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धमाका साहित्य कॉर्नर: साहित्य से ही कायम है देश की संम्प्रभुता : मिश्रा

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

/ by Vipin Shukla Mama
उद्भव सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान का चार दिवसीय ग्वालियर अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव आयोजित
*सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विजेताओं को प्रदान किए गए पुरस्कार 
*साहित्य के क्षेत्र में योगदान देने वाली विभूतियों का किया गया सम्मान 
*मधुर स्मृतियों के साथ विदा हुए देश-विदेश से आए साहित्यकार
*ग्वालियर के लिए सुखद और सकारात्मक संदेश दे गया साहित्य उत्सव 
 ग्वालियर 30 अगस्त। हमें अपनी भाषा को उन्नत करने के लिए उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करना होगा। इससे देश की सम्प्रभुता कायम रहेगी। क्योंकि सत्य की खोज, अन्वेषण और मानवीय मूल्यों की रक्षा श्रेष्ट और अनुकरणीय साहित्य से ही संभव है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि भविष्य को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रहित में साहित्य का सृजन हो। साहित्य से ही मानव जीवन, धर्म, सस्ंकृति और सभ्यता प्रतिलक्षित होती है। 
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने उद्भव सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के द्वारा आईआईटीटीएम में आयोजित चार दिवसीय ग्वालियर अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के समापन सामारोह के बतौर मुख्यअतिथि यह बात कही। 
अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं सेंट्रल अकेडमी स्कूल के संयुक्त तत्त्वावधान में हुए इस आयोजन में हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंत शांतिलाल जानी, फिल्मकार एवं उद्भव के ब्रांड एम्बेसडर पियूष मिश्रा, इंग्लैंड की साहित्यकार डॉ. परिन सोमानी एवं आईआईटीटीएम के डायरेक्टर डॉ. आलोक शर्मा एवं कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक एवं साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्रीधर पराडकर विशिष्ट अतिथि थे। 
मुख्य अतिथि श्री मिश्रा ने कहा कि किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता को उसके साहित्य से जाना जाता है। समाज व देश की समानता-असमानता, विसंगतिया एवं कु़़रुतियां सब साहित्य से ही परिलक्षित होती हैं। विभूतियों ने ग्वालियर व देश को जो उत्कृष्ट साहित्य  दिया है उसके संवर्धन और संरक्षण का उद्भव सराहनीय एवं प्रशंसनीय कार्य कर रही है। 
उन्होंने कहा कि जहां साहित्य होता है वहां न्याय होता है और जहां न्याय होता है वहां साहित्य होता है। साहित्य किसी शहर ही नहीं बल्कि देश का और आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शक होता है। सैंतीस सौ वर्ष पहले जिस ऋगवेद की रचना हुई थी वह आज पूरे विश्व में साहित्य के रूप में एक धरोहर है। साहित्य की गहराई सागर जैसी और ऊंचाई हिमालय की तरह है।
विशिष्ट अतिथि बलवंत जानी ने कहा कि जयपुर लिट्चेर फेस्टीवल सिर्फ और सिर्फ भारतीय साहित्य और संस्कृति की आलोचना का केंद्र बनकर रह गया है। जबकि साहित्य उत्सव के रूप में उद्भव का यह पहला प्रयास अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है। क्योंकि भाषा का वैभव साहित्य से आता है और उद्भव ने यह कर दिखाया है। ग्वालियर उत्सव ने विधि, विधान, और क्रियाकलाप का आदर्श रूप प्रदर्शित किया है। साहित्यकारों के साथ ही बच्चों का इस उत्सव से जुड़ना सकारात्मक पहलू है। 
मुख्य सरंक्षक पराडकर ने कहा कि आज की पीढी साहित्य से दूर हो रही है, उसके लिए जरूरी है कि आधुनिक परिवेश में उनकी जरूरत के मुताबिक साहित्य के साथ शब्दावली को परिवर्तित कर देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अब लोक साहित्य की परिभाषा बदलनी होगी। जो लोगों को पसंद हो वैसा ही साहित्य गढ़ना होगा। क्योंकि समाज के साथ ही रहकर समाज को बदला जा सकता है। यह बात सच है कि विद्वान और समझदार में अंतर होता है। आप विद्वान हो सकते हैं लेकिन आपको लोगों की भावनाओं को समझना होगा उन्हें जानना होगा तभी साहित्य की सार्थकता सिद्ध होगी। ऐसे में यह भी जरूरी हो जाता है कि जीवन को साश्वत रखने की जो विद्या हो सकती है  उसका संरक्षण आवश्यक है। साहित्य उत्सव इसका आधार है और साहित्य ही वह विद्या है जो हमारे संस्कारों और मूल्यों को कायम रखता है। 
इससे पूर्व सेंट्रल अकेडमी स्कूल के प्राचार्य अरविंद सिंह जादौन ने स्वागत भाषण दिया। उद्भव के अध्यक्ष डॉ. केशव पाण्डेय ने अध्यक्षीय उद्बोधन एवं सचिव दीपक तोमर ने सचिवीय उद्बोधन दिया। सुरेंद्र  पाल सिंह कुशवाह, मनोज अग्रवाल, आलोक द्विवेदी, मनीष मौर्य,राजेंद्र मुदगल, राजीव शुक्ला, शाहिद खान, जगदीश गुप्त एवं सुरेश वर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. राजरानी शर्मा ने एवं आभार व्यक्त स्कूल के डायरेक्टर विनय झालानी ने किया। इस दौरान मुख्य अतिथि ने साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाली विभूतियों को सम्मानित किया। साथ  ही आयोजकों ने अतिथियों का सम्मान कर उन्हें स्मृति चिंह भेंट किए। इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति हुई। जिसमें देवांशी कान्याल एवं तान्या डे ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। तो अंजना झा एवं समूह ने कत्थक की प्रस्तुति दी। इनके अलावा सेंट्रल अकेडमी स्कूल के विद्यार्थियों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर समारोह को भव्यता प्रदान की।  
इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विजयी प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया गया। 
इनका हुआ सम्मान 
जगदीश सिंह तोमर 
प्रकाश मिश्र
महेश कटारे 
पियूष मिश्रा 
डॉ. सुरेश सम्राट
पंडित सुरेश नीरव
उद्भव उत्सव हिंदी सोच बदलने वाली भाषा
साहित्य उत्सव के चतुर्थ दिवस अंतरराष्ट्रीय विषय पर सत्र आयोजित किया गया। जहां देश-विदेश से आए अनेक साहित्यकारों एवं विद्वानों ने भारतीय साहित्य का उनके देश पर प्रभाव बताया और कहा कि कैसे भारतीय साहित्य उनके संस्कृति और सभ्यता में सहायक सिद्ध हो रहा है। सत्र का संचालन प्रो. ज्योत्सना सिंह ने किया। 
हिंदी को वास्तविक रूप में लाने के लिए हमें फिर से गुरुकुल की स्थापना करनी होगी। क्योंकि जहां लंदन, जर्मन और अन्य देशों में हिंदी का पाठ पढाया जा रहा है। वहां के लोगों के जीवन में संस्कृत और हिंदी को पढ़ने से बदलाव आ रहा है और भारत में हिंदी के साथ कुठाराघात किया जा रहा है। जबकि 1811 में 723 गुरुकुल हुआ करते थे। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि मौजूदा परिवेश में भी गुरुकुलों की स्थापना की जाए। क्योंकि हिंदी श्रेष्ठ साहित्य है और इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति बढ़ती जा रही है। 
राज होरामन, मॉरीशस 
नार्वे के घर-घर में गीता 
भारत के धर्म, साहित्य, संस्कृति और भाषा को नार्वे के लोग बढ़ावा दे रहे हैं। 54 लाख की आबादी वाले देश में मुठ्ठी भर भारतीय होने के बावजूद भारतीय संस्कृति और साहित्य की पताका फहराई जा रही है। नार्वे एक ऐसा देश हैं जहां ऑनलाइन न मंगाकर प्रकाशकों से पुस्तकें खरीदीं जाती हैं। यही कारण है कि वहां हर घर में गीता होती है। 
सुरेश चंद्र शुक्ला, नार्वे
नेपाली साहित्य पर भारत की छाप 
नेपाली साहित्य पर भारतीयता का प्रभाव देखा जा सकता है। वहां अनेक भारतीय ग्रंथों का नेपाली में अनुवाद किया गया है। जिसे स्थानीय लोगों ने अंगीकार किया है। नेपाली, संस्कृति के लिए खास महत्व रखता है भारतीय साहित्य उसकी छाप देखने को मिलती है। महादेवी वर्मा, तुलसी दास, कबीर  और प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों का साहित्य हमें संस्कृति से जोड़े रखा हुआ है। 
पुरू लम्साल, नेपाल 
देश का भविष्य होता है साहित्य 
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जब साहित्य की बात करते हैं तो भारतीय साहित्य अपनी श्रेष्ठता साबित करता है। यहां का साहित्य पूरी दुनिया में सामाजिक रूप से व्यापकता प्रदान करता है। रविंद्र नाथ टैगोर की गीतांजलि ने उन्हें विश्व भर में ख्याति दिलाई। उन्होंने समाज व राष्ट्र  को नई ऊर्जा प्रदान की।  साहित्यकार देश का भविष्य है, इसलिए साहित्यकारों को चाहिए कि सकारात्मक सोच के साथ सदैव बेहतर करने का प्रयास करें। 
डॉ. परिन सोमानी, इंग्लैंड 
लोक परंपरा का प्रतीक है साहित्य 
साहित्य ऐसा हो जो अतीत से वर्तमान और भविष्य से जुड़ा हो। सर्वे... भवन्तु....सुखिनः की भावना को जागृत करने वाला हो। भारतीय साहित्य, अमेरिका, लंदन, जर्मन, नेपाल एवं नार्वे सहित विभिन्न देशों में अपनी जड़ जमा रहा है। असमिया साहित्य भारतीय साहित्य के साथ ही लोक परपंरा का प्रतीक है। साहित्य ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया है। धर्म और आस्था में साहित्य का प्रभाव दिखता है। 
धीरेंद्र चंद्र शर्मा, असम 
भाषा अलग-अलग होती है लेकिन साहित्य एक ही होता है। साहित्य जोड़ने का काम करता है। आंध्रा में महाभारत का अनुवाद किया गया और करीब एक हजार साल से वहां पर साहित्य के रूप में इसका उत्सव मनाया जा रहा है। साहित्य की कोई सीमा नहीं होती है और न ही कोई सरहद वह हर जगह देश हो या विदेश अपना प्रभाव छोड़ता है। भारतीय साहित्य इसमें महत्वपूर्ण है। 
विजय गोपाल
मायके का बढ़ा रही हूं मान 
नेपाल और भारत संबंधों का मूल आधार उनकी संस्कृति और परंपरा की एकरूपता है। नेपाली साहित्य में  भारतीय साहित्य की छाप दिखती है। साहित्य सामाजिक, आर्थिक एवं परंपरा को प्रभावित करने वाला तत्व है। मेरे पति भारतीय सेना में रहें हैं तो मैं भारत को अपना मायका मानती हूं और साहित्य के जरिए मायके का मान बढ़ा रही हूं। 
ओमकुमारी बंजारा रानाभाट, नेपाल

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