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धमाका साहित्य कॉर्नर: साहित्य से प्रकट होती है गीता जो जीवन को जागृत करती है: चेतना यादव

शनिवार, 27 अगस्त 2022

/ by Vipin Shukla Mama
उद्भव सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान का चार दिवसीय ग्वालियर अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव शुरू 
- देश-विदेश के साहित्यकार मिलकर करेंगे साहित्य की मौजूदा स्थिति पर चिंतन-मनन 
ग्वालियर। सामाजिक जीवन में शिक्षा की जरूरत होती है जो चेतन स्वरूप को बनाए रखती है। साहित्य ऐसी विद्या है जो समाज की विसंगतियों को दूर करने की ताकत रखती है। साहित्य से ही गीता प्रकट होती है जो जीवन को चेतना जागृत करती है। ऐसी स्थिति में आधुनिक परिवेश में साहित्य को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत करने की जरूरत है। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने यह बात कही। 
उन्होंने यह बात उद्भव सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान, अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं सेंट्रल अकेडमी स्कूल की ओर से  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट (आईआईटीटीएम) में आयोजित किए जा रहे चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय ग्वालियर साहित्य उत्सव के शुभारंभ समारोह में बतौर मुख्यअतिथि के कही। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता उद्भव के अध्यक्ष डॉ. केशव पाण्डेय ने की। जबकि मप्र गृह निर्माण एवं अधोसरंचना विकास मंडल के अध्यक्ष आशुतोष तिवारी, इंग्लैंड की साहित्यकार डॉ. परीन सोमानी एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक श्रीधर पराडकर विशिष्ट अतिथि थे।
श्री यादव ने कहा कि यदि वाल्मीकि ने रामायण और वेदव्यास से महाभारत की रचना न की होती तो आज हम और आप श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र को न जान पाते। श्रीराम का चरित्र जहां मर्यादा सिखाता है वहीं श्रीकृष्ण की यात्रा जीवन जीने की ललक सिखाती है। श्रीकृष्ण का जन्म मानव जीवन की जटिलता की सीख देता है। क्योंकि समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने हिम्मत दिखाई थी, साहित्यकारों को भी मौजूदा परिवेश में व्याप्त बुराईयों को मिटाने के लिए सकारात्मक भूमिका निभानी होगी। 
विशिष्ट अतिथि श्री तिवारी ने कहा कि जीवन में अपनी परंपराओं को अक्षुण रखना है तो निश्चित तौर पर साहित्य से जुड़ना होगा। क्योंकि मानव जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थिति साहित्य की है। ग्वालियर-चंबल की पुरातन संस्कृति ओर व्यवहार ठीक नहीं है इस नकारात्मक एवं बदनुमा छवि को साहित्य के जरिए ही मिटाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव निश्चित तौर पर ग्वालियर-चंबल को नई पहचान देने वाला साबित होगा। 
मुख्य संरक्षक श्री पराडकर ने कहा कि मनुष्य की जीवन यात्रा में सबसे प्रभावशाली तत्व साहित्य है। साहित्य की परंपरा वेदों से प्रारंभ होकर आजतक अनवरत रूप से चली आ रही है। साहित्य इतना समृद्ध होना चाहिए कि  इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा सके। हालांकि परंपरा तो चलती रहती हैं लेकिन यह भी जरूरी है कि हमारे मूल्य बने रहें। 
उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य ने इस संसार को श्रीराम और श्रीकृष्ण का चरित्र दिया है। बुद्धि का महत्व बताने वाला चाणक्य दिया है। क्या आज का साहित्य यह कर पा रहा है? आज समाज में जो परिवर्तन आ रहा है उसका मूल कारण भारतीय परंपरा जिससे शुरू होती है उसका अध्ययन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि साहित्य को परंपरा और देश के अनुरूप बनाना है और साहित्यकार होने का अपना दायित्व निभाना है। इससे पूर्व सेंट्रल स्कूल अकेडमी के अरविंद सिंह जादौन ने स्वागत भाषण दिया। संस्था के अध्यक्ष डॉ. पाण्डेय ने संस्था का परिचय एवं सचिव दीपक तोमर ने संस्था की गतिविधियों से परिचित कराया। कार्यक्रम का संचालन मिताली तोमर ने एवं आभार व्यक्त अकेडमी के संचालक विनय झालानी ने किया। इस मौके पर आईआईटीटीएम के प्रोफेसर चंद्रशेखर बरूआ एवं सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाह विशेष रूप से मंच पर उपस्थित थे।








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