भिंड। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ देश भर में जोरदार ढंग से मनाई जा रही है। ऐसे में देश आजादी लाने अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीर सपूतों को याद कर रहे हैं। असल में यही आजादी का अमृत महोत्सव है। ऐसे में हमको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा की याद ताजा हो आई। तब हमने आपातकाल के अलावा भी कई बार जेल यात्राएं करने और रेल की पटरियां उखाड़ने की दमखम रखने वाले पंडित लक्ष्मीनारायण की पुत्रवधु साहित्यविद उमा शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि उस दौरान जब अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की जंग में पूरा देश लड़ रहा था तो इस जंग में चंबल के लोग भी पीछे नहीं थे। उन्हीं में से एक पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा अतरसूमा भी थे। शर्मा यानि एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम जिन्होंने अंग्रेजों की यातनाओं की परवाह किए बिना उनसे दो दो हाथ करने की ठानी और जंग लड़ी। इसी दौरान ग्वालियर से भिंड चलने वाली नैरोगेज ट्रेन की पटरिया उखाड़ डाली थीं। यह देखकर अंग्रेजी सेना ने लक्ष्मीनारायण जी को बंदी बनाया और दूर जंगल में छोड़ दिया था। इतना ही नहीं भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। लक्ष्मी नारायण शर्मा ने महात्मा गांधी द्वारा 1942 में शुरू किए गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में चंबल घाटी से अभियान को भी चलाया और गांव गांव में जनचेतना फैलाई क्योंकि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कालपी से ग्वालियर जाते समय कुछ दिन के लिए भिंड में पड़ाव डाले रही थीं, इसलिए भी भिंड के लोग अंग्रेजों के खिलाफ तन मन और धन से जुड़े हुए थे। अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश ज्यादा होने के कारण ही लक्ष्मी नारायण ने रेल की पटरीया उखाड़ने में संकोच नहीं किया था।
पहले लाए आजादी फिर सरकारों से लडे
आपातकाल के खिलाफ जेल गए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी नारायण शर्मा आजादी लाने के बाद भी चुप नहीं रहे। उन्होंने सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष करना जारी रखा। साल 1975 में दिल्ली सरकार ने आपातकाल लगाया तो लक्ष्मी नारायण जी 19 माह के लिए सेंट्रल जेल ग्वालियर में बंद कर दिए गए थे। आपातकाल लागू होने के 1 दिन पहले ही भिंड के तत्कालीन एसपी ने उन्हें घर से उठवा लिया था और पूरे समय सेंट्रल जेल ग्वालियर में रखा था। इस तरह हम कह सकते हैं को आजादी हमको घर बैठे ही नहीं मिली बल्कि शर्मा जेसे वीरों ने अंग्रेजों से जंग लड़ी और जीती तब देश को आजाद करवाया।

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