने मनीष अब तक इंग्लेड, ब्राजील, बुल्गारिया, मलेशिया, किर्गिस्तान व टर्की सहित आठ देशों में सात बार विश्व चैंपयनशिप के हिस्सा बने हैं। विक्रम अवॉर्डी मनीष देश भर में आयोजित टूर्नामेंट में 20 गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुके हैं। मनीष के अलावा सचिन गोयल, सुजीत कुमार, गोविंद यादव, सचिन तोमर, राधा, माया व अरविंद रजक जैसे अनेक खिलाड़ी हैं जो ग्वालियर का नाम रोशन कर रहे हैं और अन्य खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
ग्वालियर के लिए यह लीग कई मायने में महत्वपूर्ण साबित हुई। कारण स्पष्ट है कि एक तो ग्वालियर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। देश-विदेश की हस्तियों के सामने प्रतिभागियों को अपना टेलेंट दिखाने का मौका मिला। सकारात्मक सोच के साथ अपना दम दिखाया। परिणाम स्वरूप पूरे देश में मध्य प्रदेश से चयनित हुए सर्वाधिक प्रतिभागियों में अकेले ग्वालियर से ही 23 का चयन हुआ है। जो कि गोवा में होने वाली आगामी लीग में भाग लेंगे।
डॉ. केशव पाण्डेय का कहना था कि प्रो-पंजा लीग के आने से प्रतिभागियों का उत्साह बढा है। कल तक आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद खिलाड़ी आज किसी भी बात की परवाह किए बिना अपने सपनों को साकार होता देख रहे हैं। उनकी आंँखों में सुनहरे भविष्य के सपने हैं। अब वे जान चुके हैं कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपना बेस्ट देना फिर क्या दुनिया उनके कदमों में होगी। क्योंकि इस लीग ने उनके सपनों को साकार रकने का रास्ता खोल दिया है। गरीब हो या अमीर जो भी अपना दम दिखाएगा उसके बदले उतना ही मान-सम्मान पाएगा। देश भर की नामी कंपनिया एवं संस्थान प्रतिभावान खिलाड़ियों की बोली लगाकर धन की बारिश करेंगी। जरूरत होगी तो बस इतनी की प्रतिभागियों को देना होगा अपना बेस्ट और दिखाना होगा दम। फिर वो दिन दूर नहीं जब ये ही खिलाड़ी हजारों-लाखों युवाओं के रोल मॉडल होंगे।
विश्लेषण : विजय पाण्डेय, लेखक-स्वतंत्र पत्रकार
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