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धमाका बड़ी खबर: 100 पुस्तकों के विमोचन के साथ गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न हुआ आचार्य विजयधर्म सूरि शताब्दी महोत्सव

सोमवार, 19 सितंबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
11 दिवसीय महोत्सव के अंतिम दिन प्रसिद्ध जैनाचार्य प्रेम सूरि जी की पुण्यतिथि महोत्सव के रूप में मनी
शिवपुरी। 100 वर्ष पूर्व शिवपुरी में समाधि लेने वाले शास्त्र विशारद की उपाधि से अलंकृत प्रसिद्ध जैनाचार्य विजयधर्म सूरि जी के 11 दिवसीय भव्य शताब्दी महोत्सव का समापन आज आचार्य विजयधर्म सूरि और उनके शिष्यों द्वारा लिखित 100 पुस्तकों के विमोचन के साथ हुआ। शताब्दी महोत्सव के अंतिम दिन आचार्य कुलचंद्र सूरि जी (केसी महाराज) के गुरू आचार्य प्रेम सूरि जी महाराज की छठी पुण्यतिथि महोत्सव के रूप में मनाई गई। आचार्य विजयधर्म सूरि जी आचार्य प्रेम सूरि जी के दादागुरू थे। महोत्सव का शुभारंभ जहां आचार्य विजयधर्म सूरि जी महाराज की 100वीं पुण्यतिथि के साथ हुआ वहीं समापन उनकी कुल परम्परा के आचार्य प्रेम सूरि जी महाराज की छठी पुण्यतिथि के साथ गरिमापूर्ण ढंग से हुआ। इस अवसर पर देश के लगभग 100 शहरों से आए जैन बंधुओं ने आयोजन में शिरकत की। समापन समारोह में आचार्य प्रेम सूरि जी महाराज के व्यक्तित्व पर केन्द्रित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन किया गया जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर प्रसिद्ध विजयधर्म सूरि महाराज ने आचार्य प्रेम सूरि जी महाराज के विशिष्ट व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला और उन्हें प्रेम के अवतार की संज्ञा दी। समापन समारोह में आयोजन में सहयोग करने वाले गणमान्य नागरिक, विभिन्न संस्थाओं और मीडियाकर्मियों का भी सम्मान किया गया और उन्हें इस अवसर पर स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।
समापन समारोह का शुभारंभ भक्ति रस से सराबोर गुरू भक्ति के महिमा ज्ञान से हुआ। इसके पश्चात पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी महाराज ने अपने दादागुरू प्रेम सूरि जी महाराज और अपनी कुल परम्परा के जनक आचार्य विजयधर्म सूरि जी के व्यक्तित्व की चरित्रगत विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आचार्य विजयधर्म सूरि जी ज्ञान के सागर थे वहीं आचार्य प्रेम सूरि जी करूणा और प्रेम के अवतार थे। प्रेम उनके व्यक्तित्व में इस हद तक समाहित था कि उन्होंने जब 11 वर्ष की आयु में दीक्षा ली तो अपने गुरू से आग्रह किया कि उनका नया नामांकरण प्रेम शब्द से हो। उन्होंने 86 वर्ष तक संयम धारण किया और 56 वर्षों तक आचार्य पद को सुशोभित किया। अनेक मंदिरों की अंजनशलका और प्राण प्रतिष्ठा में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। समाजसेवा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्य बेहद स्मरणीय हैं। यह आचार्य प्रेम सूरि जी थे जिन्होंने दादा गुरू आचार्य विजयधर्म सूरि जी से हम सबको परिचित कराया। उन्होंने आचार्य प्रेम सूरि जी को प्रज्ञा, प्रेम और पुण्य का भंडार बताया। प्रारंभ में चातुर्मास कमेटी के संयोजक तेजमल सांखला, उप संयोजक प्रवीण लिगा, मुकेश भांडावत, श्वेताम्बर जैन समाज के अध्यक्ष दशरथमल सांखला, सचिव विजय पारख सहित समिति के अनेक सदस्यों ने आचार्य प्रेम सूरि जी महाराज साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित की तथा नाच गाकर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया जिससे पुण्यतिथि समारोह  महोत्सव के रूप तब्दील हो गया। इसके बाद बाहर से आए विभिन्न संघों के प्रतिनिधियों ने आचार्य विजयधर्म सूरि जी, आचार्य प्रेम सूरि जी, आचार्य कुलचंद्र सूरि जी, पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी, संत कुलरक्षित जी, संत कुलधर्म सूरि जी और साध्वी शासनरतना श्रीजी, अक्षयनंदिता श्रीजी ठाणा छह सतियों से आशीर्वाद ग्रहण किया।
समाजसेवियों के करकमलों से हुआ पुस्तकों का विमोचन
आचार्य विजयधर्म सूरि जी और उनके शिष्यों द्वारा लिखित 100 पुस्तकों का विमोचन चार समाजसेवियों द्वारा 25-25 पुस्तकों के विमोचन द्वारा किया गया। विमोचन समारोह के लाभार्थी रहे मुम्बई निवासी महेश गांधी, ग्वालियर निवासी सौभाग्यमल जयकुमार कोठारी परिवार, शिवपुरी निवासी अमानमल मुकेश भांडावत परिवार और शिवपुरी निवासी मोतीचंद्र कमलचंद्र गूगलिया परिवार। इन पुस्तकों में 102 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के कराची शहर के एक मौलावी द्वारा आचार्य विजयधर्म सूरि जी पर लिखित पुस्तक भी है। इसके अलावा कुछ विदेशी विद्वानों ने भी आचार्य विजयधर्म सूरि जी के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
मीडिया ने पेश किया सकारात्मक पत्रकारिता का उज्जवल उदाहरण
शताब्दी महोत्सव में मीडियाकर्मियों के सम्मान समारोह में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए संत कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि शताब्दी महोत्सव के कवरेज में शिवपुरी के मीडियाकर्मियों ने सकारात्मक पत्रकारिता का एक उज्जवल उदाहरण पेश किया है। उन्होंने शताब्दी महोत्सव के एक-एक आयोजन पर विस्तार से अपनी रिपोर्ट पेश कर शिवपुरी की जनता को आचार्य विजयधर्म सूरि जी के व्यक्तित्व से अवगत कराया है। आचार्य विजयधर्म सूरि जी ने शिवपुरी की पुण्य धरा पर 100 वर्ष पूर्व समाधि ली थी।

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