*जिपं और जपं अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष पद्धति से हों
शिवपुरी। पंचायती राज निर्वाचन प्रणाली मेें भ्रष्टाचार के बढ़ते चलन को देखते हुए पूर्व मंत्री और पिछोर के कांग्रेस विधायक केपी सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पंचायती राज निर्वाचन व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की मांग की है। उनका तर्क है कि मौजूदा व्यवस्था में जिला पंचायत अध्यक्ष वही बन सकता है, जो धनबल व्यवस्था में सक्षम है। जिला पंचायत सदस्यों की खुलेआम लाखों रूपए में खरीद फरोख्त की जा रही है और इससे पूरी व्यवस्था का मखौल उड़ रहा है। यही हाल जनपद अध्यक्षों के निर्वाचन का है और इसके बाद जिला पंचायत तथा जनपद सदस्य महत्वहीन बनकर रह जाते हैं। जनपद अध्यक्ष की इकाई भी व्यवाहरिक रूप से अपना महत्व खोती जा रही है। ग्राम पंचायत के चुनाव में सरपंच पद के चुनाव भी धनबल से रेग्यूलेट हो रहे हैं। जिससे इस पद की पवित्रता को खतरा उत्पन्न हो गया है।
जिला पंचायत व जनपद अध्यक्ष का चुनाव दलीय आधार पर सीधे जनता के माध्यम से हो
पूर्व मंत्री केपी सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को सुझाव दिया है कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव दलीय आधार पर सीधे जनता के माध्यम से कराया जाए। जिससे दलीय प्रभाव का परीक्षण होगा साथ ही पंचायती राज पर सत्ता के आतिशय दुरूपयोग के आरोप से मुक्ति मिलेगी। जनपद अध्यक्ष का चुनाव भी सीधे जनता से कराया जाए। प्रत्यक्ष चुनाव से लाखों करोडों रूपए जो सदस्यों की खरीद फरोख्त में इस्तेमाल होते हैं, वह नहीं होंगे। पूरे देश में पंचायती राज की निर्वाचन प्रणाली में एकरूपता लाई जाए। श्री सिंह ने कहा कि राष्ट्रहित में पंचायती राज व्यवस्था को समावेशी बनाने के लिए मेरे सुझावों एवं अन्य सहसंबंधी सुझावों की संभावनाओं पर विचार करने के लिए टास्क फोर्स बनाकर अनुशंसा मंगाने की कृपा करें।
यह भेजा हैं पत्र
प्रति,
माननीय नरेन्द्र मोदी जी, ( प्रधानमंत्री) भारत सरकार नई दिल्ली
विषय- त्रिस्तरीय पंचायतीराज एवं नगरीय निकाय निर्वाचन व्यवस्था में आधारभूत परिवर्तन विषयक
महोदय,
म.प्र. में पंचायतराज अधिनियम के विहित प्रावधानों के तहत त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन की प्रक्रिया जारी है। पंचायत राज एक पवित्र अवधारणा है जो हमारी महान लोकतांत्रिक विरासत की निधि भी है। दुर्भाग्य से मौजूदा पंचायत राज व्यवस्था का स्वरूप आज देश भर में प्रक्रियागत कारणों से दूषित होकर अपना मौलिक महत्व खोता जा रहा है। सामुदायिक विकास के महान लक्ष्य और प्रतिबद्धता को केंद्रित करके महात्मा गांधी ने इसे आधुनिक भारत के पुनर्निमाण हेतु परिभाषित किया था। आज यह व्यवस्था अपने बुनियादी रूप से दूषित होकर अपने उद्देश्यों से भटक चुकी है क्योंकि इस भटकाव और प्रदूषण के बीज व्यवस्था के वर्तमान प्रावधानों में ही अंतर्निहित है।
राष्ट्र स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है इस पावन और गौरवमयी प्रसंग पर मैं अपने 40 साल के सार्वजनिक जीवन के अनुभव के आधार और इस व्यवस्था का नजदीकी साक्षी होने के नाते कुछ सुझाव आपके ध्यानार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
1. यह सर्वविदित तथ्य है कि जिला परिषद का चुनाव विशुद्ध रूप से धनबल और बाहुबल पर केंद्रित होकर रह गया है। एक जिला औसतन 20 जिला परिषद सदस्यों में विभक्त रहता है और यह करीब 15 से 20 लाख ग्रामीण मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। व्यवहारिक तथ्य यह है कि जिला परिषद के निर्वाचित सदस्य अध्यक्ष के निर्वाचन के उपरांत महत्वहीन इकाई का हिस्सा बनकर रह जाते है। स्थानीय विकास नियोजन और क्रियान्वयन में इन सदस्यों की कोई प्रामाणिक भूमिका नहीं रह गई है।
2. यह कि सभी इस सच्चाई से परिचित ही है कि जिला पंचायत परिषद का अध्यक्ष आज धनबल प्रतिस्पर्धा में सक्षमता पर निर्भर हो गया है। सदस्यों की खुलेआम नीलामी सरीखी बोली लगाकर पक्ष में किया जाना मानो व्यवस्था का विहित प्रावधान की शक्ल ले चुका है। यह इस पवित्र व्यवस्था का सबसे त्रासदपूर्ण पक्ष है।
4. जनपद पंचायत, ब्लॉक प्रधान की विहित व्यवस्था भी कमोबेश इसी व्यावहारिक विसंगति का शिकार है। औसतन 100 ग्राम पंचायतों पर एक ब्लॉक प्रधान / जनपद अध्यक्ष की व्यवस्था है जिसके सदस्यों की भूमिका भी निर्वाचन में ठीक वैसी ही जैसी कि जिला पंचायत निर्वाचन में देखने को मिलती है।
5. ब्लॉक प्रमुख / जनपद अध्यक्ष की इकाई व्यवहारिक रूप से भी अपना महत्व खोती जा रही है क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में जिला परिषद ही ग्राम पंचायतों को सीधे धन का हस्तांतरण करती है। जिले की योजनाओं का अनुमोदन करती है। 6. ग्राम पंचायत के चुनाव में प्रधान / सरपंच के चुनाव भी धनबल से विनियमित हो रहे हैं। धन का अतिशय प्रवाह प्रधान पद की पवित्रता को खत्म प्रायः कर चुका है।
7. मैं आपका ध्यान नगरीय निकायों मं निर्वाचन संबंधित प्रक्रियाओं की विसंगति और विषमताओं पर भी आकृष्ट करना चाहता हूँ। मेरे गृह राज्य मध्यप्रदेश में इस समय नगरीय निकायों के चुनाव संपन्न हो रहे है। मौजूदा प्रारूप में लागू नगरीय निर्वाचन प्रक्रिया के तहत महापौर एवं पालिका / परिषद अध्यक्षों का निर्वाचन सीधे जनता के द्वारा प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से होता रहा है, लेकिन पिछली एवं मौजूदा राज्य सरकार द्वारा प्रत्यक्ष मतदान के स्थान पर पालिका और परिषद अध्यक्षों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष पद्धति यानी सभासदों के माध्यम कराने का निर्णय लिया गया। यह प्रक्रिया मूलतः जनादेश को समग्र रूप में दूषित करने की ही है। नगरीय क्षेत्रों में महापौर को छोडकर पालिका अध्यक्ष, परिषद अध्यक्ष के निर्वाचन में बड़े पैमाने पर पार्षद / सभासदों की खरीद फरोख्त खुलेआम सबकी जानकारी में हो रही है।8. आपके नेतृत्व में एक तरफ देश में स्मार्ट सिटी मिशन और छोटे नगरों को शहरीकरण की चुनौतियों से सामना करने के लिये सक्षम बनाने पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर करोडों रूपये खर्च कर पालिका और परिषद अध्यक्ष हो की कुर्सी पर आने वाले प्रतिनिधियों से हम कैसे एक बेहतर नगरीय प्रशासन और नियोजन की अपेक्षा कर सकते हैं यह सामान्य समझ का ही प्रश्न है।
सुधारात्मक सुझाव
1. यह कि अपने अनुभव के आधार पर मेरा सुझाव है कि जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन दलीय आधार पर प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से कराया जाये। नगरीय निकायों के लिये मेयर / अध्यक्ष का चुनाव जब आसानी से जनता सीधे कर सकती है तो जिला परिषद के चुनाव में किसी भी प्रकार की समस्या संभव नहीं है। ऐसा किया जाने से दलीय प्रभुत्व और प्रभाव का परीक्षण होगा साथ ही पंचायतराज पर सत्ता के अतिशय दुरूपयोग के आरोपों से भी मुक्ति मिलेगी।
2. यह की महापौर के चुनाव सीधे जनता सफलतापूर्वक पिछले काफी समय से करती आ रही है अगर जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन सीधे महापौर की तर्ज पर कराया जाता है तो नगरीय निकाय छोटे क्षेत्र छोडकर जो ग्रामीण परिक्षेत्र बचेगा उसमें सीधे जनता के चुनाव में कोई व्यवहारिक दिक्कत नहीं आने वाली है दलीय आधार पर अगर अध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था की जाये तो जिला परिषद का चुनाव भी आसानी से कराया जा सकेगा।
3. जनपद / ब्लाक अध्यक्ष के निर्वाचन की मौजूदा प्रक्रिया को भी सीधे जनता से चुनाव की प्रक्रिया पर लाया जाना चाहिये यदि ऐसा किया जाना संभव नहीं हो तो ब्लाक / जनपद परिक्षेत्र के निर्वाचित सरपंचों / ग्राम प्रधान के माध्यम से जनपद / ब्लाक प्रधान का चुनाव किया जा सकता है।
4. जनपद / जिला पंचायत अध्यक्ष / नगरीय निकाय प्रमुख की प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया जहाँ लोकतांत्रिक रूप से ज्यादा समावेशी साबित होगी वहीं जिलापरिषद / ब्लाक सदस्यों/सभासदों / पार्षदों की लाखों करोड़ों में होने वाली खरीद फरोख्त की दूषित प्रक्रिया पर भी अंकुश लग सकेगा।
5. पूर्व में ग्राम प्रधान / सरपंच का चुनाव पंचों के माध्यम से किया जाता था लेकिन अब प्रधान / सरपंच के चुनाव जनता से सीधे होने से पंचों की खरीद फरोख्त बंद, प्रायः हो गई है।
6. आपके डिजिटल इंडिया मिशन और डीबीटीएल नवाचारों ने पंचायत एवं फंडिंग एजेंसियों के मध्य व्यापक पारदर्शिता लाने का काम किया ही है। केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं में धन का सीधा हस्तांतरण हितग्राहियों और पंचायत को होने लगा है ऐसे में जिला और ब्लाक परिषद के मौजूदा निर्वाचन मं अतिशय धन खर्ची अंततः हितग्राही मूलक एवं विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में अनावश्यक हस्तक्षेप की स्थितियां निर्मित करता है।
7. देश की एकीकृत व्यवस्था के लिये आप आरंभ से ही बात करते रहे हैं। एक देश एक विधान, एक देश एक टैक्सेशन, एक देश एक ग्रिड, एक देश एक राशन कार्ड, जैसे नवाचार जब सफल हो सकते हैं तो मेरा आपसे विनम्र आग्रह है की देश के संविधान में जिस पंचायतराज के सफल और समावेशी क्रियान्वयन की वचनबद्धता शामिल है उस पवित्र पंचायतराज व्यवस्था को भी देशभर में समरूपता के साथ लागू किये जाने की आवश्यकता पर आपको विचार करना चाहिये 8. देश के सर्वोच्च सदन यानी संसद ने पंचायत राज व्यवस्था की प्रावधानों को
अंतिम रूप दिया है। इसलिये बेहतर होगा कि राज्य सरकारों को पंचायत राज
अधिनियम में दिये गये अधिकारों को कम से कम निर्वाचन के मामले में समरूपता के
दायरे में लाया जाए। नगरीय निकायों एवं पंचायती राज से जुडी सभी संस्थाओं के
निर्वाचन की प्रक्रिया देशभर में एक जैसी होना चाहिए। इस प्रक्रिया में संस्थाओं के अध्यक्ष का निर्वाचन अनिवार्यत प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से जनता द्वारा देशभर में सीधे चुने जाना चाहिए।
9. नए भारत के पुनर्निर्माण और वैश्विक चुनौतियों के दृष्टिगत हमारे पंचायत राज और नगरीय संस्थान जब तक समकालीन चुनौतियों के लिये सक्षम नेतृत्व के हाथों में नहीं होंगे तब तक हमारे लक्ष्य पूरे नहीं हो सकते। इन संस्थाओं में सक्षम ईमानदार और उत्तरदायित्व बोध से परिपूर्ण नेतृत्व उभर कर सामने आए। इसके लिये मौजूदा धनबल और बाहुबल के वातावरण से मुक्त एक ऐसी व्यवहारिक व्यवस्था अपनाने का यह सबसे उपयुक्त समय है जब 23 स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण कर रहा है।
आदरणीय मेरा विनम्र आग्रह है कि पंचायत राज की पवित्र व्यवस्था को राष्ट्रहित में समावेशी बनाने के लिये इन सुझावों एवं अन्य सहसंबंधित सुधारों की संभावनाओं पर विचार करने के लिये एक टास्क फोर्स बनाकर अनुशंसा मंगाने की कृपा करें।
सादर
भवदीय
के.पी. सिंह (कक्काजू) विधायक पिछोर, जिला शिवपुरी (पूर्व मंत्री म.प्र. शासन)

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